धर्म एवं दर्शन >> ब्रह्मज्ञान भक्ति प्रकाश ब्रह्मज्ञान भक्ति प्रकाशश्री स्वामी जीवाराम जी महाराज
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ब्रह्मज्ञान भक्ति प्रकाश
भूमिका
वेदांत-ज्ञान क्या है ? और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
ईश्वर भक्ति क्या है ? और मानव प्राणी को उसकी क्या आवश्यकता है ? इन सब प्रश्नों का उत्तर-ब्रह्मज्ञान भक्ति प्रकाश ही दे सकता है। क्योंकि मनुष्य को मनन करने की शक्ति दी गई है, जो अन्य प्राणियों में नहीं है। मनुष्य अपने त्याग, विवेक एवं बुद्धि द्वारा अपनी आत्मा का इतना ऊंचा विकास कर सकता है कि वह ब्रह्म साक्षात्कार होकर उस पारब्रह्म परमेश्वर के स्वरूप में विलीन हो जाता है। यह तभी सम्भव है, यदि आप भक्ति, ज्ञान, वेदान्त सम्बन्धी ब्रह्मज्ञान से परिपूर्ण पुस्तकों का सतत अध्ययन करें।
आज के युग में ब्रह्मज्ञान का जानना प्रत्येक मनुष्य मात्र के लिए अति आवश्यक है। जिन्होंने भक्ति-वेदान्त शास्त्रों के अध्ययन द्वारा आत्मज्ञान, परमात्म तत्व व ब्रह्मज्ञान को समझ लिया है, तथा असक्ति के त्याग, विवेक, योग-साधन द्वारा अपना अन्तःकरण शुद्ध कर लिया है, वही प्राणी ब्रह्मस्वरूप होकर सर्वथा मुक्त हो जाते हैं। भक्ति साहित्य की अनेक शाखाएँ हैं-जैसे वैष्णव, जैन, बौद्ध, सनातन धर्म, नाथ सम्प्रदाय तथा कबीर पन्थ इत्यादि, यह सभी धर्म एक दूसरे से संबंधित हैं। प्रस्तुतः पुस्तक में सभी धर्म-सम्प्रदायों के साहित्य पर विशेष प्रकाश डाला गया है। साथ ही भारतीय सन्तों का जीवन चरित्र का दिग्दर्शन भी कराया गया है। इसके अतिरिक्त भजन, दोहा, छन्द आदि भक्ति रचनाएँ उपलब्ध हैं। जिनको दृष्टांतों द्वारा अर्थ सहित समझाया गया है। प्रस्तुत पुस्तक सगुण, निर्गुण, द्वैत, अद्वैत का संगम है जो भूले भटके मनुष्य को ज्ञानरूपी मार्ग बताने वाला प्रकाशमय दीपक है।
अन्त में मैं उन सभी सन्तों को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ जिन्होंने इस भक्ति नौका के स्वयं खेवटिया बन कर इस संसार-सागर में भूले-भटके मानव प्राणियों को सत्योपदेश द्वारा ज्ञान रूपी नौका में बिठाकर इस भावसागर से पास किया है।
आज के युग में ब्रह्मज्ञान का जानना प्रत्येक मनुष्य मात्र के लिए अति आवश्यक है। जिन्होंने भक्ति-वेदान्त शास्त्रों के अध्ययन द्वारा आत्मज्ञान, परमात्म तत्व व ब्रह्मज्ञान को समझ लिया है, तथा असक्ति के त्याग, विवेक, योग-साधन द्वारा अपना अन्तःकरण शुद्ध कर लिया है, वही प्राणी ब्रह्मस्वरूप होकर सर्वथा मुक्त हो जाते हैं। भक्ति साहित्य की अनेक शाखाएँ हैं-जैसे वैष्णव, जैन, बौद्ध, सनातन धर्म, नाथ सम्प्रदाय तथा कबीर पन्थ इत्यादि, यह सभी धर्म एक दूसरे से संबंधित हैं। प्रस्तुतः पुस्तक में सभी धर्म-सम्प्रदायों के साहित्य पर विशेष प्रकाश डाला गया है। साथ ही भारतीय सन्तों का जीवन चरित्र का दिग्दर्शन भी कराया गया है। इसके अतिरिक्त भजन, दोहा, छन्द आदि भक्ति रचनाएँ उपलब्ध हैं। जिनको दृष्टांतों द्वारा अर्थ सहित समझाया गया है। प्रस्तुत पुस्तक सगुण, निर्गुण, द्वैत, अद्वैत का संगम है जो भूले भटके मनुष्य को ज्ञानरूपी मार्ग बताने वाला प्रकाशमय दीपक है।
अन्त में मैं उन सभी सन्तों को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ जिन्होंने इस भक्ति नौका के स्वयं खेवटिया बन कर इस संसार-सागर में भूले-भटके मानव प्राणियों को सत्योपदेश द्वारा ज्ञान रूपी नौका में बिठाकर इस भावसागर से पास किया है।
‘सम्पादक’
श्री जीवनराम गुसांईवाल
श्री राम जन प्रकाशन, दिल्ली
श्री जीवनराम गुसांईवाल
श्री राम जन प्रकाशन, दिल्ली
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