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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
स्वप्नतन्त्र का तीसरा कार्य मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सबसे अधिक मनोरंजक है।
इसमें विचार दृष्टिगम्य प्रतिबिम्ब1 में रूपान्तरित हो जाते हैं। यह बात
अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि स्वप्न-विचारों की हर चीज़ इस तरह रूपान्तरित
नहीं होती; बहुत-सी चीज़ अपने मूल रूप में कायम रहती है और व्यक्त स्वप्न में
भी स्वप्नद्रष्टा के विचार या ज्ञान के रूप में दिखाई देती है; दूसरी बात यह
है, कि विचारों का रूपान्तर सिर्फ इसी रूप में नहीं होता कि वे दृष्टिगम्य
प्रतिबिम्बों का रूप ग्रहण कर लें; पर फिर भी स्वप्नों के निर्माण में यह
अनिवार्य विशेषता है, और जैसा कि हम जानते हैं, स्वप्नतन्त्र का यह भाग सिर्फ
एक और अवस्था को छोड़कर, सबसे कम बदलता है। इसके अतिरिक्त, अलग-अलग
स्वप्न-अवयवों के लिए सुघट्य शब्दनिरूपण के प्रक्रम से हम पहले ही परिचित
हैं।
स्पष्ट है कि कार्य आसान नहीं, इसकी कठिनाई का कुछ अन्दाज़ा लगाने के लिए यह
कल्पना कीजिए कि आपको किसी समाचारपत्र के राजनीतिक अग्रलेख के स्थान पर कुछ
चित्र बनाने हैं। अब आपको चित्रलिपि ग्रहण करनी होगी और वर्णमाला वाली लिपि
छोड़नी होगी। लेख में उल्लिखित व्यक्तियों और ठोस वस्तुओं का निरूपण चित्र के
रूप में, आसानी से, और शायद अधिक अच्छे तरीके से किया जा सकता है; पर अमूर्त
शब्दों तथा सम्बन्धवाचक शब्दों जैसे विभक्तियां, संयोजक शब्द आदि को चित्रित
करने में कठिनाई होगी। अमूर्त शब्दों को चित्रित करने में आप सब तरह की
युक्तियां काम में लाएंगे; उदाहरण के लिए लेख के मूल पाठ को आप ऐसे शब्दों
में बदलने की कोशिश करेंगे जो शायद परिचित तो कम होंगे पर अधिक मूर्त, और
इसलिए आसानी से निरूपण योग्य होंगे। इससे आपको इस तथ्य का ध्यान आएगा कि
अधिकतर अमर्त शब्द शरू में मर्त थे और उनका मल अर्थ जाता रहा है, और इसलिए
जहां कहीं सम्भव होगा, आप इन शब्दों के शुरू के मूर्त अर्थ को पकड़ेंगे। इस
प्रकार आपको यह सोचकर प्रसन्नता होगी कि किसी वस्तु के 'धारण' (अर्थात्
स्वामित्व) को आप उसके शब्दार्थ के अनुसार धारण करने के रूप में निरूपित कर
सकते हैं। स्वप्नतन्त्र भी ठीक इसी तरह चलता है। ऐसी परिस्थितियों में आप
चित्रण की बहुत यथार्थता की आशा नहीं कर सकते, और न इस बात पर आपत्ति कर सकते
हैं कि स्वप्नतन्त्र में किसी ऐसे अवयव की जगह, जिसे चित्ररूप में लाना कठिन
है, जैसे विवाह की प्रतिज्ञाओं को भंग करने का मनोबिम्ब, किसी और तरह का भंग
या तोड़ना, जैसे बांह या टांग का तोड़ना, आ गया है। इस तरह आप वर्णलिपि को
चित्रलिपि में परिवर्तित करने की कठिनाई कुछ हद तक दूर कर सकते हैं। (इन
पृष्ठों को शुद्ध करते हुए मेरी दृष्टि अखबार के एक अनुच्छेद पर पड़ी, जिससे
उपर्युक्त बात की अचानक ही पुष्टि होती है। वह अनुच्छेद मैं यहां प्रस्तुत
करता हूँ) :
'ईश्वरीय बदला'
विवाह की प्रतिज्ञा तोड़ने पर बांह टूटी
रिज़र्व फौज के एक सैनिक की पत्नी अन्ना एम० ने क्लीमेण्टाइन के पर
पातिव्रत्य भंग करने का आरोप लगाया। उसने कहा कि क्लीमेण्टाइन के० का अपने
पति के र्मोचे पर चले जाने के दिनों में कार्ल एम० से अवैध सम्बन्ध था, जबकि
उसका पति उसे सत्तर क्राउन प्रतिमास भेज रहा था। इसके अलावा, उसको अन्ना के
पति से भी बहुत-सा धन मिला था, जबकि अन्ना और उसके बच्चों को भूख और मुसीबत
में दिन गुजारने पड़ते थे। अन्ना ने अपने आरोप में यह भी कहा कि मेरे पति के
कुछ साथियों ने मुझे सूचना दी है कि मेरा पति और क्लीमेण्टाइन इकट्ठे शराबघर
में गए और वहां बहुत रात तक शराब पीते रहे। क्लीमेण्टाइन ने एक बार कई
सैनिकों के सामने मेरे पति से सचमुच पूछा था कि जल्दी ही अपनी 'बुढ़िया औरत'
को छोड़कर मेरे पास आ जाओगे या नहीं, और जिस मकान में क्लीमेण्टाइन रहती है
उसके चौकीदार ने मेरे पति को क्लीमेण्टाइन के कमरे में बिलकुल कपड़े उतारे
हुए देखा है।
कल लियोपोर्डस्टैड में क्लीमेण्टाइन ने एक मेजिस्ट्रेट के सामने कहा कि मैं
कार्ल एम० को बिलकुल नहीं जानती। हमारे गोपनीय सम्बन्ध का तो प्रश्न ही नहीं
पैदा होता।
पर एक गवाह एलबर्टाइन ने कहा कि मैंने क्लीमेण्टाइन को अन्ना के पति को चूमते
देखा है, मझे देखकर क्लीमेण्टाइन घबरा गई थी। कार्ल ने, जिसे पहले गवाह के
तौर पर बुलाया गया था और जिसने तब क्लीमेण्टाइन से अपना गोपनीय सम्बन्ध होने
की बात से इनकार किया था, कल मेजिस्ट्रेट को एक पत्र दिया। इसमें गवाह ने
अपने पहले के इनकार को वापस ले लिया था, और यह स्वीकार किया था कि पहले जून
तक उसका क्लीमेण्टाइन के साथ अवैध सम्बन्ध जारी था। पहले मैंने क्लीमेण्टाइन
के साथ अपने सम्बन्ध से इस कारण इनकार किया था क्योंकि वह, मामला अदालत में
आने से पहले, मेरे पास आई और उसने घुटने टेककर मुझसे कहा कि मैं कुछ न कहूं,
और उसकी रक्षा करूं। 'आज,' गवाह ने लिखा था, 'मैं अदालत के सामने सारी बात
सच-सच कह देने को मजबूर हो गया हूं, क्योंकि मेरी बायीं बांह टूट गई है, और
इसे मैं अपने अपराध का ईश्वर द्वारा दिया गया दण्ड समझता हूं।'
जज ने फैसला किया कि दण्डनीय अपराध हुए इतने दिन हो चुके हैं कि अब उस पर
कार्यवाही नहीं हो सकती। इस पर आरोप लगाने वाली ने अपना आरोप वापस ले लिया और
अभियुक्ता को बरी कर दिया गया।'
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1. Visual image
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