अतिरिक्त >> काम कला के भेद काम कला के भेदआचार्य चतुरसेन
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यौन संबंधी सभी पहलुओं पर विशद जानकारी...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षामः, सोमनाथ, धर्मपुत्र और सोना और खून जैसी लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिन्दी के लोकप्रिय साहित्यकार होने के साथ आयुर्वेद के ‘आचार्य’ थे। उपन्यास और कहानियों के अतिरिक्त उन्होंने स्वास्थ्य ओर यौन संबंधों पर भी अनेक पुस्तकें लिखीं। उनका मानना था कि यौन संबंधी सुख ही दांपत्य की धुरी है। इसीलिए इस पुस्तक में उन्होंने यौन-संबंधों के विविध पहलुओं पर विशद जानकारी दी है, और साथ ही अलग-अलग देशों में व्याप्त धारणाओं, कुंठाओं पर भी प्रकाश डाला है। स्त्री और पुरुष की शारीरिक संरचनाओं और सहवास की सही विधि पर पाठक को विस्तृत और स्पष्ट जानकारी मिलेगी इस पुस्तक में। साथ ही यौन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए अनेक उपाय और उपचार दिए हैं।
हर युवा के लिए एक अत्यत उपयोगी पुस्तक !
पुरुषों और स्त्रियों के एकाकी जीवन व्यतीत करने के मैं सिद्धान्ततः विरुद्ध हूँ। मेरी खुली सम्मति है कि पृथ्वी पर कोई स्त्री और पुरुष मृत्युपर्यन्त एकाकी न रहे। परन्तु मैं परस्पर सुखी-तृप्त आप्यायित रहने के लिए स्त्री-पुरुष का आध्यात्मिक काम-सम्बन्ध चाहता हूँ, जो केवल एक-दूसरे के लिए अधिकाधिक त्याग में सीमित है। ऐसे ही परस्पर के लिए अधिकाधिक त्याग को मैं प्रेम कहता हूँ। परन्तु यह स्त्री-पुरुष का अधिकाधिक सहवास जहाँ दोनों को परम जीवन दान करता है, वहाँ केवल अवैज्ञानिक शारीरिक सहवास साक्षात् मृत्यु लाता है।
इस विषय में विज्ञान बहुत-सी महत्त्वपूर्ण बात बता सकता है। लोग इस विषय पर विस्तार से कुछ कहना-सुनना अश्लील समझते हैं। परन्तु विज्ञान कभी भी अश्लील नहीं है, खासकर काम-सम्बन्धी विज्ञान, जिसे बड़े-से-बड़े पुरुषों ने आत्मार्पण किया है और जो पृथ्वी पर, जीवन में सबसे अधिक मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण एवं पेचीदा है। यह वह विषय है कि जिसका जीवन से सबसे अधिक निकट सम्बन्ध है। इसके विषय में अनाड़ी रहकर प्राणों को खतरे में डालना कभी भी बुद्धिमानी की बात नहीं कही जा सकती।
यौवन के प्रभात में स्त्री पुरुष के लिए पृथ्वी की सबसे अधिक आकर्षक वस्तु है, परन्तु जीवन की दुपहरी ढलने के बाद एवं संध्या की बेला में वह पुरुष के लिए एक आवश्यक वस्तु हो जाती है। परमेश्वर की इस अप्रतिम देन का अधिकाधिक आनन्दलाभ वे ही उठा सकते हैं जो काम-कला के भेदों के ज्ञाता हैं। परन्तु व्यवहार में 99 प्रतिशत पुरुष इस विषय में अज्ञानी होते हैं और वे जीवन में नहीं जान पाते कि नारी से वह दुर्लभ रस कैसे प्राप्त किया जा सकता है, जिसके बल पर महान् से महान् वीरों ने जगत् को जय करने की सामर्थ्य प्राप्त की थी।
