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सुभाष एक खोज

राजेन्द्र मोहन भटनागर

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :496
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8714
आईएसबीएन :9788189859985

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आज़ादी की लड़ाई का एक दस्तावेज़

Subhash Ek Khoj (Rajendra Mohan Bhatnagar)

हमारी आज़ादी की लड़ाई का वह दस्तावेज़, जो इस लड़ाई पर से परदा उठाता है और हमारे व्यक्तिगत घात-प्रतिघात का खुलासा करता है।

यह नई पीढ़ी के लिए एक ऐसी सौगात है, जो आज़ादी पाने के बाद के उन रहस्यों से रू-ब-रू कराती है, जिनकी वजह से नेताजी सुभाष ज़िंदा रहते हुए भी सामने नहीं आ सके।

स्वतंत्र सरकार की आयोगी राजनीति एक बार पुनः नंगी हुई है। क्या यह जनता का मुख्य समस्या से ध्यान हटाने का सोचा-समझा रास्ता है ?

हमारे देश में रोज़ इतिहास से छेड़छाड़ हो रही है। पर क्यों ? क्या लोकतंत्रात्मक सरकार के लिए ऐसा दखल देना उचित है ? यदि इसकी गहराई में जाएँ तो यह स्पष्ट होने लगेगा कि वे लोग कौन थे, जो अंत तक सुभाष को पर्दे की ओट में रखकर मनमानी करते रहे। मनमानी आज की राजनीति का वह अहम हिस्सा है, जिसके बिना राजनीति की शतरंज खेली नहीं जा सकती।

ताशकंद से स्व. श्री लालबहादुर शास्त्री को ऐसा क्या मिला, जिससे उन्होंने कहा था कि हिन्दुस्तान-पाकित्सान संधि से भारतीय खुश नहीं होंगे। खुश मैं भी नहीं हूँ, परन्तु जो समाचार मैं उनको सुनाऊँगा, वे मुझे कंधे पर उठा लेंगे।


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