धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
कामाक्षी देवी
‘कामाक्षी' शब्द का अर्थ है-वह देवी जिसके नेत्रों से स्नेह उमड़ता है। कामाक्षी देवी को ‘कामकोटि अंबिका' और 'राजराजेश्वरी' भी कहा जाता है। ‘कामाक्षी विलास' में भगवती कामाक्षी की कथा इस प्रकार है-
भगवान शिव की पहली पत्नी का नाम सती था। सती के पिता प्रजापति दक्ष थे। दक्ष ने हरिद्वार के निकट कनखल में विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में सभी ऋषि, मुनि और देवताओं को आमंत्रित किया किंतु अपने दामाद भगवान शिव को द्वेष भाव के कारण निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में चली गईं। बिना निमंत्रण के आने पर उन्हें बहुत अपमान सहन करना पड़ा। उन्होंने अपना अपमान तो सहन कर लिया किंतु यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन न कर सकीं। उन्होंने योगानल में अपना शरीर भस्म कर दिया। इस अपराध का दंड दक्ष को भोगना पड़ा। वही सती पुनः पर्वतराज हिमवान के यहां पार्वती के रूप में अवतरित हुईं। उन्होंने जगत्पिता भगवान शिव को पुनः पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया।
‘कामाक्षी विलास' के अनुसार भगवती पार्वती ने भारत की दक्षिण दिशा में कांचीपुर में घोर तप किया था। पार्वती के तप की परीक्षा लेने के लिए पहले तो प्रलयकर्ता शिव ने सप्त ऋषियों को भेजा, फिर स्वयं कांचीपुर पहुंचे। प्रलयकर्ता के पहुंचते ही वहां प्रलय की बाढ़ उमड़ने लगी। चारों तरफ पानी की बाढ़ देखकर महादेवी पार्वती रेत के शिवलिंग को बचाने के लिए उसे अपनी दोनों भुजाओं में भरकर तेजी से आदिदेव शिव का मंत्र-पाठ करने लगीं। पार्वती की भक्ति से आशुतोष भगवान शिव प्रसन्न हो गए। महादेव शिव और महादेवी पार्वती के दिव्य मिलन से कांचीपुर धन्य हो गया।
मान्यता है कि कामाक्षी देवी पहले उग्र स्वरूपिणी थीं। तब उन्होंने कांचीपुर क्षेत्र में बंदकासुर का वध कर देवताओं को उनके अत्याचारों से मुक्त कराया था। ईसा से 500 वर्ष पूर्व यानी 2500 वर्ष पहले वेदांत प्रवर्तक आद्य जगतगुरु शंकराचार्य ने श्री कामाक्षी कामकोटि में भगवती राजराजेश्वरी की आराधना की थी और श्रीचक्र की स्थापना करके देवी को शांत किया था। तब से कामाक्षी देवी अपने शांत स्वरूप से भक्तों पर प्रेम की वर्षा करने लगीं।
भगवान शंकराचार्य के आग्रह पर ही कामाक्षी देवी कांचीपुर में निवास करने लगीं। जहां महादेव शिव और महादेवी पार्वती का मिलन हुआ था, वहां कामाक्षी देवी का भव्य मंदिर है। उस मंदिर में पार्वती राजराजेश्वरी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वे भक्तों का सब मनोरथ पूर्ण करने वाली, ऐश्वर्य-संपत्ति देने वाली और मुक्ति प्रदान करने वाली हैं। इस मंदिर में भगवान शंकराचार्य द्वारा शिला पर बनाया गया श्रीचक्र भी रखा है।
तमिल ग्रंथों में शक्ति-पूजा के तीन प्रमुख तीर्थ माने गए हैं। उनमें मदुराई में मीनाक्षी, काशी में विशालाक्षी और कांचीपुर में कामाक्षी को पूजा जाता है। तंत्र शास्त्र में सिद्ध शक्तिपीठों में अति जाग्रत तीन पीठ हैं-कामरूप कामाख्या, जलंधर और कामाक्षी। प्रसिद्ध तंत्र ग्रंथ 'सौभाग्य चिंतामणि' में कांची पीठ को आकाश पीठ का दर्जा दिया गया है।
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