धर्म एवं दर्शन >> क्यों ? क्यों ?किशनलाल शर्मा
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हिन्दू मान्यताओ और परंपराओ का सरल सुगम विवेचन
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आज धर्मशास्त्र मे शास्त्र एंव रूढि के नाम पर अनेक प्रथाएं और पंरपरांएं हैं जो समाज के लिए सर्वथा घातक हैं। इस बात को जानते हुए भी उनमें परिवर्तन का कोई साहस नहीं कर पाते हैं। जो समाज सुधारक पैदा होते हैं। वे अंधश्रद्धाजनित गलत रूढि पंरपराओं पर प्रहार तो करते हैं, किंतु इससे अंधश्रद्धा के साथ-साथ श्रद्धा, शाश्वत मूल्य तथा पारमार्थिक तत्व प्रणाली पर भी प्रहार होने लगते हैं। इस तरह मनुष्य अति प्रचीनकाल से भौतिकवादी एवं इहवादी तत्व प्रणाली में जकडा जाता रहा है।
जब आत्म परीक्षण का समय आता है, तब आत्म परीक्षण करते समय मानव के वैश्विक धर्म के शाश्वत मूल्य, चल मूल्यों में प्रविष्ट गलत रूढियों के भूशिर सहज रूप में आते है। इसलिए शाश्वत मूल्यों एवं चल मूल्यों का स्वरूप समझ लेना अनिवार्य हो जाता है। उदाहरण के लिए समाज धारण के निमित स्थापित हुई विवाह संस्था को शक्तिमान बनाने की दृष्टि से स्त्री-पुरूष वैधमार्ग से विवाह के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। यह धर्म का शाश्वत मूल्य है जबकि प्रांतीय विवाह पद्धति चल मूल्य है।
जब चल मूल्यो की रचना शुद्ध आचार, पवित्र विचार, विश्व कल्याण एवं पुरूषार्थ द्वारा होती है तब शाश्वत मूल्यों के साथ साथ चल मूल्यों की सहायता से निर्मित शास्त्र की इमारत मानव के लिए उपकारी सिद्ध होती है। आज समाज को ऐसी निर्दोष शास्त्र रचना की आवश्यकता है जो बुद्धि भेद एंव श्रद्धा भंग न करते हुए विविध भौतिक शास्त्रों की चौखट में सहज रूप में फिट बैठ सके। ऐसी शास्त्र रचना से समाज का सर्वांगीण अभ्युदय होते देर नहीं लगती।
शाश्वत एवं चल मूल्यों का निश्चित ज्ञान न होने के कारण ही त्रुटिवश विकृत संकेत रूढ़ होने लगते हैं। जब ये संकेत पीढी दर पीढ़ी रूढ़ हो जाते हैं तो इनका रूपांतर शिष्ट संकेतो में होने लगता है। यही शिष्ट संकेत कई बार शास्त्र-संकेत के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। यदि ऐसे तथाकथित शास्त्र-संकेत विकृत विचारों से युक्त हुए तो समाज लाभान्वित होने के बजाय रोगग्रस्त रूढियो के जाल में फंस जाता है। ऐसे समाज की पहले वैचारिक और बाद में सभी प्रकार से अधोगति होने लगती है।
ऐसे विकृत शास्त्र-संकेतों को नष्ट करने का एकमात्र साधन आधुनिक विविध ज्ञान शाखा के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है। जब इनका पीढी दर पीढी अंधानुकरण होता है तब इनको विज्ञान की कसौटी पर कसने की बात ध्यान में आती है।
इस पुस्तक में हिन्दू मान्यताओ और परंपराओ का सरल सुगम विवेचन वैज्ञानिक विधि से किया गया है।
श्राध्द क्यों.
हवन क्यो .
विवाह मे फेरे क्यो
पिण्डदान क्यो.
यंत्र का पूजन क्यो.
मूर्ति विसर्जन क्यो.
गो पूजन क्यो.
शनि पर तेल क्यो.
मूर्ति पूजा क्यो.
कन्यादान क्यो.
