अतिरिक्त >> तीन अपाहिज तीन अपाहिजविपिन कुमार अग्रवाल
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तीन अपाहिज पुस्तक का आई पैड संस्करण
आई पैड संस्करण
भाषा ईश्वर ने नहीं बनायी। भाषा किसी एक व्यक्ति ने सहसा एक दिन ईजाद नहीं कर दी जैसे वह साइकिल, इंजन या बेतार का तार का आविष्कार कर लेता है। यदि ये दोनों बातें नहीं हुई तो भाषा मनुष्य का एक निजी गुण है, जो उसके विकास के साथ विकसित हुआ, एक सामूहिक क्रिया है जिसमें भावों को व्यक्त करना और समझना सहज और अनिवार्य है। मनुष्य जिन प्रतीकों में सोचता है और अपने को अभिव्यक्त करता है उसमें और वस्तुओं या स्थितियों में कोई तार्किक सम्बन्ध नहीं है। प्रयोग और रिवाज़ से ही भाषा अर्थ ग्रहण करती है। शब्द का अर्थ एक संदर्भ में, एक स्थिति में, उसका प्रयोग है। एक व्यक्ति, एक समूह, एक देश जैसे-जैसे उत्थान या पतन के अनुभवों से गुज़रता जाता है, उसके सन्दर्भ और उसकी मौजूदा स्थितियाँ बदलती जाती हैं। चूँकि भाषा का स्थितियों से जन्म का सम्बन्ध है, भाषा भी बदलती है। बहुत से शब्द जो पहले गौण थे अब महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं और जो महत्त्वपूर्ण थे पीछे चले जाते हैं। यह सब इतना आसानी से नहीं होता है जितना कहने में लग रहा है। पर अभी इससे बँधी हुई जटिलताओं को स्थगित कर दें तब भी इतना निश्चित है कि स्थितियों के साथ हमारे चिंतन की सामग्री बदलती है और इसलिए भाषा भी। जब ऐसा सुचारू रूप से होता है सब भाषा अपनी ताज़गी और जादुईपन से वंचित नहीं होती। तब मनुष्य बार-बार अपने को उस तरह के ढाँचे की स्थितियों में पाता है जिनमें ये शब्द जन्मे थे। भाषा अपने सन्दर्भ में पूरी तरह गूँजती है और क्योंकि अब स्थितियों का क्रम भिन्न है, साजोसामान भिन्न है, एक नयापन और एक ताजापन बना रहता है। स्थिति एक अति की ही हो तब नये शब्द भी गढ़े जा सकते हैं; गढ़े गये हैं। खैर, अब प्रश्न यह है कि कौन से शब्द हमारे लिए आज के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण हैं? अगर हम यह खोजना चाहते हैं तो पहले हमें यह खोजना पड़ेगा कि हम किन स्थितियों से घिरे हुए हैं? उन स्थितियों में या वैसे ढाँचे वाली स्थितियों में, जब हम अपने को रखेंगे तो तुरन्त पहचान लेंगे कौन से शब्द महत्त्व के हैं। हम शब्द को जैसे पुनः खोज लेंगे। इस खोज में एक सर्जनात्मक सुख मिला होगा। स्थिति में अपने को रचना और तब उचित शब्द को खोजना नाटक का तरीक़ा है और उसी में मुमकिन है। इसलिए नाटक का एक विशेष महत्त्व है।
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