अतिरिक्त >> उड़ान (अजिल्द) उड़ान (अजिल्द)रस्किन बॉन्ड
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1857 की आज़ादी की लड़ाई पर आधारित यदि आप कोई उपन्यास खोज रहे है तो रस्किन बॉण्ड का यह उपन्यास सबसे बेहतर है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भूमिका
मुझे याद है कि पिताजी एक लड़की की कहानी सुनाया करते थे। उसको बार-बार एक सपना आता था जिसमें उसको उत्तरी भारत के एक चर्च में एकत्रित धार्मिक समुदाय के लोगों का कत्लेआम दिखाई देता था। कुछ सालों के बाद शाहजहांपुर में उसने अपने-आपको बिल्कुल वैसे ही चर्च में पाया। उसने वैसे ही डरावने नज़ारे देखे जो अब हकीकत में बदल गए थे।
मेरे पिताजी का जन्म शाहजहांपुर में हुआ था। उन्होंने यह कहानी अपने सैनिक पिता से सुनी होगी। बाद में वहीं पर उनकी नियुक्ति हो गई थी। वह लड़की शायद रूथ लेबेडूर थी (अथवा लेमेस्टर) या फिर कोई और, इस समय यह बता पाना सम्भव नहीं परन्तु रूथ की कहानी सच है। वह कत्लेआम तथा बाद के यातनापूर्ण समय में जीवित बच गई थी। उसने एक से ज्यादा आदमियों को अपनी कहानी सुनाई। 1857 के विद्रोह के अभिलेखों तथा विवरण में इस घटना का ज़िक्र बार-बार आता है।
आज के पाठक को यह कहानी मैं दोबारा सुना रहा हूँ। साम्प्रदायिक अथवा जातीय नफरत के हिंसक दौर में लिप्त अधिकांश लोगों की सामान्य मनोवृत्ति उजागर करने की कोशिश की है। अपनी सुरक्षा करने में असमर्थ लोगों की सहायता करने के लिए कुछ गिने-चुने लोग हमेशा तैयार रहते हैं।
तीस साल पहले यह कहानी उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुई थी। साम्प्रदायिक झगड़ों तथा धार्मिक असहिष्णुता के कारण निर्दोष, कानून का पालन करने वाले शरीफ लोगों के जीवन तथा आजीविका को खतरा होने के कारण मेरे विचार में इस उपन्यास की आज भी प्रासंगिकता है। पास्कल ने लिखा है-‘‘व्यक्ति कभी भी उतनी पूर्णता तथा प्रसन्नता से अपराध नहीं करता जितना कि धर्मोन्माद में। सौभाग्य से सभ्यता के लिए कुछ अपवाद हैं।
मेरे पिताजी का जन्म शाहजहांपुर में हुआ था। उन्होंने यह कहानी अपने सैनिक पिता से सुनी होगी। बाद में वहीं पर उनकी नियुक्ति हो गई थी। वह लड़की शायद रूथ लेबेडूर थी (अथवा लेमेस्टर) या फिर कोई और, इस समय यह बता पाना सम्भव नहीं परन्तु रूथ की कहानी सच है। वह कत्लेआम तथा बाद के यातनापूर्ण समय में जीवित बच गई थी। उसने एक से ज्यादा आदमियों को अपनी कहानी सुनाई। 1857 के विद्रोह के अभिलेखों तथा विवरण में इस घटना का ज़िक्र बार-बार आता है।
आज के पाठक को यह कहानी मैं दोबारा सुना रहा हूँ। साम्प्रदायिक अथवा जातीय नफरत के हिंसक दौर में लिप्त अधिकांश लोगों की सामान्य मनोवृत्ति उजागर करने की कोशिश की है। अपनी सुरक्षा करने में असमर्थ लोगों की सहायता करने के लिए कुछ गिने-चुने लोग हमेशा तैयार रहते हैं।
तीस साल पहले यह कहानी उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुई थी। साम्प्रदायिक झगड़ों तथा धार्मिक असहिष्णुता के कारण निर्दोष, कानून का पालन करने वाले शरीफ लोगों के जीवन तथा आजीविका को खतरा होने के कारण मेरे विचार में इस उपन्यास की आज भी प्रासंगिकता है। पास्कल ने लिखा है-‘‘व्यक्ति कभी भी उतनी पूर्णता तथा प्रसन्नता से अपराध नहीं करता जितना कि धर्मोन्माद में। सौभाग्य से सभ्यता के लिए कुछ अपवाद हैं।
- रस्किन बॉन्ड
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