धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
गजानन
गजाननः स विज्ञेयः सांख्येभ्यः सिद्धिदायकः।
लोभासुरग्रहर्ता वै आखुश्च प्रकीर्तितः॥
भगवान श्री गणेश का 'गजानन' नामक अवतार सांख्य-ब्रह्म का धारक है। उसे सांख्य योगियों के लिए सिद्धिदायक जानना चाहिए। प्रभु गजानन को लोभासुर का संहारक तथा मूषक वाहन पर चलने वाला कहा गया है।
एक बार देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर कैलास पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान शिव-पार्वती के दर्शन किए। कुबेर भगवती पार्वती के अनुपम सौंदर्य को मुग्ध दृष्टि से एकटक निहारने लगे। पार्वती उन्हें अपनी ओर निहारते देखकर अत्यंत क्रुद्ध हो गईं। भगवती की कोपदृष्टि से कुबेर भयभीत हो गए। उसी समय कुबेर से लोभासुर उत्पन्न हुआ। वह अत्यंत प्रतापी तथा बलवान था।
लोभासुर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास गया। उसने शुक्राचार्य के चरणों में प्रणाम कर उनसे शिष्य बनने का निवेदन किया। शुक्राचार्य ने उसे पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय की दीक्षा देकर तपस्या करने के लिए वन में भेज दिया। निर्जन वन में जाकर उस प्रबल असुर ने पहले स्नान किया। फिर भस्म धारण कर वह भगवान शिव का ध्यान करते हुए पंचाक्षरी मंत्र का जप करने लगा। वह अन्नजल को त्याग कर भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिए घोर तप में संलग्न हो गया। उसने दिव्य सहस्र वर्ष तक अखंड तप किया। उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए।
लोभासुर देवाधिदेव भगवान शिव के चरणों में प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगा। अवढरदानी भगवान शंकर ने वर देकर उसे तीनों लोकों में निर्भय कर दिया। भगवान शिव के अमोघ वर से निर्भय लोभासुर ने दैत्यों की विशाल सेना एकत्र की। उन असुरों के सहयोग से लोभासुर ने पहले पृथ्वी के समस्त राजाओं को जीत लिया, फिर अमरावती पर आक्रमण कर दिया। देवराज इंद्र को पराजित कर उसने अमरावती पर अधिकार कर लिया। ऐसी स्थिति में इंद्र भगवान विष्णु के पास गए तथा उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। भगवान विष्णु असुरों का संहार करने के लिए अपने वाहन गरुड़ पर चढ़कर वहां गए। भयानक संग्राम हुआ। भगवान शंकर के वर से अजेय लोभासुर के सामने उनको भी पराजय का मुंह देखना पड़ा।
विष्णु तथा अन्य देवताओं के रक्षक महादेव हैं-यह सोचकर लोभासुर ने अपना दूत शिव के पास भेजा। दूत ने उनसे कहा, "आप परम पराक्रमी लोभासुर से युद्ध कीजिए या पराजय स्वीकार कर कैलास को खाली कर दीजिए।''
भगवान शंकर ने अपने द्वारा दिए वरदान को स्मरण कर कैलास को छोड़ दिया। लोभासुर के आनंद की सीमा न रही। उसके राज्य में समस्त धर्म-कर्म समाप्त हो गए और पापों का नग्न नृत्य होने लगा। ब्राह्मण तथा ऋषि-मुनि यातना
सहने लगे। ऐसी स्थिति में रेभ्य मुनि के कहने पर देवताओं ने भगवान गणेश की उपासना की। तब प्रसन्न होकर गजानन प्रकट हुए और उन्होंने लोभासुर के अत्याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाने का वचन दिया।
गजानन ने भगवान शिव को लोभासुर के पास भेजा। भगवान शिव ने लोभासुर को प्रभु गजानन का संदेश सुनाया, “तुम गजानन की शरण ग्रहण कर शांतिपूर्वक जीवन बिताओ, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।"
लोभासुर के गुरु शुक्राचार्य ने भी भगवान गजानन की महिमा बताकर गजानन की शरण लेना कल्याणकारी बताया। लोभासुर ने गणेश-तत्व को समझ लिया। फिर वह भक्तिपूर्वक महाप्रभु के चरणों की वंदना करने लगा। शरणागत वत्सल गजानन ने उसे क्षमा करके पाताल भेज दिया। देवता और मुनि सुखी होकर गजानन का गुणगान करने लगे।
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