अतिरिक्त >> वीरेंद्र जैन के साहित्य में सामाजिक चेतना वीरेंद्र जैन के साहित्य में सामाजिक चेतनाशांताकुमारी जी.
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वीरेंद्र जैन के साहित्य में सामाजिक चेतना....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
डॉ. शांताकुमारी जी. के शोध-प्रबंध को मेरे साहित्य पर शोधकार्य के संदर्भ में निर्विवाद रूप से पहला शोधकार्य होने का श्रेय दिया जा सकता है। वह इस रूप में कि-1993 में जे. एन. यू. से मेरे साहित्य के अकादमिक आकलन का जो सिलसिला आरंभ हुआ, उन सभी शोध-कार्यों का विषय मेरा उपन्यास साहित्य ही होता आया है। शांताजी ने पहली बार मेरी कहानियों को भी शोध की परिधि में सम्मिलित करके अनुसंधानियों के लिए भी और मेरे साहित्य की भावी ‘शल्य-क्रिया’ में भी एक और आयाम जोड़ दिया।
कहना न होगा, शांताजी के लिए यह कार्य-संपादन श्रमसाध्य रहा होगा। उन्हें नितांत निजी सोच-समझ और मेधा-प्रतिभा पर ही आश्रित रहना पड़ा होगा। अपनी मान्यताओं और स्थापनाओं के लिए कहीं से कोई संस्तुति या समर्थन पाना दुर्लभ बना रहा होगा। चूँकि इनसे पूर्व विशेषतः मेरी कहानियों पर और आरंभिक उपन्यासों पर भी आलोचकों ने न के बराबर ही दृष्टिपात किया है। सो कोई भी प्रकाशित सामग्री उपलब्ध होना संभव ही कहाँ था।
तेलुगू और कन्नड भाषा-भाषी शांताजी के हिंदी शोध-प्रबंध के प्रकाशन-अवसर पर मैं एक ओर शांताजी को अनेकानेक साधुवाद संप्रेषित करना चाहता हूँ, वहीं यह कहने की स्थिति में भी हूँ कि डॉ. शांता कुमारी जी. का यह शोध और अनुसंधानपरक कृतित्व नितांत मौलिक भी है।
कहना न होगा, शांताजी के लिए यह कार्य-संपादन श्रमसाध्य रहा होगा। उन्हें नितांत निजी सोच-समझ और मेधा-प्रतिभा पर ही आश्रित रहना पड़ा होगा। अपनी मान्यताओं और स्थापनाओं के लिए कहीं से कोई संस्तुति या समर्थन पाना दुर्लभ बना रहा होगा। चूँकि इनसे पूर्व विशेषतः मेरी कहानियों पर और आरंभिक उपन्यासों पर भी आलोचकों ने न के बराबर ही दृष्टिपात किया है। सो कोई भी प्रकाशित सामग्री उपलब्ध होना संभव ही कहाँ था।
तेलुगू और कन्नड भाषा-भाषी शांताजी के हिंदी शोध-प्रबंध के प्रकाशन-अवसर पर मैं एक ओर शांताजी को अनेकानेक साधुवाद संप्रेषित करना चाहता हूँ, वहीं यह कहने की स्थिति में भी हूँ कि डॉ. शांता कुमारी जी. का यह शोध और अनुसंधानपरक कृतित्व नितांत मौलिक भी है।
- वीरेन्द्र जैन
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