संस्कृति >> लीलावती लीलावतीभाष्कराचार्य
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भाष्कराचार्य विरचित गणित का एक प्राचीनतम ग्रंथ...
भाष्कराचार्य द्वारा रचित ‘‘लीलावती’’ एक सुव्यवस्थित प्रारम्भिक पाठ्यक्रम है। आचार्य ने ज्योतिषशास्त्र के प्रतिनिथि ग्रन्थ सिद्धान्तशिरोमणि की रचना शक 1071 में की थी। इस समय उनकी अवस्था 36 वर्ष की थी। इस अल्प वय में ही इस प्रकार के अदभुत् ग्रन्थ रत्न को निर्मित कर भाष्कराचार्य ज्योतिष जगत में भाष्कर की तरह पूजित हुये तथा आज भी पूजित हो रहे हैं।
सिद्धान्तशिरोमणि के प्रमुख चार विभाग हैं। 1- व्यक्त गणित या पाटी गणित (लीलावती) 2- अव्यक्त गणित (बीजगणित) 3- गणिताध्याय 4- गोलाध्याय। चारों विभाग ज्योतिष जगत में अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण विख्यात हैं तथा ज्योतिष के मानक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
सिद्धान्तशिरोमणि का पिरथम भाग पाटी गणित जो लीलावती के मान से विख्यात है, आज के परिवर्तित युग में भी अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण रखे हुये है। आचार्य ने इस लघु ग्रन्थ में गहन गणित शास्तिर को अत्यन्त सरस ढंग से प्रस्तुत कर गागर में सागर की उक्ति को प्रत्यक्ष चरितार्थ किया है। इकाई आदि अंक स्थानों के परिचय से आरम्भ कर अंकपाश तक की गणित में प्रायः सभी प्रमुख एवं व्यावहारिक विषयों का सफलतापूर्वक समावेश किया गया है।
सिद्धान्तशिरोमणि के प्रमुख चार विभाग हैं। 1- व्यक्त गणित या पाटी गणित (लीलावती) 2- अव्यक्त गणित (बीजगणित) 3- गणिताध्याय 4- गोलाध्याय। चारों विभाग ज्योतिष जगत में अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण विख्यात हैं तथा ज्योतिष के मानक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
सिद्धान्तशिरोमणि का पिरथम भाग पाटी गणित जो लीलावती के मान से विख्यात है, आज के परिवर्तित युग में भी अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण रखे हुये है। आचार्य ने इस लघु ग्रन्थ में गहन गणित शास्तिर को अत्यन्त सरस ढंग से प्रस्तुत कर गागर में सागर की उक्ति को प्रत्यक्ष चरितार्थ किया है। इकाई आदि अंक स्थानों के परिचय से आरम्भ कर अंकपाश तक की गणित में प्रायः सभी प्रमुख एवं व्यावहारिक विषयों का सफलतापूर्वक समावेश किया गया है।
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