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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक

भक्त बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 882
आईएसबीएन :81-293-0517-8

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भगवान् की महिमा का वर्णन...

मोहन हँसता हुआ दूधका छोटा-सा लोटा लेकर गुरुजीके समीप जा पहुँचा। लड़कोंकी लायी हुई सामग्रियोंको गुरुजीके नौकर उनके पास ले जाकर उन्हें दिखा-दिखाकर अलग रख रहे थे। बालकने समझा कि मेरे दूधकी भी बारी आवेगी, परंतु उस जरा-सी लुटियाकी ओर किसीका ध्यान नहीं गया। बालकने उदास होकर गुरुजीसे कहा, महाराज! मैं भी दूध लाया हूँ। गुरुजी बड़ी-बड़ी सामग्रियोंकी देख-भाल कर रहे थे। उन्होंने बालककी बातका कोई उत्तर नहीं दिया। गरीबोंके श्रद्धा-प्रेम-पूरित उपहारका स्वाद तो प्रेमके भूखे भगवान् ही जानते हैं। इससे वही उसका सम्मान भी करते हैं। सुदामाके चावलोंकी कनी, अछूत भिलनीके बेर, करमाकी खिचड़ी और विदुरके शाक-पातके स्वादका अनुभव भगवान्को ही था, इसीसे उन्होंने प्रसन्नतासे इनका भोग लगाया था और इसीलिये उन्होंने घोषणा की है-

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥
(गीता ९। २६)

‘प्रेमी भक्त मुझे शुद्ध प्रेमसे पत्र, पुष्प, फल, जल आदि जो कुछ भी अर्पण करता है, मैं उसे प्रेमार्पित उपहारका प्रेमसहित साक्षात् भोजन करता हूँ।' सामग्रियोंके बाहुल्यका कोई महत्त्व नहीं है, महत्त्व है प्रेमका; भगवान् श्रीकृष्णके आतिथ्यके लिये कौरवोंने कम तैयारी नहीं की थी, परंतु भगवान्ने कहा कि-

सम्प्रीतिभोज्यान्यन्नानि आपद्भोज्यानि वा पुनः।
न च सम्प्रीयसे राजन् न चैवापता वयम्॥
(महाभारत)

‘भोजन या तो प्रेम हो वहाँ किया जाता है या विपद् पड़नेपर किसीके भी यहाँ करना पड़ता है। यहाँ प्रेम तो तुममें नहीं है और विपत्ति मुझपर नहीं पड़ी है। इससे मैं तुम्हारे यहाँ भोजन नहीं करूंगा।' अस्तु!

जब मोहनने कई बार गुरुसे कहा, तब गुरुजीने अवज्ञाके साथ झुंझलाकर एक नौकरसे कहा, “जरा-सी चीजपर यह छोकरा कितना चिल्ला रहा है, मानो इसने हमें निहाल कर दिया। दूध किसी बर्तनमें लेकर हटाओ इस आफतको जल्दी यहाँसे।' अपमानसे बालकके मुखपर विषादकी रेखा खिंच गयी! गरीब क्या करता! रोने लगा।

भगवान्की लीला बड़ी विचित्र है, वह कब किस सूत्रसे क्या करना चाहते हैं, किसीको कुछ भी पता नहीं लगता। नौकरने दूधको कटोरेमें उँडेला, कटोरा भर गया, पर दूध पूरा नहीं हुआ; उसने एक गिलास उठाया, वह भी भर गया, पर दूध ज्यों-का-त्यों रहा, आखिर एक बाल्टीमें डालना आरम्भ किया, वह भी भर गयी। तब नौकरने घबराकर गुरु महाराजके पास जाकर सारा वृत्तान्त सुनाया। श्राद्धके लिये बहुत-से विद्वान् ब्राह्मण एकत्र हो रहे थे, इस आश्चर्य-घटनाको सुनकर सभी वहाँ दौड़े आये। देखते हैं, एक छोटे-से लोटेमें दूध भरा है, पास ही एक बाल्टी और कई बर्तनों में दूध छलक रहा है। गुरुजीने नौकरसे कहा, 'जरा मेरे सामने तो डालो।'

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    अनुक्रम

  1. गोविन्द
  2. मोहन
  3. धन्ना जाट
  4. चन्द्रहास
  5. सुधन्वा

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