सिनेमा एवं मनोरंजन >> कुन्दन लाल कुन्दन लालशरद दत्त
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सहगल के जीवन से संबंधित अनेक दुर्लभ प्रसंग
अपने मधुर कंठस्वर व अभिनय-प्रतिभा के बल पर कुंदनलाल सहगल ने भारतीय रजतपट पर एकछत्र राज्य किया। हिंदी सिनेमा के शीर्ष कलाकार के रूप में उनकी यात्रा 1935 में न्यू थिएटर्स कोलकाता की फ़िल्म देवदास के साथ शुरु हुई थी। 1937 में प्रदर्शित अपनी पहली बांग्ला फ़िल्म दीदी की रिलीज़ के साथ वे बंगाली संभ्रांत वर्ग के भी हृदय-सम्राट बन गए। उनका बांग्ला गायन सुनकर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था :की शुंदॅर गॅला तोमार... आगे जानले कोतोई ना आनंद पेताम...।’’
यह आश्चर्यजनक ही है कि इस कालजयी गायक-अभिनेता के जीवन और संगीत पर कोई प्रामाणिक तथा विधिवत अध्ययन कभी नहीं किया गया - न हिंदी में और न ही अंग्रेजी में। इस दृष्टि से शरद दत्त की यह पुस्तक सहगल की पहली और एकमात्र व्यवस्थित जीवनी है, जिसके लिए उन्होंने उनकी सभी फ़िल्में देखीं, गानों की रिकार्डिंग हासिल की, पुरानी फ़िल्म पत्रिकाओं का खंगाला, और सबसे बढ़कर यह कि सहगल के परिजनों, न्यू थिएटर्स के स्वामी दिलीप कुमार सरकार, प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक तपन सिन्हा व केदार शर्मा, संगीतकार नौशाद, अभिनेता जयराज व के. एन. सिंह तथा हिंदुस्तान रिकॉर्ड कंपनी के एस. एल. साहा से व्यक्तिगत संपर्क करके लंबी बातचीत की। सहगल के जीवन से संबंधित अनेक दुर्लभ प्रसंग इस पुस्तक के विशेष आकर्षण हैं और इसे संग्रहणीय बनाते हैं।
यह आश्चर्यजनक ही है कि इस कालजयी गायक-अभिनेता के जीवन और संगीत पर कोई प्रामाणिक तथा विधिवत अध्ययन कभी नहीं किया गया - न हिंदी में और न ही अंग्रेजी में। इस दृष्टि से शरद दत्त की यह पुस्तक सहगल की पहली और एकमात्र व्यवस्थित जीवनी है, जिसके लिए उन्होंने उनकी सभी फ़िल्में देखीं, गानों की रिकार्डिंग हासिल की, पुरानी फ़िल्म पत्रिकाओं का खंगाला, और सबसे बढ़कर यह कि सहगल के परिजनों, न्यू थिएटर्स के स्वामी दिलीप कुमार सरकार, प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक तपन सिन्हा व केदार शर्मा, संगीतकार नौशाद, अभिनेता जयराज व के. एन. सिंह तथा हिंदुस्तान रिकॉर्ड कंपनी के एस. एल. साहा से व्यक्तिगत संपर्क करके लंबी बातचीत की। सहगल के जीवन से संबंधित अनेक दुर्लभ प्रसंग इस पुस्तक के विशेष आकर्षण हैं और इसे संग्रहणीय बनाते हैं।
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