लोगों की राय

अतिरिक्त >> देवांगना

देवांगना

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9009
आईएसबीएन :9789350642702

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

383 पाठक हैं

आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का एक रोचक उपन्यास...

आमुख

आज से ढाई हज़ार वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य और सदाचार की शिक्षा देकर-बहुत जनों के हित के लिए, बहुत जनों के सुख के लिए, लोक पर दया करने के लिए, देव-मनुष्यों के प्रयोजन-हित सुख के लिए संसार में विचरण करने का आदेश दिया। वह 44 वर्षों तक, बरसात के तीन मासों को छोड़कर विचरण करते और लोगों की धर्मोंपदेश देते रहे। उनका यह विचरण प्राय: सारे उत्तर प्रदेश और सारे बिहार तक ही सीमित था। इससे बाहर वे नहीं गए। परन्तु उनके जीवनकाल में ही उनके शिष्य भारत के अनेक भागों में पहुँच गये थे।

ई. पू. 253 में अशोक ने अपने धर्मगुरु आचार्य मोग्गलिपुत्र तिष्य के नेतृत्व में भारत से बाहर बौद्ध धर्मदूतों को भेजा। भारत के बाहर बौद्धधर्म का प्रचार भारतीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस समय प्रायः सारा भारत, काबुल के उस ओर हिन्दुकुश पर्वतमाला तक, अशोक के शासन में था।

बुद्ध के जीवनकाल में पेशावर और सिन्धु नदी तक, पारसीक शासानुशास दारयीश का राज्य था। तक्षशिला भी उसी के अधीन था। उन दिनों व्यापारियों के सार्थ पूर्वी और पश्चिमी समुद्र तट तक ही नहीं, तक्षशिला तक जाते-आते रहते थे। उनके द्वारा दारयोश के पश्चिमी पड़ोसी यवनों का नाम बुद्ध के कानों तक पहुँच चुका था। परन्तु उस काल का मानव संसार बहुत छोटा था। चन्द्रगुप्त के काल में सिकन्दर ने पंजाब तक पहुँचकर मानव संसार की सीमा बढ़ाई। अशोक काल में भारत का ग्रीस के राज्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुआ, जो केवल राजनैतिक और व्यापारिक ही न था, सांस्कृतिक भी था। इसी से अशोक को व्यवस्थित रूप में धर्म-विजय में सफलता मिली और बौद्धधर्म विश्वधर्म का रूप धारण कर गया। इतना ही नहीं, जब बौद्धधर्म का सम्पर्क सभ्य-सुसंस्कृत ग्रीकों से हुआ जहाँ अफलातून और अरस्तू जैसे दार्शनिक हो चुके थे तो बौद्धधर्म महायान का रूप धारण कर अति शक्तिशाली बन गया। महायान ने बौद्धधर्म जीवन का एक ऐसा उच्च आदर्श सामने रखा जिसमें प्राणिमात्र की सेवा के लिए कुछ भी अदेय नहीं माना गया तथा इस आदर्श ने शताब्दियों तक अफगानिस्तान से जापान और साइबेरिया से जावा तक सहृदय मानव को अपनी ओर आकृष्ट किया। महायान ने ही शून्यवाद के आचार्य नागार्जुन-असंग-वसुबन्धु, दिङ्नाग, धर्मकीर्ति जैसे दार्शनिक उत्पन्न किए जिन्होंने क्षणिक विज्ञानवाद का सिद्धान्त स्थिर किया। जिसने गौड़पाद और शंकराचार्य के दर्शनों को आगे जन्म दिया। मसीह की चौथी शताब्दी तक महायान पूर्ण रूपेण विकसित हुआ और उसके बाद अगली तीन शताब्दियों में उसने भारत और भारत की उत्तर दिशा के बौद्धजगत् को आत्मसात् कर लिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai