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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> जीने का साहस

जीने का साहस

स्वामी राजीव

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :135
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8706
आईएसबीएन :9788128819372

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जीवन सीख कर नहीं जिया जाता, जीकर सीखा जाता है

Jeene ke Saahas (Swami Rajiv)

• ये किताब आपको कुछ सिखाने का प्रयास नहीं करती बल्कि आपकी एक अर्थपूर्ण और गौरवशाली जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है।
• आपके भीतर अचेतन मन में दबे अनेकों सवालों को फिर से जिन्दा करती है और जीवन के प्रति एक गहरी समझ पैदा करती है।
• क्या है कमज़ोर व्यक्तित्व की तीन निशानियां, क्या है कामयाबी के सही मायने, क्या है मेरी असली पहचान इसका सही जवाब देती है ?
• क्या है अंतप्रेरणा, क्या हैं तीन सुख और सुख के पास आनन्द का भेद ?
• क्या नैतिक मूल्य और धर्म पाखंड है, क्या नास्तिक होना पाप है ? क्या जीवन अर्थहीन है ?
• क्या है जीवन का सत्य, क्या है सच्ची शांति ? इन सभी सवालों का सरलता से हल देती है यह अनूठी किताब सिर्फ उनके लिए है जिनमें है जीने का साहस...


तुम परमात्मा की बहुमूल्य कृति हो

तुम यहाँ बेवजह नहीं हो, तुम्हारे यहाँ होने का एक खास मकसद है, जिसे सिर्फ तुम ही पूरा कर सकते हो, सच कहूँ तो तुम्हें पूरा करना ही होगा, क्योंकि उसे पूरा कराने से पहले तुम्हारी जिन्दगी उदास और मुर्दा होगी, फिर चाहे तुम इस दुनिया को बेताज बादशाह ही क्यों न बन जाओ लेकिन उस एक मकसद को पूरा किए बगैर तुम्हारे जीवन में कोई आनन्द कोई सौन्दर्य नहीं होगा, तुम्हारे हृदय में कोई गीत नहीं होगा, तुम्हारे पाँव में थिरक नहीं होगी और न ही तुम्हारे जीवन में कोई अर्थ होगा।
भूमिका
हम कितना कुछ जानते हैं इस दुनिया के बारे में, लोगों के बारे में क्या सही है क्या गलत, क्या अच्छा है, क्या बुरा, सब कुछ, कोई ऐसा शख्स नहीं जो ये कहे कि वो नहीं जानता और जब हमसे कोई हमारी पहचान पूछता है तो हम हजार-हजार ढंग से इसे साबित करने की कोशिश करते हैं। कोई अपना नाम और उम्र बताकर साबित करता है तो कोई अपने रिश्तों और दोस्तों के नाम बताकर कोई अपना धर्म, गोत्र या जाति बताकर साबित करता है कि वो हिन्दू है, ईसाई है, मुसलमान है या सिख है। कोई कहता है वो डाक्टर है, वकील है, कोई मजदूर है कोई कहता है वो अमीर है, कोई कहता है वो गरीब है, कोई नास्तिक है कोई आस्तिक, तो कोई अपने देश और सभ्यता की दुहाई देकर साबित करने की कोशिश करता है कि वो हिन्दुस्तानी है, अमेरिकन है, पाकिस्तानी है, रशियन है या फिर रूसी है वगैरह-वगैरह।

कोई कहता है कि वो शरीर है, कोई कहता है कि वो मन है, कोई कहता है वो दिल है, कोई कहता है कि वो आत्मा है कोई कहता है कि वो इन सबका जोड़ है, मगर सिर्फ कहता है। कितना विवश है आदमी कि उसे खुद की पहचान बताने के लिए बाहर की चीजों का लोगों का, सभ्यताओं और नामों का सहारा लेना पड़ता है, बिना किसी नाम का सहारा लिए कोई अपनी पहचान नहीं बता पाता। मगर फिर भी वो जवाब देता है, ऐसा वो सिर्फ जवाब देने के लिए कहता है। असल में वो ये नहीं जानता कि उसकी असली पहचान क्या है। मगर वो इसे स्वीकार भी नहीं करता, क्योंकि उसे यह डर है कि अगर उसने ये मान लिया कि उसे उसकी सही पहचान नहीं पता तो उसे अपनी असली पहचान ढूंढनी होगी और खोज पर निकल जाना होगा आज और अभी, और इस सवाल का जवाब ढूंढना ही होगा जिसको वो हमेशा से टालता रहा है...कि वो कौन है ? और इस दुनिया में क्यों है ?


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