भाषा एवं साहित्य >> अमीर खुसरो का हिन्दवी काव्य अमीर खुसरो का हिन्दवी काव्यगोपी चंद नारंग
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अमीर खुसरो के नांम से जो भी हिन्दी काव्य प्रचलित है वह जनश्रुति का हिस्सा है
Ek Break Ke Baad
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मै 1947 ई. से अमीर खुसरो के हिन्दी उर्दू काव्य की खोज मे था अमीर खुसरो के नांम से जो भी हिन्दी काव्य प्रचलित है वह जनश्रुति का हिस्सा है और उसका कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नही है। मुझे दरअसल अमीर खुसरो हिन्दी काव्य की उन पांडुलिपियो की तलाश थी जो किसी जमाने मे अवध के शाही पुस्तकालयो मे सुरक्षित थी और जिनका जिक्र जर्मन मे शोधकर्ता डा. श्प्रिगर ने अपने कैटेलॉग मे किया था और 1852 मे जर्मल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी बगाल मे अमीर खुसरो के हिन्दी काव्य के बारे मे एक लेख भी लिखा था सौभाग्य से इनमे से एक पांडुलिपि मुझे बर्लिन प्रति को पेश किया जा रहा है इनमे से छह पहेलियाँ वे है जिन्हे श्प्रिगर ने अपने लेख मे प्रकाशित किया था बाक्री 144 पहेलिया बिल्कुल नई है और पहली बार प्रकाश मे लाई जा रही है पहेलियो के शुध्द पाठ के साथ हाशिये मे जरुरी आर्मी संकेत भी कर दिये है जिनसे अन्दाजा होगा कि शिल्प और सौन्दर्य की दृष्टि से ये कितनी उच्चकोटि की रचनाएँ है इनके प्रकाशन से न केवल हिन्दी और उर्दू के प्राचीन इतिहास पर शोध करने वाले के लिए नई सामग्री उपलब्ध होगी वरन हमारे लोक साहित्य का भी एक बिल्कुल नया अध्याय सामने आएगा इस पुस्तक मे श्प्रिगंर संग्रह की बर्लिन प्रति पहली बार छापी जा रही है ।
मै बर्लिन के स्टाटस बिब्लियोथिक का कृतज्ञ हूँ कि उन्होने श्प्रिंगर संग्रहालय की प्रति के प्रकाशन के लिए उसकी नक्ल करने की अनुमति प्रदान की कुछ पुस्तको और प्रतिलिपियो की प्राप्ति मे बडी कठिनाई का सामना हुआ। डॉ ज्ञानचंद जैन ने अपने व्यक्तिगत संग्रह से श्प्रिंगर के 1852 वाले लेख की प्रतिलिपि सुलभ कराई। श्प्रिंगर के प्रोफेसर गोपीचन्द नारंग ने केवल श्प्रिंगर संग्रह की प्रति से प्राप्त पहेलियो को ही इस पुस्तक मे एकत्र नही किया वरन उन्होने अपनी पुस्तक मे भूमिका लिखकर अमीर खुसरो तथा उनके काव्य के सम्बन्ध मे प्रचलित भ्रांतियो का निराकरण भी किया है। एक सौ ग्यारह पृष्ठ के इस सारगर्भित भूमिका को प्रोफेसर नारंग ने पूरी तरह अनुसंधान की वैज्ञीवुक पध्दति से लिखा है तर्क प्रमाणपूर्ण लिखी गयी विस्तृत भूमिका खुसरो के हिन्दी या हिन्दवी काव्य पर पडे धुंधले आवरण को हटाकर सही जानकारी का व्दार खोल देती है। इस प्रकार की शोध पूर्ण सामग्री साधारण पाठक को एक दर्जन ग्रंथ पढकर भी नही मिल सकती जैसी इस इस विव्दतापूर्ण भूमिका मे एकत्र की गयी है। अमीर खुसरो का हिन्दवी काव्य के प्रकाशन से हिन्दी और उर्दू साहित्य के इतिहासो मे खुसरो का प्रमाणिक रुप से वर्णन सम्भव हो सकेगा।
