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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

बड़े-बड़े अमीरों के मकान नदी के किनारे शहर के बाहर थे, जो खूब कुशादा, ठण्डे, हवादार और आरामदेह थे। उनमें बाग, पेड़, हौज और दालान थे तथा छोटे-छोटे फव्वारे और तहखाने भी थे, जिनमें बड़े-बड़े पंखे लगे हुए थे। और खस की टट्टियाँ लगी थीं। उनपर गुलाम-नौकर पानी छिड़क रहे थे।

बाज़ार की दुकानों में जिन्सें भरी थीं, पश्मीना, कमखाब, जरीदार मण्डीले और रेशमी कपड़े भरे थे। एक बाजार तो सिर्फ मेवों ही का था, जिसमें ईरान, समरकन्द, बलख, बुखारा के मेवे-बादाम, पिस्ता, किशमिश, बेर, शफतालू, और भाँति-भाँति के सूखे फल और रूई की तहों में लिपटे बढ़िया अंगूर, नाशपाती, सेब और सर्दे भरे पड़े थे। नानबाई, हलवाई, कसाइयों की दुकानें गली-गली थीं। चिड़िया बाज़ार में भाँति-भाँति की चिड़ियाँ-मुर्गी, कबूतर, तीतर, मुर्गाबियाँ बहुतायत से बिक रही थीं। मछली बाज़ार में मछलियों की भरमार थी। अमीरों के गुलाम-ख्वाजासरा व्यस्त भाव से अपने-अपने मालिकों के लिए सौदे खरीदे रहे थे। बाज़ार में ऊँट, घोड़े, बहली, रथ, तामझाम, पालकी और मियानों पर अमीर लोग आ-जा रहे थे। चित्रकार,

नक्काश, जड़िये, मीनाकार, रंगरेज़ और मनिहार अपने-अपने कामों में लगे थे।

इस वक्त चाँदनी चौक में एक खास चहल-पहल नज़र आ रही थी। इस समय बहुत-से बरकन्दाज, प्यादे, भिश्ती और झाडू बरदार फुर्ती से अपने काम में लगे हुए थे। बरकन्दाज और सवार लोगों की भीड़ को हटाकर रास्ता साफ कर रहे थे। झाड़ू बरदार सड़कों का कूड़ा-कर्कट हटा रहे थे। दुकानदार चौकन्ने होकर अपनी-अपनी दुकानों को आकर्षक रीति पर सजाये उत्सुक बैठे थे। इसका कारण यह था कि आज बड़ी बेगम की सवारी किले से इसी राह आ रही थी।

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