अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
सलूंबरा सरदार ने दूर से देखा। वे शत्रुओं के दाहिने पक्ष का लगभग बिलकुल विध्वंस कर चुके थे। कछवाहों से उन्होंने खूब लोहा लिया था। उन्होंने दूर देखा, प्रताप का अकेला झिममिला टोप और वह अमूल्य मणि मुगलों के अनन्त से सैन्य-समुद्र में डूबती हुई नौका के समान एक क्षणिक झलक दिखा रहे हैं। उनके हृदय में हाहाकार मचने लगा। उन्होंने कहा, "अरे! मेवाड़ का सूर्य तो यहीं अस्त हो रहा है!” बुड्ढे बाघ ने अपने घोड़े को एड़ दी, उसकी बाग मोड़ी और अपने योद्धाओं को ललकारकर कहा, "हिन्दूपति महाराणा की जय हो! वह देखो, महाराणा ने शहजादे के हाथी को घेर लिया है। आओ। चली, आज हम प्राण देकर महाराणा का अनुगमन करें!” वीरों ने हुँकार भरी। बिजली की तरह तलवारें चमकने लगीं और तलवार के जादू से मुगल-सैन्य-वन में रास्ता बनने लगा। अमर वीरों की वह छोटी-सी टुकड़ी शत्रु-सेना को चीरती हुई क्षण-क्षण में महाराणा के निकट होने लगी। महाराणा का एक हाथ बिलकुल निकम्मा हो गया था। अब उनमें वार करने की ताकत नहीं थी, वह केवल अपना बचाव करते रहे थे। उनकी गर्दन कन्धे पर लटकने लगी। उन्हें मुमूर्ष अवस्था में देखकर यवन सैन्य ने घनगरज ध्वनि से-"अल्लाहो अकबर’-का नारा लगाया और दूसरे ही क्षण वह नाद-"जय एकलिंग'-की वीर गर्जना में विलीन हो गया। एक बार फिर तलवारों के उस समुद्र में ज्वार आया। महाराणा ने सचेत होकर पीछे की ओर देखा-रंगीन पगड़ियाँ उनकी तरफ को लहराती हुई चली आ रही हैं। उन्होंने एक बार चेतक को ललकारा।
दूसरे ही क्षण किसीने उनके सिर से वह झिलमिला टोप उतार लिया और एक दूसरी पगड़ी उनके सिर पर रख दी। वह अमूल्य मणि भी उनके भुजदण्ड से खोल ली गयी। महाराणा ने मुरझायी हुई दृष्टि से देखा-सलूबरा सरदार अपने घोड़े की बाग को दाँतों से पकड़े हुए उनका झिलमिला टोप अपने सिर पर रखे हुए हैं और उनकी वह मणि भी सरदार के दाहिने भुजदण्ड पर बंधी हुई है, और वह अपनी ओर उमड़ते हुए मुगलों को ढकेलते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
प्रताप ने कहा, "ठाकरां! यह क्या?” सरदार ने दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए कहा, "अन्नदाता! आज यह सेवक अपने नमक का हक अदा करेगा! आप हिन्दू कुल के सूर्य हैं, पीछे, को हटते जाइए। असमय में ही सूर्य का अस्त न होना चाहिए, जाइए स्वामी!"
सरदार ने अपने हाथ से चेतक की बाग मोड़ दी और वे उनकी बीच में करके पीछे हटने लगे। लोहे की बेजोड़ मार चारों तरफ से पड़ रही थी, अपने-पराये की किसीको सुध नहीं रही थी। सलूबरा सरदार बुड्डे बाघ की भाँति भयानक वेग से हाथ चला रहे थे। प्रताप ने थोड़ी देर विश्राम पाकर चैतन्य-लाभ किया। उन्होंने कंपित स्वर से कहा, "ठाकरा, आपके वंशजों को इस राज-सेवा का पुरस्कार मिलेगा!” प्रताप ने चेतक को एड़ दी और देखते-देखते वह युद्धक्षेत्र से बाहर हो गये।
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