इस सम्बन्ध में पाश्चात्य तथा पूर्वीय काम-शास्त्रियों ने अनेक खोजपूर्ण और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। उनसे बहुत-सी महत्त्वपूर्ण बातों का सार लेकर तथा अपने अनुभव और विचार का सहारा लेकर हमने इस पुस्तक को लिखा है। यद्यपि यह पुस्तक इस विषय की पूरी पुस्तक नहीं है, फिर भी इसे जानने और समझने योग्य इतनी बातें आ गई हैं जितनी हिन्दी की किसी दूसरी पुस्तक में अभी तक नहीं प्रकाशित हुईं। हमें आशा है कि इससे बहुत गृहस्थों को लाभ होगा।
इस पुस्तक में कुछ बिल्कुल नए सिद्धान्त और विचार प्रकट किए गये हैं, जिनका मूल्य बारम्बार मनन करने और गम्भीरता से विचार करने पर मालूम होगा। एक बात मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि यह ग्रन्थ नवयुवकों के लिए कदाचित् उतना उपयोगी साबित न हो जितना प्रौढ़ सद्-गृहस्थों के लिए। वे इससे जितना लाभ उठाएँगे उतना ही मेरा परिश्रम सफल होगा।
भूमिका
इस विषय में विज्ञान बहुत-सी महत्त्वपूर्ण बात बता सकता है। लोग इस विषय पर विस्तार से कुछ कहना-सुनना अश्लील समझते हैं। परन्तु विज्ञान कभी भी अश्लील नहीं है, खासकर काम-सम्बन्धी विज्ञान, जिसे बड़े-से-बड़े पुरुषों ने आत्मार्पण किया है और जो पृथ्वी पर, जीवन में सबसे अधिक मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण एवं पेचीदा है। यह वह विषय है कि जिसका जीवन से सबसे अधिक निकट सम्बन्ध है। इसके विषय में अनाड़ी रहकर प्राणों को खतरे में डालना कभी भी बुद्धिमानी की बात नहीं कही जा सकती।
यौवन के प्रभात में स्त्री पुरुष के लिए पृथ्वी की सबसे अधिक आकर्षक वस्तु है, परन्तु जीवन की दुपहरी ढलने के बाद एवं संध्या की बेला में वह पुरुष के लिए एक आवश्यक वस्तु हो जाती है। परमेश्वर की इस अप्रतिम देन का अधिकाधिक आनन्दलाभ वे ही उठा सकते हैं जो काम-कला के भेदों के ज्ञाता हैं। परन्तु व्यवहार में 99 प्रतिशत पुरुष इस विषय में अज्ञानी होते हैं और वे जीवन में नहीं जान पाते कि नारी से वह दुर्लभ रस कैसे प्राप्त किया जा सकता है, जिसके बल पर महान् से महान् वीरों ने जगत् को जय करने की सामर्थ्य प्राप्त की थी।
इस सम्बन्ध में पाश्चात्य तथा पूर्वीय काम-शास्त्रियों ने अनेक खोजपूर्ण और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। उनसे बहुत-सी महत्त्वपूर्ण बातों का सार लेकर तथा अपने अनुभव और विचार का सहारा लेकर हमने इस पुस्तक को लिखा है। यद्यपि यह पुस्तक इस विषय की पूरी पुस्तक नहीं है, फिर भी इसे जानने और समझने योग्य इतनी बातें आ गई हैं जितनी हिन्दी की किसी दूसरी पुस्तक में अभी तक नहीं प्रकाशित हुईं। हमें आशा है कि इससे बहुत गृहस्थों को लाभ होगा।
इस पुस्तक में कुछ बिल्कुल नए सिद्धान्त और विचार प्रकट किए गये हैं, जिनका मूल्य बारम्बार मनन करने और गम्भीरता से विचार करने पर मालूम होगा। एक बात मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि यह ग्रन्थ नवयुवकों के लिए कदाचित् उतना उपयोगी साबित न हो जितना प्रौढ़ सद्-गृहस्थों के लिए। वे इससे जितना लाभ उठाएँगे उतना ही मेरा परिश्रम सफल होगा।
- चतुरसेन
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