वट पीपल पूजन क्यो
कुंभ 12 वर्षां के बाद क्यों
कलश स्थापन क्यों
श्रावण माह मे शिव पूजन क्यों
मृतक दाह क्यों
परिक्रमा क्यों
कुश पवित्र क्यों
अभिषेक क्यों
पूजा के लिए विचार क्यों
सगोत्र विवाह क्यों नही
नवरात्रि पूजन क्यों
देवशयन क्यों
चातुर्मास्य क्यों
करवा चौथ पर चंद्रपूजन क्यों
जब आत्म परीक्षण का समय आता है, तब आत्म परीक्षण करते समय मानव के वैश्विक धर्म के शाश्वत मूल्य, चल मूल्यों में प्रविष्ट गलत रूढियों के भूशिर सहज रूप में आते है। इसलिए शाश्वत मूल्यों एवं चल मूल्यों का स्वरूप समझ लेना अनिवार्य हो जाता है। उदाहरण के लिए समाज धारण के निमित स्थापित हुई विवाह संस्था को शक्तिमान बनाने की दृष्टि से स्त्री-पुरूष वैधमार्ग से विवाह के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। यह धर्म का शाश्वत मूल्य है जबकि प्रांतीय विवाह पद्धति चल मूल्य है।
जब चल मूल्यो की रचना शुद्ध आचार, पवित्र विचार, विश्व कल्याण एवं पुरूषार्थ द्वारा होती है तब शाश्वत मूल्यों के साथ साथ चल मूल्यों की सहायता से निर्मित शास्त्र की इमारत मानव के लिए उपकारी सिद्ध होती है। आज समाज को ऐसी निर्दोष शास्त्र रचना की आवश्यकता है जो बुद्धि भेद एंव श्रद्धा भंग न करते हुए विविध भौतिक शास्त्रों की चौखट में सहज रूप में फिट बैठ सके। ऐसी शास्त्र रचना से समाज का सर्वांगीण अभ्युदय होते देर नहीं लगती।
शाश्वत एवं चल मूल्यों का निश्चित ज्ञान न होने के कारण ही त्रुटिवश विकृत संकेत रूढ़ होने लगते हैं। जब ये संकेत पीढी दर पीढ़ी रूढ़ हो जाते हैं तो इनका रूपांतर शिष्ट संकेतो में होने लगता है। यही शिष्ट संकेत कई बार शास्त्र-संकेत के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। यदि ऐसे तथाकथित शास्त्र-संकेत विकृत विचारों से युक्त हुए तो समाज लाभान्वित होने के बजाय रोगग्रस्त रूढियो के जाल में फंस जाता है। ऐसे समाज की पहले वैचारिक और बाद में सभी प्रकार से अधोगति होने लगती है।
ऐसे विकृत शास्त्र-संकेतों को नष्ट करने का एकमात्र साधन आधुनिक विविध ज्ञान शाखा के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है। जब इनका पीढी दर पीढी अंधानुकरण होता है तब इनको विज्ञान की कसौटी पर कसने की बात ध्यान में आती है।
इस पुस्तक में हिन्दू मान्यताओ और परंपराओ का सरल सुगम विवेचन वैज्ञानिक विधि से किया गया है।
श्राध्द क्यों.
हवन क्यो .
विवाह मे फेरे क्यो
पिण्डदान क्यो.
यंत्र का पूजन क्यो.
मूर्ति विसर्जन क्यो.
गो पूजन क्यो.
शनि पर तेल क्यो.
मूर्ति पूजा क्यो.
कन्यादान क्यो.
वट पीपल पूजन क्यो
कुंभ 12 वर्षां के बाद क्यों
कलश स्थापन क्यों
श्रावण माह मे शिव पूजन क्यों
मृतक दाह क्यों
परिक्रमा क्यों
कुश पवित्र क्यों
अभिषेक क्यों
पूजा के लिए विचार क्यों
सगोत्र विवाह क्यों नही
नवरात्रि पूजन क्यों
देवशयन क्यों
चातुर्मास्य क्यों
करवा चौथ पर चंद्रपूजन क्यों
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