गजलें और शायरी >> आह आहसुधीर मौर्य
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ये जो बोझल लगती है आज आंखे तेरी, तूने भी किया है शायद आज इश्क में रतजगा..
न होते अगर तुम मस्जूद मेरे हमे भी तुम्हारी परवाह न होती।
जो नजरें इनायत फरमाते हम पे तो जीस्त हमारी तबाह न होती।
तुम्हारा एजाज तुम्हारी शुजाअत का कायल है जमाना ये सारा,
विभीषन को मिलती सुलतानी कैसे जो उस पर तुम्हारी निगाह न होती।
जो नजरें इनायत फरमाते हम पे तो जीस्त हमारी तबाह न होती।
तुम्हारा एजाज तुम्हारी शुजाअत का कायल है जमाना ये सारा,
विभीषन को मिलती सुलतानी कैसे जो उस पर तुम्हारी निगाह न होती।
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