गजलें और शायरी >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
|
173 पाठक हैं |
मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
71
उससे यारी है उससे अनबन भी
उससे यारी है उससे अनबन भी।
थोड़ी राहत है थोड़ी उलझन भी।।
साथ निभता है आग-पानी का,
मुझमें सहरा है मुझमें सावन भी।
क्या करिश्मा है अक्स उसका है,
मेरा चेहरा है मेरा दर्पन भी।
धूप अब क्यों मुझे जलाती है,
जब मयस्सर है उसका दामन भी।
रात-दिन जूझता हूँ दुनिया से,
पर सलामत है दिल में बचपन भी।
बस यही रास्ता था मिलने का,
बँट गया अब तो घर का आँगन भी।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book