धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
त्रिपुर भैरवी
क्षीयमान विश्व के अधिष्ठान दक्षिणामूर्ति कालभैरव और उनकी शक्ति त्रिपुर भैरवी हैं। 'ब्रह्मांड पुराण' में इन्हें गुप्त योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में चित्रित किया गया है। 'मत्स्य पुराण' में इनके त्रिपुर भैरवी, कोलेश भैरवी, रुद्र भैरवी, चैतन्य भैरवी तथा नित्या भैरवी आदि रूपों का वर्णन प्राप्त होता है। इंद्रियों पर विजय और सर्वत्र उत्कर्ष की प्राप्ति हेतु त्रिपुर भैरवी की उपासना का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। महाविद्याओं में इनका छठा स्थान है।
त्रिपुर भैरवी का मुख्य उपयोग घोर कर्म में होता है। इनके ध्यान का उल्लेख 'दुर्गा सप्तशती' के तीसरे अध्याय में महिषासुर वध के प्रसंग में हुआ है। इनका रंग लाल है। ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गले में मुंडमाला धारण करती हैं। और स्तनों पर रक्त चंदन का लेप करती हैं। ये हाथों में जपमाला, पुस्तक तथा वर और अभयमुद्रा धारण करती हैं। ये कमलासन पर विराजमान हैं। त्रिपुर भैरवी ने ही मधुपान करके महिष का हृदय विदीर्ण किया था। 'रुद्रयामल तंत्र' एवं ‘भैरवी कुल सर्वस्व' में इनकी उपासना तथा कवच का उल्लेख हुआ है। संकटों से मुक्ति पाने के लिए भी इनकी उपासना का विधान है।
त्रिपुर भैरवी घोरकर्म के लिए काल के विशेष अवस्थाजनित कारणों को भी शांत करने वाली शक्ति हैं। इनका अरुण वर्ण विमर्श का प्रतीक है। इनके गले में सुशोभित मुंडमाला ही वर्णमाला है। देवी के रक्तलिपि पयोधर रजोगुण संपन्न सृष्टि-प्रक्रिया के प्रतीक हैं। अक्ष जपमाला वर्ण समन्वय की प्रतीक है। पुस्तक ब्रह्मविद्या है, त्रिनेत्र वेदत्रयी हैं तथा स्मित हास करुणा है।
आगम ग्रंथों के अनुसार त्रिपुर भैरवी एकाक्षर रूप हैं। इनसे संपूर्ण भुवन प्रकाशित हो रहे हैं तथा अंत में इन्हीं में लय हो जाएंगे। अ से लेकर अ: तक सोलह वर्ण 'भैरव' कहलाते हैं तथा क से क्ष तक के वर्ण योनि अथवा 'भैरवी' कहे जाते हैं। 'स्वच्छंदोद्योत' के प्रथम पटल में इस पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसमें त्रिपुर भैरवी को योगीश्वरी के रूप में उमा बताया गया है। भगवान शंकर की साधना उपासना में निरत उमा का दृढ़ निश्चय स्वरूप ही त्रिपुर भैरवी का परिचायक है। त्रिपुर भैरवी की स्तुति में कहा गया है कि भैरवी सूक्ष्म वाक् तथा जगत के मूल कारण की अधिष्ठात्री देवी हैं।
त्रिपुर भैरवी के अनेक भेद हैं; यथा-सिद्धि भैरवी, चैतन्य भैरवी, भुवनेश्वरी भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षट्कटा भैरवी, नित्या भैरवी, कोलेशी भैरवी और रुद्र भैरवी आदि। सिद्धि भैरवी उत्तराम्नाय पीठ की देवी हैं। तथा नित्या भैरवी पश्चिमाम्नाय पीठ की देवी हैं। इनके उपासक स्वयं भगवान शिव हैं। रुद्र भैरवी दक्षिणाम्नाय पीठ की देवी हैं। इनके उपासक भगवान विष्णु हैं। त्रिपुर भैरवी के भैरव भगवान बटुक हैं।
‘मुंडमाला तंत्र' में त्रिपुर भैरवी को भगवान नृसिंह की अभिन्न शक्ति बताया गया है। सृष्टि में परिवर्तन होता रहता है। इसका मूल कारण आकर्षण एवं विकर्षण है। इस सृष्टि के परिवर्तन में क्षण-क्षण होने वाली भावी क्रिया की अधिष्ठात्र शक्ति ही वैदिक दृष्टि से 'त्रिपुर भैरवी' कही जाती है। त्रिपुर भैरवी की रात्रि का नाम 'कालरात्रि' तथा भैरव का नाम 'कालभैरव' है।
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