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हरिवंशपुराण (दो भागों में)

पण्डित ज्वाला प्रसाज जी मिश्र

प्रकाशक : खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :533
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8739
आईएसबीएन :00000

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हरिवंशपुराण (दो भागों में)

Harivansh Puran - Part 1 and 2 - Pt. Jwala Prasad ji Misra

भूमिका


सम्पूर्ण विधाओं के भंडार भारत वर्ष में चार वेद, चार उपवेद, षट् दर्शन, अष्टादश पुराण, कर्म, उपासना, ज्ञान और पुरावृत्तों से पूर्ण जगत् के त्रिकाल वृत्तान्त को दर्पणवत् आद्योपान्त वर्णन कर रहे हैं; जिनके अभ्यास से अधिकारी जन अपने मनोरथ को प्राप्त होकर परमानंद के भागी होते हैं; ईश्वर वचन वेदों के आशय को समझना कोई साधारण बात नहीं है; बड़े-2 विद्वानों की बुद्धि इस कार्य में मोहित हो जाती है, वेदार्थ केवल विद्या ही से नहीं जाना जाता, किन्तु उसका यथार्थ आशय तपश्वर्या द्वारा विदित होता है और यही प्रमाण है कि जिन-2 ऋषियों को तपके द्वारा वेदार्थ प्रतीत हुआ है; वह मंत्र अनुक्रमणिका में उनके नाम से उच्चारण किये जाते हैं, और उनका कथन किया आशय ही अमीकार किया जाता है। जिससे ज्ञाता लोग उनके आशय के अनुसार अनुष्ठान कर सुख के भागी हुए हैं; अनादि अविनाशी वेद भूत, भविष्य, वर्तमान, चरित्रों को बहुधा भूतकाल के समान वर्णन करते हैं वेद का ज्ञान और अभ्यास क्या फल देता है 1 यह वार्ता हमारे निर्मित किये यजुर्वेद के मिश्र भाष्य में अच्छी रीति से मिलेगी; औरयह भी सनातन धर्नावलम्बी महात्माओं का सिद्धान्त है कि समस्त विधाओं का बीजरूप वर्णन वेदों के मध्य में मध्य में पाया जाता है; तथा इतिहास पुराणों का वर्णन भी अथर्ववेद के मंत्र भाग में इस प्रकार से वर्णन किया है।


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