कहानी संग्रह >> नारी वेदना नारी वेदनासावित्री देवी
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यशोधरा, वैदेही और द्रौपदी के जीवन में नारी की वेदना को चित्रित करने का सफल प्रयास सावित्री देवी ने किया है....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
यशोधरा उवाच - राजकुमार सिद्धार्थ!
आपको याद होगा आपके पिता महाराज शुद्धोधन ने कपिलवस्तु में एक उत्सव का आयोजन किया था। जिसका उद्देश्य था आपके उपयुक्त आपकी जीवन संगिनी की खोज। आसपास के राज्यों की भी सुन्दरियाँ उसमें आमंत्रित की गईं थीं। उनमें से प्रत्येक को पंक्तिबद्ध होकर आपके हाथ से बारी-बारी से उपहार लेना था। अनेकों राजकुमारियाँ उपहार लेकर चली गईं। जब आपकी यशोधरा की बारी आई तो आपने मुझे एक बार देखा और अनायास ही उपहार देने के स्थान पर अपने कंठ से अपनी माला उतार कर मेरे गले में डाल दी। इतने में शंख बज उठे और जन समुदाय में फुसफुसाहट होने लगी कि राजकुमार सिद्धार्थ ने यशोधरा को पसंद कर लिया है। मैं भी मन ही मन अपने सौभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी।
उस समय के सुन्दरतम राजकुमार की मैं जीवन संगिनी बनने जा रही थी। उससे आगे की घटनाएं मुझे अब स्वप्नवत लग रही है। आपके साथ मैं चिर-बंधन में बंध गई थी। सुख के वे पल जल्दी ही बीत गये। राजकुमार सिद्धार्थ अब मेरे आर्यपुत्र बन चुके थे। फिर हम दोनों के बीच राहुल ने आकर मुझे हर्षातिरेक से भर दिया।
परन्तु अचानक ही वह घटना घटी जिसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी। एक रात आप बिना कुछ बताये मुझे और राहुल को छोड़कर किसी अज्ञात स्थान को चल दिये। पूछने पर पता चला कि आप बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु इन तीनों का उपाय खोजने गये हैं।
मेरी आशा सहचरी ने मुझे भरोसा दिलाया था कि आप उपर्युक्त उपाय खोजकर शीघ्र ही मेरे पास लौटेंगे।
परन्तु ऐसा न हो सका।
आपको याद होगा आपके पिता महाराज शुद्धोधन ने कपिलवस्तु में एक उत्सव का आयोजन किया था। जिसका उद्देश्य था आपके उपयुक्त आपकी जीवन संगिनी की खोज। आसपास के राज्यों की भी सुन्दरियाँ उसमें आमंत्रित की गईं थीं। उनमें से प्रत्येक को पंक्तिबद्ध होकर आपके हाथ से बारी-बारी से उपहार लेना था। अनेकों राजकुमारियाँ उपहार लेकर चली गईं। जब आपकी यशोधरा की बारी आई तो आपने मुझे एक बार देखा और अनायास ही उपहार देने के स्थान पर अपने कंठ से अपनी माला उतार कर मेरे गले में डाल दी। इतने में शंख बज उठे और जन समुदाय में फुसफुसाहट होने लगी कि राजकुमार सिद्धार्थ ने यशोधरा को पसंद कर लिया है। मैं भी मन ही मन अपने सौभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी।
उस समय के सुन्दरतम राजकुमार की मैं जीवन संगिनी बनने जा रही थी। उससे आगे की घटनाएं मुझे अब स्वप्नवत लग रही है। आपके साथ मैं चिर-बंधन में बंध गई थी। सुख के वे पल जल्दी ही बीत गये। राजकुमार सिद्धार्थ अब मेरे आर्यपुत्र बन चुके थे। फिर हम दोनों के बीच राहुल ने आकर मुझे हर्षातिरेक से भर दिया।
परन्तु अचानक ही वह घटना घटी जिसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी। एक रात आप बिना कुछ बताये मुझे और राहुल को छोड़कर किसी अज्ञात स्थान को चल दिये। पूछने पर पता चला कि आप बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु इन तीनों का उपाय खोजने गये हैं।
मेरी आशा सहचरी ने मुझे भरोसा दिलाया था कि आप उपर्युक्त उपाय खोजकर शीघ्र ही मेरे पास लौटेंगे।
परन्तु ऐसा न हो सका।
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