इतिहास और राजनीति >> वैचारिक स्वराज्य वैचारिक स्वराज्यरामेश्वर प्रसाद मिश्र
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किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रज्ञा एवं पुरुषार्थ के फलीभूत होने लिए आवश्यक है कि..
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रज्ञा एवं पुरुषार्थ के फलीभूत होने लिए आवश्यक है कि उसका वैचारिक अधिष्ठान उसकी अपनी सांस्कृतिक परम्परा में स्थित हो। अन्यथा पुरुषार्थ कुंठित होगा एवं जो फलीभूत होगा, वह भी अन्यों के सेवा में नियोजित होगा।
भारत में शिक्षा, न्याय, वाणिज्य, शासन, प्रशासन तथा उत्कर्ष एवं पुरुषार्थ सम्बन्धी सम्पूर्ण घटनाएं यूरोकेन्द्रित चिंतन से प्रभावित है तथा इंडिया एक्ट 1935 की निरंतरता में ही शासन का विधान चल रहा है।
वैचारिक स्वाराज्य के लिये आवश्यक है कि आत्मबोध, जगत्बोध, विश्वदृष्टि, इतिहास, शिक्षा, राज्य, न्याय, जीवन-लक्ष्य आदि विषयों में आत्म-स्मृति जीवंत रहे तथा भारतीय विद्या - परम्पराएं पुनः प्रतिष्ठित होकर प्रवाहित हों।
प्रस्तुत पुस्तक इसी के आधार-सूत्र प्रस्तुत करती है।
भारत में शिक्षा, न्याय, वाणिज्य, शासन, प्रशासन तथा उत्कर्ष एवं पुरुषार्थ सम्बन्धी सम्पूर्ण घटनाएं यूरोकेन्द्रित चिंतन से प्रभावित है तथा इंडिया एक्ट 1935 की निरंतरता में ही शासन का विधान चल रहा है।
वैचारिक स्वाराज्य के लिये आवश्यक है कि आत्मबोध, जगत्बोध, विश्वदृष्टि, इतिहास, शिक्षा, राज्य, न्याय, जीवन-लक्ष्य आदि विषयों में आत्म-स्मृति जीवंत रहे तथा भारतीय विद्या - परम्पराएं पुनः प्रतिष्ठित होकर प्रवाहित हों।
प्रस्तुत पुस्तक इसी के आधार-सूत्र प्रस्तुत करती है।
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