व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> खोज खोजसरश्री
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खोज - परमात्मा को कैसे प्राप्त करें
7 कदमों के दौरान खोजी के रास्ते में खोज करते-करते एक ऐसा मोड़ आता है जिसे प्रज्ञा कहते है। प्रज्ञा का मोड़ इतना गहरा है कि यदि कोई इसे समझ जाये तो वह हर दुःख-सुख, स्वर्ग नरक, कर्म-भाग्य, मान अपमान, सफलता-असफलता, जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है। यह मोड़ जान लेने के बाद हमें पता चलता है कि परमात्मा प्राप्त करने का कोई रास्ता नहीं है, हम मंजिल पर ही खड़े हैं।
परमात्मा की खोज में हमें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, शरीर को तपाने की जरूरत नहीं है। हमें प्रज्ञा द्वारा सीधे अपने बोध में स्थित हो जाना है। प्रज्ञा हमें सत्य जानने की आंतरिक दृष्टि देती है। इस दृष्टि को पाकर इंसान स्वयं का दर्शन अंदर की आंखों से करता है।
इस सृष्टि में जहाँ-जहाँ दृष्टि जाती है, वहा-वहाँ दृश्य ही दृश्य हैं। इस अंतहीन ब्रह्माण्ड को, विश्व को जानते जानते दृष्टि थक जाती है लेकिन सृष्टि कभी खतम नहीं होती। यहाँ पर उस दृष्टि की बात नहीं हो रही है, जो महाभारत में संजय को दी गई थी क्योंकि वह दिव्य दृष्टि भी बाहर की सृष्टि की खबर दे रही थी। यहाँ पर उस दृष्टि की बात हो रही है, जो अंदर की सृष्टि का दर्शन कराए।
परमात्मा की खोज में हमें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, शरीर को तपाने की जरूरत नहीं है। हमें प्रज्ञा द्वारा सीधे अपने बोध में स्थित हो जाना है। प्रज्ञा हमें सत्य जानने की आंतरिक दृष्टि देती है। इस दृष्टि को पाकर इंसान स्वयं का दर्शन अंदर की आंखों से करता है।
इस सृष्टि में जहाँ-जहाँ दृष्टि जाती है, वहा-वहाँ दृश्य ही दृश्य हैं। इस अंतहीन ब्रह्माण्ड को, विश्व को जानते जानते दृष्टि थक जाती है लेकिन सृष्टि कभी खतम नहीं होती। यहाँ पर उस दृष्टि की बात नहीं हो रही है, जो महाभारत में संजय को दी गई थी क्योंकि वह दिव्य दृष्टि भी बाहर की सृष्टि की खबर दे रही थी। यहाँ पर उस दृष्टि की बात हो रही है, जो अंदर की सृष्टि का दर्शन कराए।
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