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काशी मरणान्मुक्ति

मनोज ठक्कर, रश्मि छाजेड़

प्रकाशक : शिव ओम साई प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8685
आईएसबीएन :9788191092714

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स्वयं की काया में स्थित हो साधना करता मानव जब स्वयं के सच्चिदानंदस्वरूप आत्मा से परिचित होता है, तो उसी घड़ी देह-भान से मुक्त हो जाता है। यही मरण भी है एवं काशी मरणान्मुक्ति भी!

Kashi Marnanmukti - Manoj Thakkar and Rashmi Chajed

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

कहानी एक ही है और नायक भी एक। किंतु एक ही नायक के ये दो रूप-एक जगत् मे ख्यात, तो दूसरा अनजाना अज्ञात। एक फूलों से उठती सुगंध तो दूसरा चिता में जलते मुर्दों की दुर्गंध। एक सूर्य से उजला दिन, तो दूसरा चंद्रविहीन अमावस्या की अँधेरी रात। एक विवाह के मंडप में सजी दुलहन की चुनरी का रचियता, तो दूसरा जीर्ण-शीर्ण मल-मूत्र से भरी मृत काया का दाहकर्ता। एक श्री विष्णुरूप रामानंद का शिष्य, तो दूसरा श्री शिवरूप गुरु का चेला।

कबीर को समझने वाले यदि महा को न समझें, तो परमात्मा के रहस्य को नहीं समझ सकते। कबीर को चाहने वाले यदि महा को न चाहें तो मुक्ति कोसों दूर है...

...स्वयं जीवन जीकर जीवन तो सीख सकते हैं, दूसरों को सिखा भी सकते हैं और साथ ही मृत्यु से मित्रता भी कर सकते हैं, परंतु किसी को मृत्यु ऐसे नहीं सिखा सकते, जैसे जीना।

काशी मरणान्मुक्ति तो ऐसी स्थिति है जो किसी अज्ञात गुफा में छिपी बैठी है और किसी-किसी के लिए वह वहाँ से निकल, स्वप्रकाश में अभिव्यकत हो उठती है।


अध्याय-1


महाश्मशान मणिकर्णिका पर अर्द्ररात्रि के इस पहर प्रकृति-पुरुष, जनम-मरण एवं सृष्टि-प्रलय की शाश्वत साम्यावस्था को आधार देते सर्वांतर्यामी काशी विश्वनाथ समाधि में लीन हैं। अर्द्धचंद्र, मुकुट का रूप धारण कर उनके मस्तक को सुशोभित करता अमृतवर्षा में मग्न है। उत्तमाँग पर गंगा की धवल धारा सहस्रधार होकर झर रही है। ज्योतिर्मय शरीर पर धारण किया बाघंबर कोटि-कोटि सूर्यों का प्रकाश उठा रहा है। शरीर से लिपी चिताभस्म परम की उज्जवलता को दर्शा रही है और भुजबंध के रूप में सुशोभित नाग अपने फनों पर देदीप्यमान मणियों को धारण किये परम दिव्यता उठाते जगमगा रहे हैं।

कालखंड के इस क्षण काशी विश्वनाथ महाश्मशान में रमण करते घाट की अंतिम सीढ़ी पर स्थित हो, अपनी दृष्टि को फाफामऊ कस्बा के श्मशान की ओर डाल रहे हैं। उनके ललाट पर सुशोभित तृतीय नेत्र परम ज्योतिर्मय प्रकाश उठा रहा है और अब वे स्निग्ध स्मित लिए अमर अनाहत नाद निनादित कर रहे हैं-


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