धर्म एवं दर्शन >> मीमांसा दर्शनम् मीमांसा दर्शनम्आचार्य उदयवीर शास्त्री
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मीमांसा दर्शनम्
विद्वद्वरेण्य आचार्य उदयवीर शास्त्री दर्शनशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान थे। सांख्य दर्शन पर किये गये उनके अद्भुत कार्य के कारण उन्हें प्रायः आधुनिक कपिल के नाम से अभिहित किया जाता था।
आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत इस भाष्य की यह विशेषता है कि यह शास्त्रसम्मत होने के साथ-साथ विज्ञानपरक भी है। प्रारम्भ में ही अग्निषोमीय यज्ञिय पशुओं के सन्दर्भ में ‘‘आग और सोम’’ शब्दों की कृषि-विज्ञान-परक व्याख्या को देखने से इस कथन की पुष्टि हो जाती है। आलंभन, संज्ञपन, अवदान, विशसन, विसर्जन आदि शब्दों के वास्तविक अर्थों को समझ लेने पर यज्ञों में पशुहिंसता-सम्बन्धी शंकाओं का सहज ही समाधान हो जाता है।
जहां यह भाष्य मीमांसा-शास्त्र के अध्येताओं का ज्ञानवर्धन करेगा, वहां अनुसन्धित्सुओं के लिए अपेक्षित सामग्री प्रस्तुत करके उनको दिशानिर्देश करेगा।
आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत इस भाष्य की यह विशेषता है कि यह शास्त्रसम्मत होने के साथ-साथ विज्ञानपरक भी है। प्रारम्भ में ही अग्निषोमीय यज्ञिय पशुओं के सन्दर्भ में ‘‘आग और सोम’’ शब्दों की कृषि-विज्ञान-परक व्याख्या को देखने से इस कथन की पुष्टि हो जाती है। आलंभन, संज्ञपन, अवदान, विशसन, विसर्जन आदि शब्दों के वास्तविक अर्थों को समझ लेने पर यज्ञों में पशुहिंसता-सम्बन्धी शंकाओं का सहज ही समाधान हो जाता है।
जहां यह भाष्य मीमांसा-शास्त्र के अध्येताओं का ज्ञानवर्धन करेगा, वहां अनुसन्धित्सुओं के लिए अपेक्षित सामग्री प्रस्तुत करके उनको दिशानिर्देश करेगा।
आचार्य उदयवीर शास्त्री का जीवन परिचय
भारतीय दर्शन के उद्भट विद्वान् आचार्य उदयवीर शास्त्री का जन्म 6 जनवरी 1894 को बुलन्दशहर जिले के बनैल ग्राम में हुआ। मृत्यु 16 जनवरी 1991 को अजमेर में हुई।
प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल सिकन्दराबाद में हुई। 1910 में गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर से विद्याभास्कर की उपाधि प्राप्त की। 1915 में कलकत्ता से वैशेषिक न्यायतीर्थ तथा 1916 में सांख्य-योग तीर्थ की परिक्षाएँ उत्तीर्ण की। गुरुकुल महाविद्यालय ने इनके वैदुष्य तथा प्रकाण्ड पाण्डित्य से प्रभावित होकर विद्यावाचस्पति की उपाधि प्रदान की। जगन्नाथ पुरी के भूतपूर्व शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्णातीर्थ ने आपके प्रौढ़ पाण्डित्य से मुग्ध होकर आपको ‘शास्त्र-शेवधि’ तथा ‘वेदरत्न’ की उपाधियों से विभुषित किया।
स्वशिक्षा संस्थान गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में अध्यापन प्रारम्भ किया। तत्पश्चात् नेशनल कॉलेज, लाहौर में और कुछ काल दयानन्द ब्राह्म महाविद्यालय में अध्यापक के रूप में रहे। तथा बीकानेर स्थित शार्दूल संस्कृत विद्यापीठ में आचार्य पद पर कार्य किया।
अन्त में ‘विरजानन्द वैदिक शोध संस्थान’ में आ गये। यहाँ रह कर आपने उत्कृष्ट कोटि के दार्शनिक ग्रन्थों का प्रणयन किया।
प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल सिकन्दराबाद में हुई। 1910 में गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर से विद्याभास्कर की उपाधि प्राप्त की। 1915 में कलकत्ता से वैशेषिक न्यायतीर्थ तथा 1916 में सांख्य-योग तीर्थ की परिक्षाएँ उत्तीर्ण की। गुरुकुल महाविद्यालय ने इनके वैदुष्य तथा प्रकाण्ड पाण्डित्य से प्रभावित होकर विद्यावाचस्पति की उपाधि प्रदान की। जगन्नाथ पुरी के भूतपूर्व शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्णातीर्थ ने आपके प्रौढ़ पाण्डित्य से मुग्ध होकर आपको ‘शास्त्र-शेवधि’ तथा ‘वेदरत्न’ की उपाधियों से विभुषित किया।
स्वशिक्षा संस्थान गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में अध्यापन प्रारम्भ किया। तत्पश्चात् नेशनल कॉलेज, लाहौर में और कुछ काल दयानन्द ब्राह्म महाविद्यालय में अध्यापक के रूप में रहे। तथा बीकानेर स्थित शार्दूल संस्कृत विद्यापीठ में आचार्य पद पर कार्य किया।
अन्त में ‘विरजानन्द वैदिक शोध संस्थान’ में आ गये। यहाँ रह कर आपने उत्कृष्ट कोटि के दार्शनिक ग्रन्थों का प्रणयन किया।
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