भारतीय जीवन और दर्शन >> बौद्ध जीवन कैसे जिएं बौद्ध जीवन कैसे जिएंधम्मचारी सुभूति धम्मचारी कुमारजीव
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धम्मचारी सुभूति के श्रृंखलाबद्ध प्रवचनों का अनुवाद
वही काम करना ठीक है, जिसे करके पछताना न पड़े
और जिसके फल को प्रसन्न मन से भोग सकें।
मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से, लोभ को
दान से मिथ्या भाषण को सत्य से जीत सकेगा।
और जिसके फल को प्रसन्न मन से भोग सकें।
मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से, लोभ को
दान से मिथ्या भाषण को सत्य से जीत सकेगा।
बौद्ध धर्म का उदय भारत में हुआ तथा एशिया की सभ्यता में भारत का यह महानतम योगदान रहा है, लेकिन बतौर एक जीवंत धर्म के, सात शताब्दी पूर्व, बौद्ध धर्म भारत से लुप्त हो गया, अधिसंख्य भारतीय आज इस तथ्य से ही अपरिचित हैं कि लगभग एक हजार वर्षों तक बौद्ध धर्म उनके देश का प्रधान धर्म रहा है तथा इतिहास के एक बड़े काल-खण्ड का महान प्रेरक तत्त्व रहा है।
भारतीय बौद्ध धर्म के इस स्वर्णिम युग की शुरुआत विख्यात शासक सम्राट अशोक से होती है, जिसने ई. पू. 261 के आस-पास बौद्ध धर्म स्वीकार किया, और फिर उसके बाद एक सदाचारी शासक की ऐसी मिशाल पेश की, जिसकी बराबरी के उदाहरण न के बराबर हैं। सम्राट अशोक के बाद कई शताब्दियों तक भारत में बौद्ध धर्म फलता-फूलता रहा - एक ऐसा युग जिसमें कला, ज्ञान और आध्यात्मिकता ने उच्चतम उड़ान भरी लेकिन धीरे-धीरे अनेकानेक कारणों से, जिसमें जातिवाद का दबाव सबसे बड़ा कारण था, बौद्ध धर्म का क्षय हो गया। अंततः, ईसा की तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में तुर्की आक्रांताओं ने इसे ध्वस्त कर दिया।
लेकिन सात सौ वर्षों के बाद, बीसवीं शताब्दी के दूसरे चरण में, कुछ बहुत ही उल्लेखनीय घटित हुआ। बौद्ध धर्म अपनी ही जन्मभूमि पर पुनर्जीवित होने लगा, इसके अनुयायियों की संख्या अब लगभग बीस लाख है, यह भारतीय जनसंख्या का बहुत छोटा सा अंश है, लेकिन उत्थान का यह बहुत मजबूर आधार है। क्या यह सम्भव है कि बौद्ध धर्म भारत को एक बार फिर विश्व का प्रकाश स्तम्भ बना सके - न्यायप्रिय और स्वतंत्र समाज की एक जगमगाती मिसाल - समृद्ध, रचनात्मक और शांतिप्रिय?