अब इन नयी पहेलियो का प्रमाणिक पाठ पढकर हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखक अमीर खुसरो को हिन्दवी(खडी बोली )का सर्वप्रथम कवि ठहरा सकेगे प्रोफेसर नारंग के व्दारा संग्रहित एवं स्वसंपादित इस पुस्तक से हम निभ्रान्त रुप स् खुसरो को खडी बोली का समर्थ कवि मानने मे गर्व का अनुभव करेगे। मै प्रोफेसर नारंग के इस काव्य को स्तरीय शोध कार्य मानता हुँ और मेरा विश्वास है कि भविष्य मे हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखको को इस ग्रंथ एक ओर जहाँ अमीर खुसरो की 150 पहेलियो का प्रमाणिक पाठ प्रस्तुत करता है वहाँ साथ ही साथ खुसरो रचनाधर्मिता तथा भाषाविषयक जानकारी पर भी इससे अच्छा प्रकाश पडता है। प्रोफेसर गोपीचन्द नारंग इस विव्दतापुर्ण शोध कार्य के लिए हिन्दी और सौहार्द की तो श्रीवृध्दि होती है साम्प्रदायिक उद्देश्य समाज का हित सम्पादन इसी पकार के कार्यो से होता है मै प्रोफेसर नारंग का इस महत्वपुर्ण कार्य के लिए साधुववाद देता हूं आज जब और मुसलमान अपनी गंगा जमुनी संस्कृति की स्मृध्दि रचनात्मकता और सौन्दर्य को भुलाकर एक दूसरे से गहरे शक और वितृष्णा के साथ पेश आ रहे है हमारी साझ संस्कृति के आदि पुरुषो मे से एक अमीर खुसरो का स्मरण शायद साहित्य प्रेमियो के विवेक को कुछ झकझोर जाए वे हिन्दवी मे शेर कहने वाले अपने परवर्ती तुलसीदास की श्रेणी के उन कवियो मे से थे जिन्होने जनता के मुहावरे के लोच और गहराई को समझा और क्लासीकी भाषा के ज्ञान से संवार कर कालातीत साहित्य की रचना की। उर्दू फा़रसी के गुणी विव्दान डॉ. गोपीचन्द नारंग ने बर्लिन के श्प्रिंगर संग्रहालय मे से खुसरो की 150 पहेलियो वाली वह दुर्लभ पाण्डुलिपि अन्ततः ढूंढ ही निकाली जिसके व्दारा श्प्रिंगर महोदय व्दारा उदधृत छ पहेलियो के अतिरिक्त 144 पहेलियां पहली बार प्रकाश मे आयी है निश्चय ही इनका सम्पादक और प्रस्तितीकरण दुरुह रहा होगा लेकिन डाक्टर नारंन इसे बखूबी निभा ले गए है पुस्तक का नूर नबी अब्बासी व्दारा किया गिन्दी अनुवाद भी सहज तथा बोधगम्य है। उर्दू से अनूदित हो ऐसी स्वस्थ समृध्द रचनाएं लगातार हिन्दी को मिलती रहे इससे बडी श्रद्धांजली खुंसरी को और क्या दी जा सकती है।
मै बर्लिन के स्टाटस बिब्लियोथिक का कृतज्ञ हूँ कि उन्होने श्प्रिंगर संग्रहालय की प्रति के प्रकाशन के लिए उसकी नक्ल करने की अनुमति प्रदान की कुछ पुस्तको और प्रतिलिपियो की प्राप्ति मे बडी कठिनाई का सामना हुआ। डॉ ज्ञानचंद जैन ने अपने व्यक्तिगत संग्रह से श्प्रिंगर के 1852 वाले लेख की प्रतिलिपि सुलभ कराई। श्प्रिंगर के प्रोफेसर गोपीचन्द नारंग ने केवल श्प्रिंगर संग्रह की प्रति से प्राप्त पहेलियो को ही इस पुस्तक मे एकत्र नही किया वरन उन्होने अपनी पुस्तक मे भूमिका लिखकर अमीर खुसरो तथा उनके काव्य के सम्बन्ध मे प्रचलित भ्रांतियो का