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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> दुःख में खुश क्यों और कैसे रहें

दुःख में खुश क्यों और कैसे रहें

तेजगुरु सरश्री

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8752
आईएसबीएन :9788121615488

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दुःख में खुश क्यों और कैसे रहें का रहस्य

Dukh Mein Khush kyon Rahe ka Rahasya (Sirshree)

ऊपरवाले की अनोखी अकथ कथा

एकलव्य ने मां की उत्सुकता दूर करने के लिए कहा, ‘नहीं, हमारी ही बिल्डिंग में, ऊपर के फ्लैट में एक नया इंसान रहने के लिए आया है। सुबह-सुबह टहलते वक्त उससे मुलाकात हो गई। बस... उसी से बातें करने में देर हो गई।’

‘नया इंसान ! हमारी ही बिल्डिंग में... कौन है वह ? उसका नाम क्या है ?’
‘उसका नाम है ऊपरवाला।’ एकलव्य अनायास ही बोल पड़ा।
‘ऊपरवाला’ कहने के साथ ही एकलव्य को खुद पर बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह नाम मेरे अंदर कैसे आया ! मानो उसे यह लग रहा हो कि कहीं उस ऊपरवाले ने इस ऊपरवाले को हमारे लिए तो नहीं भेजा है...! एकलव्य यह सोचकर हैरान था कि ‘यह ऊपरवाला भी उस ऊपरवाले की तरह ही किसी रहस्य से कम नहीं है, जो न अपना नाम बताता है, न अपना काम बताता है, लेकिन बातें तो बहुत ही बढ़िया और समझदारी की करता है।’

तभी एकलव्य को मां की आवाज सुनाई दी, ‘ऊपरवाला !... यह भी कोई नाम हुआ ?’

‘क्यों क्या खराबी है इस नाम में, अच्छा तो है।’
‘मैंने तो ऐसा नाम पहले कभी नहीं सुना, शायद तुम मज़ाक कर रहे हो।’
‘मुझे भी उसका नाम पता नहीं है, लेकिन तुम्हारे सवाल पर मुझे यही नाम सूझा।’ एकलव्य ने अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा।

‘वह क्या करता है ? उसके साथ और कौन-कौन हैं ?’ मां के सवाल जारी रहे।
मां के सभी सवालों के जवाब तो एकलव्य न दे सका, क्योंकि वह खुद भी उस इंसान के बारे में कुछ नहीं जानता था। उसके सामने सिर्फ एक ही शब्द था, ‘ऊपरवाला’। आगे क्या हुआ ? ऊपरवाले की मित्रता ने एकलव्य को धोखा दिया या दी दुःख मुक्ति साधना ? खुशी से खुशी पाने का राज़, दुःख में खुश क्यों रहें का रहस्य, ‘अपना लक्ष्य’, जो पृथ्वी से लुप्त होता जा रहा है, का संपूर्ण ज्ञान जानने के लिए पढ़ना जारी रखें।


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