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फ़ैज़ की सदी

रवीन्द्र कालिया (सम्पादक)

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8750
आईएसबीएन :9788126330492

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फ़ैज़ उर्दू अदब के उन चन्द आधुनिक साहित्यकारों में से एक हैं जिनको विश्व स्तर पर बेपनाह मुहब्बत, शोहरत और इज़्ज़त हासिल हुई है।

Faiz ki Sadi

आस उस दर से टूटती ही नहीं
जाके देखा न जाके देख लिया।
-फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’

फ़ैज़ उर्दू अदब के उन चन्द आधुनिक साहित्यकारों में से एक हैं जिनको विश्व स्तर पर बेपनाह मुहब्बत, शोहरत और इज़्ज़त हासिल हुई है। फ़ैज़ की ग़ज़लों और नज़्मों ने ज़बान-ओ-मुल्क की सरहदें तोड़ दीं। ‘प्रेम’ शब्द में जगमगाते सारे रंग, ‘इन्तलाब’ के भीतर समायी सारी बेचैनियाँ औऱ ‘इनसानियत’ में मौजूद सभी जीवन-मूल्य फ़ैज़ की शायरी में एक बेमिसाल अर्थ पाते हैं। ‘फ़ैज़ की सदी’ पुस्तक इन्हीं विशेषताओं पर मानीख़ेज़ रौशनी डालती है।

‘फ़ैज़ की सदी’ में फ़ैज़ की कुछ चुनिन्दा और बेहद मक़बूल ग़ज़लें व नज़्में हैं। फ़ैज़ का एक भाषण, उनके द्वारा की गयी ग़ालिब की एक ग़ज़ल की व्याख्या, पत्नी व बच्चों के नाम उनके ख़ुतूत और उनका एकांकी ‘प्राइवेट सेक्रेटरी’ इस पुस्तक का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। फ़ैज़ के रचना-संसार पर विजयमोहन सिंह, परमानन्द श्रीवास्तव और अली अहमद फ़ातमी के आलेख रचना और जीवन के अबूझ रिश्तों की गिरह सुलझाते हैं। मजरूह सुल्तानपुरी ने ठीक ही कहा था कि ‘‘फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ तरक़्क़ीपसन्दों के ‘मीर तक़ी मीर’ थे।’’ हमारे समय के ‘मीर’ यानी फ़ैज़ के परस्तारों के लिए एक नायाब तोहफ़ा है यह पुस्तक।

-सुशील सिद्धार्थ


इक तिरी दीद छिन गयी मुझसे
वरना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी

हिम्मते-इल्तिजा नहीं बाक़ी
ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी

इस तिरी दीद छिन गयी मुझसे
वरना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी

अपनी मश्क़े-सितम्1 से हाथ न खैंच
मैं नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी
तेरी चश्मे-अलमनवाज़2 की ख़ैर
दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी

हो चुका ख़त्म अह्दे-हिज्रो-विसाल3
ज़िन्दगी में मज़ा नहीं बाक़ी

1. अत्याचार का अभ्यास 2. दुख को पूछनेवाली (सहानुभूति रखनेवाली) आँख 3. विरह और मिलन के दिन

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जीवन परिचय


जन्म : 1911, गाँव काला कादर, सियालकोट (अब पाकिस्तान में)।

शिक्षा : आरम्भिक धार्मिक शिक्षा मौलवी मुहम्मद इब्राहिम मीर सियालकोटी से। स्नातकोत्तर मुरे कॉलेज, सियालकोट से।

1936 में प्रगतिशील लेखक संघ की लाहौर शाखा का आरम्भ। कुछ वर्ष अध्यापन। उर्दू मासिक ‘अदबे-लतीफ़े’ का 4 वर्ष सम्पादन। ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भी रहे। 1947 में ‘पाकिस्तान टाइम्स’ के पहले प्रधान सम्पादक बने। 1959 से 1962 तक पाकिस्तान आर्ट्स काउंसिल के सचिव। 1951 में चार साल की जेल। कारावास के दौरान जीवन के कटु यथार्थ से साक्षात्कार।

प्रमुख रचनाएँ : ‘नक़्शे-फ़रियादी’, ‘दस्ते-सबा’, ‘ज़िन्दाँनामा’, ‘मीज़ान’, ‘सरे-वादिए-सीना’, ‘मिरे जिल मिरे मुसाफ़िर’, ‘सारे सुख़न हमारे’ (फ़ैज़ समग्र) और ‘पाकिस्तानी कल्वर’।

अनेक रचनाओं का दुनिया की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद।

प्रमुख पुरस्कार व सम्मान : ‘लेनिन पीस प्राइज़’, ‘निगार अवार्ड’, ‘द एविसेना अवार्ड’ और ‘निशाने-इम्तियाज़’। मृत्यु से पहले ‘नोबेल प्राइज़’ के लिए नामांकित।
निधन : 20 नवम्बर, 1984 लाहौर।


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