कविता संग्रह >> हँसो भी.. हँसाओ भी.. हँसो भी.. हँसाओ भी..हलीम ’आईना’
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वे जिस सरल भाषा में सामान्य-जन की पीड़ा को काव्यानुभूति का आधार बनाते हैं...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हलीम ’आइना’ प्रान्त के वे कवि हैं जिन्होंने साहित्य-काव्य मंच के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाओं में भी अपनी निरन्तर सक्रियता से ध्यान आकर्षित किया है। इन का एक विशिष्ट पाठक-समुदाय है जिस के वे प्रिय कवि हैं। वे जिस सरल भाषा में सामान्य-जन की पीड़ा को काव्यानुभूति का आधार बनाते हैं, वहीं वे सहज ही आम आदमी के हृदय तक अपनी बात पहुँचाने में समर्थ हो जाते हैं। उन का पहला काव्य-संग्रह हँसो भी.. हँसाओ भी... व्यंग्य कविताओं का संग्रह है। व्यंग्य क्या एक विधा है ? या शैली है ? यह प्रश्न विद्धानों के बीच में हमेशा से विवादों का विषय रहा है हलीम ’आइना’ कवि हैं, वे व्यंजना के आधार पर अपनी काव्य-भाषा को एक नया मुहावरा देते हैं जहाँ वे समसामयिक समस्याओं पर और जीवन में प्राप्त विसंगतियों पर प्रश्न-चिह्न लगाते हैं। उनके कुछ दोहे-
छत पर मोरा-मोरनी, बैठे आंखें भींच।
एक अबला का चीर जब दुष्ट ले गया खींच।।
जीवन भी इक व्यंग्य है इस को पढ़ ले यार।
जिसने खुद को पढ़ लिया, उस का बेड़ा पार।।
हलीम ’आइना’ की भाषा सहज और सरल है साथ ही कवि का वस्तु-चयन के प्रति आग्रह असाधारण है। हम जिस बात को महसूस करते हैं, उसे कहने में संकोच करते हैं। हलीम ’आइना’ बेझिझक अपनी बात कहते हैं और एक साधारण भारतीय समाज के प्रतिनिधि हैं, जहाँ किसी प्रकार के अभिजात्य का कोई मुलम्मा नहीं है। उनकी एक छोटी-सी कविता (क्षणिका) है -
भारतीय महिला की अजब कहानी,
रात को रानी सुबह नौकरानी।
हलीम ’आईना’ के पास आम आदमी तक पहुँचने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी के अनेक विषय हैं, जिनसे आम-जन निरन्तर संवेदित होता रहता है, ’वर्दी के पीछे क्या है ?’, ’जेबकतरी सभ्यता’, ’मुझे पाप का भागी मत बनाओ पापा !’, ’क्या हुआ कुछ नहीं’, ’ए.पी.ओ. होने का मजा’, काव्य परम्परा की वे महत्वपूर्ण कविताएँ हैं जो हास्य-व्यंग्य को श्रोता तक पहुँचाने में समर्थ हैं। हलीम ’आईना’ प्रान्त में वाचिक परम्परा के प्रतिनिधि कवि भी हैं।
अनुक्रम
1. भूमिका2. अराजक
3. समय को चुनौती
4. गोया ये भी मेरे दिल में है
5. ’आईना’ बोलता है
6. पेट बजाएँ ताली
7. ईद-दिवाली-होली
8. भटकन
9. गधा और आदमी
10. बुरा न मानो होली है:..!
11. मेरी नहीं आप की है कविता ...।
12. खुदाराम का कच्चा चिट्ठा
13. ...तो हम क्यों सुधरें?
14. फलाना-ढीमका
15. पैण्डुलम
16. तथाकथित सभ्य लोग...?
17. भेड़, जिस से डरते हैं भेड़िये...?
18. चोप्प... सफेद खून के...!
19. आदमी या कुत्ता
20. आदमी से अच्छा हूँ:..!
21. खुदा की खुदाई
22. कौओं की कानाबाती
23. पतंग बाजी
24. जर्दा नहीं खाऊँगा...!
25. आओ, पर्यावरण स्वस्थ बनाएँ!
26. एडवांस
27. सावधान! आगे एड्स है..!
28. पेट का भूगोल
29. बकरी
30. गुरु घण्टाली मन्त्र
31. इण्डिया इज द ग्रेट
32. दोषी कौन?
33. आत्मा की शान्ति
34. बाजार- भाव
35. अबूझ पहेली
36. कारण
37. कलयुगी द्रोणाचार्य
38. आनन्द कहाँ खो गया..?
39. फार्मूला
40. गुड़-गोबर
41. ईमानदारी की सजा
42. गजदन्ती मानसिकता
43. ए. पी. ओ. होने का मजा
44. भेड़चाल
45. क्या हुआ..? कुछ नहीं...
46. मुझे पाप का भागी, मत बनाओ पापा..?
47. अस्पताल, छोड़ भागा...?
48. जेबकटी सभ्यता
49. वर्दी के पीछे क्या है..?
50. काश! नए वर्ष में...?
51. कुण्डलियाँ
52. हाइकू-तिनके
53. विडम्बना- 1
54. विडम्बना- 2
55. विडम्बना- 3
56. इलेक्शन आया है:..
57. दोहे
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