व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> निराकार : कुल-मूल-लक्ष्य निराकार : कुल-मूल-लक्ष्यसरश्री
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निराकार : कुल-मूल-लक्ष्य - खाली होने की कला - स्वज्ञान की विधि
निराकार का तीसरा तरीका
बारिश होती है तो उसका पानी किसी मटके में, किसी नदी में, किसी तालाब में आ गिरता है| एक कौआ मटके में गिरा हुआ पानी पीने के लिए उसमें पत्थर डालकर उसे ऊपर तक लाता है ताकि वह पानी पी सके| यह उसका तरीका है| दूसरा कौआ एक स्ट्रॉ (पाईप) पानी में डालकर पानी पीता है, अपनी प्यास बुझाता है| मगर चातक पक्षी शुद्ध पानी पीता है| जब तक बारिश नहीं गिरती तब तक वह प्यासा ही रहता हैऔर बारिश होने पर बारिश की बूँदों का ही सीधे सेवन करता है|
यह तीसरा तरीका है जिसमें न पत्थर डालने पड़े, न पाईप डालनी पड़ी, सीधे आसमान से गिरनेवाली बूँद को अपने अंदर ले लिया गया| इस तरह शुद्ध बूँद का सेवन करके जो आनंद प्राप्त होता है,उसे चातक ही बता सकता है|
यह पुस्तक (बूँद) तेजज्ञान सागर के अनमोल मोतियों में से एक है, जिसे हंस बनकर हमें चुगना है| कौआ बनकर बहुत जी लिए, अब हंस बनकर जीना है| अपने अंदर के आसमान के मोती पहचान कर पारखी बनें| ऐसा पारस आपको मिले, जिससे मोती बनाए जा सकें| अगर ऐसा कोई तरीका विश्व में उपलब्ध है तो उसे सीखकर पारस की परख पाएँ| हृदय ही वह स्थान है, जो सच्चे पारस की पहचान रखता है| इसलिए यह पुस्तक हृदय से पढ़ें और ‘तेज’ को अपनाएँ|
आकार से शुरू कर, निराकार को पाएँ...
संसार में रहकर, कमल को पाएँ...
कुछ नहीं पाकर, सब कुछ पाएँ...
बारिश होती है तो उसका पानी किसी मटके में, किसी नदी में, किसी तालाब में आ गिरता है| एक कौआ मटके में गिरा हुआ पानी पीने के लिए उसमें पत्थर डालकर उसे ऊपर तक लाता है ताकि वह पानी पी सके| यह उसका तरीका है| दूसरा कौआ एक स्ट्रॉ (पाईप) पानी में डालकर पानी पीता है, अपनी प्यास बुझाता है| मगर चातक पक्षी शुद्ध पानी पीता है| जब तक बारिश नहीं गिरती तब तक वह प्यासा ही रहता हैऔर बारिश होने पर बारिश की बूँदों का ही सीधे सेवन करता है|
यह तीसरा तरीका है जिसमें न पत्थर डालने पड़े, न पाईप डालनी पड़ी, सीधे आसमान से गिरनेवाली बूँद को अपने अंदर ले लिया गया| इस तरह शुद्ध बूँद का सेवन करके जो आनंद प्राप्त होता है,उसे चातक ही बता सकता है|
यह पुस्तक (बूँद) तेजज्ञान सागर के अनमोल मोतियों में से एक है, जिसे हंस बनकर हमें चुगना है| कौआ बनकर बहुत जी लिए, अब हंस बनकर जीना है| अपने अंदर के आसमान के मोती पहचान कर पारखी बनें| ऐसा पारस आपको मिले, जिससे मोती बनाए जा सकें| अगर ऐसा कोई तरीका विश्व में उपलब्ध है तो उसे सीखकर पारस की परख पाएँ| हृदय ही वह स्थान है, जो सच्चे पारस की पहचान रखता है| इसलिए यह पुस्तक हृदय से पढ़ें और ‘तेज’ को अपनाएँ|
आकार से शुरू कर, निराकार को पाएँ...
संसार में रहकर, कमल को पाएँ...
कुछ नहीं पाकर, सब कुछ पाएँ...
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