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लेख-निबंध >> झंकार

झंकार

पद्मा राठी

प्रकाशक : संदेश प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8871
आईएसबीएन :0000000000

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जीवन के लिये प्रभावकारी लेखों का अनुपम संग्रह

Ek Break Ke Baad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत संग्रह मे अन्तर्नाद ही वह तेजस्वी भाव है जो वाचा के माध्यम से अपन प्रभाव बनाये हुये है पृथ्वीतल पर हमार पहला सांस स्वर आजीवन साथ निभाता है। हमारे में गूंथा हुआ एक धागे की तरह शब्द हमारे कार्यो में परिणति लाता है वरना शुष्कता निर्माण होती।

जीवन उन्ही का सार्थक है जो है कर्मयोगी या है मर्मयोगी, जिनसे घर बार संसार दिखना ही काफी नही होता इसी घर संसार मे द्वैत की छाया मे अद्वैतवाद का भासमान होना यांनी मनसोक्त संवाद जो स्पर्श करता है हमारे हृदय पटल को। अतएव सुख का साम्राज्य अपने विचारों मे बसता हु्आ झलकता है। इसी आवाज को झंकार कह सकते है जो बरबस अपनी और सबका ध्यान खीचती है। मन से मन का जुडन, जिसमे छुपी है एक विशिष्ट जीवन दृष्टि व जीवन चिन्तन। जिंदगी मे कई मिलते है कई बिछुडते है पर उनके विचार ह्रदय मे बसते है।


व्यक्तित्व परीक्षा ऐसी भी

एक साहूकार को तीन बहुएं आई थी। तीनो ही बड खानदान की सुसंस्कृत जिम्मेदारी संभालने वाली थी। घर के सब काम पहले हाथ से ही किया करते है। सिर्फ खेत खलिहान मे ही हाली बरसोदया रखते थे और वे ही घर के पीछवाडे रहने वाले बा़डे मे मवेशियो की साल संभाल करते थे। साफ सफाई गोबर पूंदा और घास बगरी की उचित मात्रा मे मवेशीयो के सामने रखना सुबह चरने के लिए छोडना रात को बांधना इत्यादि बडे खुरदरा काम करते थे। इन्हे चोक के इस पार आने की भी मनाही होती थी। जब कृषि की उपज तैयार हो जाती तो बैलगाडियो मे भरकर कोठे में तोलकर रखी जाती थी। यह सब काम मजदूर वर्ग करते थे पर निगरानी सेठजी की ही होती थी। एक समय सेठजी ने एक बर्तन मे चावल लिए जो नए नए ही खेत से आएं थे। उन्होने काम मे व्यस्त रहते हुए अपनी बहुओ को देखा था। यह कोई नई बात नहीं थी। तब की परिपाटी ही ऐसी थी।

सेठजी अंदर आए और घर बुहारती हुई बहू को मुठ्टी भर चावल दिए और बोले लो, सम्भालो। बहू ने हाथ बढाकर ले लिए और वहीं कचरे मे डाल दिए और मन ही मन बोला इतने से को क्या संभालना। अपने तो भगवान की दया से कोठे के कोठे भरे पडे है ओर अपने खेत भी चांदी की तरह चांवल उगल रहे हैं। सुसराजी भी बैठे बिठाये कुछ भी संभालने को दे देता है।

थोडी अंदर गए तो दुसरी बहू रसोईघर मे भोजन तैयार कर रही थी। उन्होंने हल्की मुट्ढी भर चांवल देत हुए कहा -बिंदणी। तब बिंदणी बोली हां सुसराजी दे देवो। और उस बहू ने रसोई मे चांवल का बर्तन रखा उसमे डाल दिए। बात आई गई हो गई। अब सुसराजी अंदर पहुचे तो तिसरी बहू कुछ विचारो मे डुबी हुई पीरन्डे मे पानी भरने के लिए कूए से पानी खीच रही थी और भर रही थी। उसके पास सेठजी पहुचे और बोले बिंदणी ये लो चांवल संभालो। इस प्रकार मुट्ढी भर चावल दे दिए। .....

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