यह पुस्तक बुद्धधम्म के वास्तविक अर्थ की व्याख्या करती है, और इसके प्रभावी आचरण के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन करती है।
भारतीय बौद्ध धर्म के इस स्वर्णिम युग की शुरुआत विख्यात शासक सम्राट अशोक से होती है, जिसने ई. पू. 261 के आस-पास बौद्ध धर्म स्वीकार किया, और फिर उसके बाद एक सदाचारी शासक की ऐसी मिशाल पेश की, जिसकी बराबरी के उदाहरण न के बराबर हैं। सम्राट अशोक के बाद कई शताब्दियों तक भारत में बौद्ध धर्म फलता-फूलता रहा - एक ऐसा युग जिसमें कला, ज्ञान और आध्यात्मिकता ने उच्चतम उड़ान भरी लेकिन धीरे-धीरे अनेकानेक कारणों से, जिसमें जातिवाद का दबाव सबसे बड़ा कारण था, बौद्ध धर्म का क्षय हो गया। अंततः, ईसा की तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में तुर्की आक्रांताओं ने इसे ध्वस्त कर दिया।
लेकिन सात सौ वर्षों के बाद, बीसवीं शताब्दी के दूसरे चरण में, कुछ बहुत ही उल्लेखनीय घटित हुआ। बौद्ध धर्म अपनी ही जन्मभूमि पर पुनर्जीवित होने लगा, इसके अनुयायियों की संख्या अब लगभग बीस लाख है, यह भारतीय जनसंख्या का बहुत छोटा सा अंश है, लेकिन उत्थान का यह बहुत मजबूर आधार है। क्या यह सम्भव है कि बौद्ध धर्म भारत को एक बार फिर विश्व का प्रकाश स्तम्भ बना सके - न्यायप्रिय और स्वतंत्र समाज की एक जगमगाती मिसाल - समृद्ध, रचनात्मक और शांतिप्रिय?
यह पुस्तक बुद्धधम्म के वास्तविक अर्थ की व्याख्या करती है, और इसके प्रभावी आचरण के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन करती है।
धम्मचारी सुभूति : धम्मचारी सुभूति ब्रिटिश मूल के हैं तथा पहले एलेक्जेंडर केनेडी के रूप में जाने जाते हैं। वह अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आध्यात्मिक गुरु, बौद्ध धर्म व दर्शन के मर्मज्ञ तथा साधना पद्धतियों के विशेषज्ञ हैं। उनके ध्यान-शिविर विश्व भर में आयोजित होते हैं। वह प्रभावशाली वक्ता भी हैं। धम्मचारी कई प्रसिद्ध बौद्ध पुस्तकों के लेखक भी हैं। वर्तमान में फ्रेन्ड्स ऑफ वेस्टर्न बुद्धिस्ट ऑर्डर (इंग्लैण्ड), त्रैलोक्य बौद्ध महासंघ सहायक गण (भारत) जैसी संस्थाओं के धम्मचारी एवं गुरु हैं।
धम्मचारी कुमारजीव : महाराष्ट्र के वर्धा जनपद में धम्म का अध्ययन एवं साधना शुरु की। धम्मचारी सुभूति एवं सुवज्र ने उन्हें त्रैलोक्य बौद्ध महासंघ मे धम्मचारी की शिक्षा दी। वह एक धम्म-प्रचारक एवं ध्यान-प्रशिक्षक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने बुद्ध धम्म विषयक पुस्तकों को हिन्दी व मराठी में अनुवाद भी किया। भारत में ‘सेन्टर फॉर नान वायलेन्ट कम्युनिकेशन, अमेरिका’ के प्रशिक्षक बने तथा इसके संस्थापक डॉ. मार्शल रोज़ेनबर्ग के साथ भारत, अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशों में कार्य किया। बुद्ध धम्म को भारत के जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से स्थापित धम्मक्रान्ति अवधारणा के धम्मचारी सुभूति के साथ वह सह-संस्थापक हैं।
धम्मचारी कुमारजीव : महाराष्ट्र के वर्धा जनपद में धम्म का अध्ययन एवं साधना शुरु की। धम्मचारी सुभूति एवं सुवज्र ने उन्हें त्रैलोक्य बौद्ध महासंघ मे धम्मचारी की शिक्षा दी। वह एक धम्म-प्रचारक एवं ध्यान-प्रशिक्षक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने बुद्ध धम्म विषयक पुस्तकों को हिन्दी व मराठी में अनुवाद भी किया। भारत में ‘सेन्टर फॉर नान वायलेन्ट कम्युनिकेशन, अमेरिका’ के प्रशिक्षक बने तथा इसके संस्थापक डॉ. मार्शल रोज़ेनबर्ग के साथ भारत, अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशों में कार्य किया। बुद्ध धम्म को भारत के जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से स्थापित धम्मक्रान्ति अवधारणा के धम्मचारी सुभूति के साथ वह सह-संस्थापक हैं।
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