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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
व्याख्यान
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स्वप्नों में प्रतीकात्मकता*
हमने देखा था कि स्वप्नों में विपर्यास, जो हमें उन्हें समझने से रोकता है,
सेन्सरशिप या काट-छांट की प्रवृत्ति की क्रिया के कारण होता है-यह क्रिया
अस्वीकार्य अचेतन इच्छा-आवेगों के विरुद्ध चलती है। पर हमने यह नहीं कहा है
कि विपर्यास का एकमात्र कारण सेन्सरशिप या काट-छांट है, और सच तो यह है कि
स्वप्नों का और आगे अध्ययन करने से यह पता चलता है कि इस परिणाम में सहायता
देने वाले कुछ और भी कारण हैं। कहने का आशय यह हुआ कि यदि सेन्सरशिप न रहे तो
भी हम स्वप्नों को समझने में असमर्थ रहेंगे, तथा व्यक्त स्वप्न और गुप्त
स्वप्नविचार अभिन्न नहीं होंगे।
स्वप्नों की अस्पष्टता का यह दूसरा कारण, विपर्यास का यह एक और सहायक, तब
हमारे सामने आता है जब हमें अपनी विधि में एक कमी या खाली जगह का पता चलता
है। मैं आपसे पहले ही कह चुका है कि कई बार विश्लेषण के अधीन व्यक्तियों का
अपने स्वप्नों के एक-एक पृथक अवयव से सचमुच कोई साहचर्य नहीं होता, पर यह बात
जितनी बार वे कहते हैं उतनी बार सच नहीं होती। बहुत-से उदाहरणों में धीरज और
परिश्रम से वह साहचर्य प्रेरित करके निकाला जा सकता है, पर फिर भी कुछ उदाहरण
ऐसे रह जाते हैं जिनमें साहचर्य बिलकुल नहीं मिलता; अथवा यदि अन्त में कोई
चीज़ ज़बरदस्ती करने पर निकल भी आई तो यह वह नहीं होती जिसकी हमें आवश्यकता
है। यदि यह बात मनोविश्लेषण द्वारा किए जा रहे इलाज में होती है तो इसका एक
विशेष अर्थ होता है जिसका यहां कोई सम्बन्ध नहीं है, पर यह सामान्य लोगों के
स्वप्नों के निर्वचन में, या तब भी होती है जब हम स्वयं अपने स्वप्नों का
निर्वचन करते हैं। इन परिस्थितियों से जब हमें यह निश्चय हो जाए कि कितना भी
ज़ोर डालने से कोई लाभ नहीं, तब अन्त में हमें यह पता चलता है कि जहां विशेष
स्वप्न-अवयवों का सवाल होता है वहां यह अप्रिय स्थिति नियमित रूप से सामने
आती है; और अब हम किसी नये सिद्धान्त को कार्य करता हुआ देखने लगते हैं, जबकि
पहले हमने सोचा था कि यह सिर्फ एक अपवाद है जिसमें हमारी विधि विफल हो गई है।
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* Symbolism
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