निराकरण भी किया है। एक सौ ग्यारह पृष्ठ के इस सारगर्भित भूमिका को प्रोफेसर नारंग ने पूरी तरह अनुसंधान की वैज्ञीवुक पध्दति से लिखा है तर्क प्रमाणपूर्ण लिखी गयी विस्तृत भूमिका खुसरो के हिन्दी या हिन्दवी काव्य पर पडे धुंधले आवरण को हटाकर सही जानकारी का व्दार खोल देती है। इस प्रकार की शोध पूर्ण सामग्री साधारण पाठक को एक दर्जन ग्रंथ पढकर भी नही मिल सकती जैसी इस इस विव्दतापूर्ण भूमिका मे एकत्र की गयी है। अमीर खुसरो का हिन्दवी काव्य के प्रकाशन से हिन्दी और उर्दू साहित्य के इतिहासो मे खुसरो का प्रमाणिक रुप से वर्णन सम्भव हो सकेगा।
अब इन नयी पहेलियो का प्रमाणिक पाठ पढकर हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखक अमीर खुसरो को हिन्दवी(खडी बोली )का सर्वप्रथम कवि ठहरा सकेगे प्रोफेसर नारंग के व्दारा संग्रहित एवं स्वसंपादित इस पुस्तक से हम निभ्रान्त रुप स् खुसरो को खडी बोली का समर्थ कवि मानने मे गर्व का अनुभव करेगे। मै प्रोफेसर नारंग के इस काव्य को स्तरीय शोध कार्य मानता हुँ और मेरा विश्वास है कि भविष्य मे हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखको को इस ग्रंथ एक ओर जहाँ अमीर खुसरो की 150 पहेलियो का प्रमाणिक पाठ प्रस्तुत करता है वहाँ साथ ही साथ खुसरो रचनाधर्मिता तथा भाषाविषयक जानकारी पर भी इससे अच्छा प्रकाश पडता है। प्रोफेसर गोपीचन्द नारंग इस विव्दतापुर्ण शोध कार्य के लिए हिन्दी और सौहार्द की तो श्रीवृध्दि होती है साम्प्रदायिक उद्देश्य समाज का हित सम्पादन इसी पकार के कार्यो से होता है मै प्रोफेसर नारंग का इस महत्वपुर्ण कार्य के लिए साधुववाद देता हूं आज जब और मुसलमान अपनी गंगा जमुनी संस्कृति की स्मृध्दि रचनात्मकता और सौन्दर्य को भुलाकर एक दूसरे से गहरे शक और वितृष्णा के साथ पेश आ रहे है हमारी साझ संस्कृति के आदि पुरुषो मे से एक अमीर खुसरो का स्मरण शायद साहित्य प्रेमियो के विवेक को कुछ झकझोर जाए वे हिन्दवी मे शेर कहने वाले अपने परवर्ती तुलसीदास की श्रेणी के उन कवियो मे से थे जिन्होने जनता के मुहावरे के लोच और गहराई को समझा और क्लासीकी भाषा के ज्ञान से संवार कर कालातीत साहित्य की रचना की। उर्दू फा़रसी के गुणी विव्दान डॉ. गोपीचन्द नारंग ने बर्लिन के श्प्रिंगर संग्रहालय मे से खुसरो की 150 पहेलियो वाली वह दुर्लभ पाण्डुलिपि अन्ततः ढूंढ ही निकाली जिसके व्दारा श्प्रिंगर महोदय व्दारा उदधृत छ पहेलियो के अतिरिक्त 144 पहेलियां पहली बार प्रकाश मे आयी है निश्चय ही इनका सम्पादक और प्रस्तितीकरण दुरुह रहा होगा लेकिन डाक्टर नारंन इसे बखूबी निभा ले गए है पुस्तक का नूर नबी अब्बासी व्दारा किया गिन्दी अनुवाद भी सहज तथा बोधगम्य है। उर्दू से अनूदित हो ऐसी स्वस्थ समृध्द रचनाएं लगातार हिन्दी को मिलती रहे इससे बडी श्रद्धांजली खुंसरी को और क्या दी जा सकती है।
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