लोगों की राय

अतिरिक्त >> योग और वैकल्पिक चिकित्सा

योग और वैकल्पिक चिकित्सा

डॉ. विनोद प्रसाद नौटियाल

प्रकाशक : किताब महल प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9036
आईएसबीएन :9788122506556

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

363 पाठक हैं

योग और वैकल्पिक चिकित्सा...

Yog Aur Vaikalpik Chikitsha - A Hindi Book by Vinod Prasad Nautiyal

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आभार

कैवल्यधाम योग महाविद्यालय में मेरे आध्यात्मिक परम श्रद्धेय गुरुजी श्री ओ.पी. तिवारी के प्रति मैं नतमस्तक हूँ जिन्होंने मुझे अपना अनमोल ज्ञान, मार्गदर्शन प्रदान कर मेरे जीवन को अध्यात्ममय बनाया।

मेरे गुरु स्वर्गीय डॉ. रामनाथ शर्मा जी कि मेरठ कॉलेज, मेरठ से दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष पद से रिटायर्ड हैं जिनके मार्गदर्शन में मैंने पी.एच.डी. का कार्य पूर्ण किया है। ऐसे विद्वान् का मैं सदा ऋणी रहूँगा जिन्होंने मुझे अपना शिष्य बनाया और मेरा मार्ग प्रशस्त किया। मेरा मस्तक सदा उनके चरणों में झुका रहेगा। हे. नं. ब. ग. विश्वविद्यालय, श्रीनगर के स्वर्गीय पूर्व कुलपति प्रो. के.पी. नौटियाल, कैवल्यधाम योग महाविद्यालय के निर्देशक श्री सुबोध तिवारी एवं अनुसन्धान अधिकारी डॉ. एम.एम. गौरे, डॉ. आर.एस. भोगल, डॉ. बी.आर. शर्मा, डॉ. एस.के. गाँगुली, श्री भरत सिंह (योग प्रशिक्षक) गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के योग विभागाध्यक्ष डॉ० ईश्वर भारद्वाज सहित सभी सम्मानित विद्वानों के प्रति मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने अपनी भावपूर्ण अनुशंसा प्रदान कर मुझे कृतार्थ किया।

मैं अपनी दादी श्रीमती सतेस्वरी नौटियाल, धर्मपत्नी स्व. नारायण दत्त नौटियाल जी की प्रेरणा से योग और वैकल्पिक चिकित्सा विषय को पुस्तक का आकार देने में सफल हुआ। अपने माता-पिता श्री रामचन्द्र नौटियाल एवं श्रीमती लक्ष्मी नौटियाल, बड़े भाई श्री राजेन्द्र नौटियाल (योग शिक्षक), छोटे भाई श्री सुरेन्द्र नौटियाल धर्मपत्नी श्रीमती ममता नौटियाल, डॉ. सुनील नौटियाल (योग शिक्षक, योग विभाग, कुमाँऊ विश्वविद्यालय, नैनीताल, धर्मपत्नी श्रीमती सीमा नौटियाल), अपनी धर्मपत्नी डॉ. रजनी नौटियाल, छोटी बहन मीनाक्षी नौटियाल जिन्होंने पुस्तक प्रबन्धन में मेरी बहुत सहायता की है। मैं इन सभी के प्रति कृतज्ञ हूँ।

अन्त में मैं उन सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिनके हाथ वर्तमान क्षणों में इस ग्रन्थ को थामे हैं और जिनके मन इसकी विषय-वस्तु का चिन्तन-मनन कर रहें हैं। अपनी समस्त आन्तरिक भावनाओं के साथ आप सभी विरागुरागीजनों के सुझाव व समालोचनाएं सादर आमन्त्रित हैं।

- विनोद प्रसाद नौटियाल

भूमिका

विश्व में आज प्रत्येक क्षेत्र में भागदौड़, तनाव और स्पर्धात्मक वातावरण के होने के कारण मनुष्य का जीवन इसी भागदौड़ के चारों तरफ़ घूम रहा है परिणामस्वरूप वह तनावग्रस्त हो रोगी बनता जा रहा है। उसकी आवश्यकताएं असीमित होने के कारण इस भागदौड़ में वह अपने पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचाकर अपने वर्तमान को बनाए रखने के पीछे अपने भविष्य को ख़राब कर रहा है। इतना ही नहीं अपने रोग को दूर करने के लिए उसके पास समय का अभाव है जिसके कारण वह पारम्परिक विधियों को न अपनाकर शीघ्र रोग से मुक्त होने के लिए एलोपैथिक औषधियों का सेवन कर रहा है इन बहुत सी औषधियों में विभिन्न विदेशों में प्रतिबंध है लेकिन भारतवर्ष में ये औषधियाँ विक्रय होती हैं इन औषधियों के दुष्परिणाम के कारण ये मनुष्य को और रोगी बनाती जा रही हैं जिससे इन औषधियों के कारण नई-नई बीमारियाँ सामने आ रही हैं। सरकार नए-नए एलोपैथिक चिकित्सालय खोलती जा रही है लेकिन रोग और रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह बहुत बड़ा प्रश्न है ?

पारम्परिक चिकित्सा का प्रचार-प्रसार सरकार द्वारा विस्तृत रूप से न होने और उपर्युक्त कारणों के कारण भी पारम्परिक चिकित्सा सीमित रह गई है लेकिन अब वर्तमान समय में वैकल्पिक चिकित्सा का प्रचार-प्रसार हुआ है। पारम्परिक चिकित्सा मनुष्य को ब्रह्माण्ड के एक घटक के रूप में देखती है, उसके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं को देखती है उन्हें विकसित करती है। मनुष्य से लगाव रखती है उसकी परवाह करती है, उसके जीवन को संस्कारवान बनाने, सुसंस्कृत करने, उसके शरीर को निरोग रखने, उसके आस-पास का वातावरण स्वास्थमय बनाने में, उसे जीवन जीने की कला बतलाने और मोक्ष प्रदान करने में सहायक है।

इस पुस्तक के माध्यम से पारम्परिक, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की विधि, लाभों को मानवता के सामने रखने और विशेषकर नवयुवकों को इस पद्धति से अवगत कराना है ताकि इस पद्धति की उपयोगिता का प्रचार-प्रसार हो सके और मानवता निरोग होकर आनन्दित जीवन जी सके। यह पुस्तक विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और संस्थानों में संचालित योग के पाठ्यक्रमों में योग और वैकल्पिक चिकित्सा का अध्ययन कर रहे छात्र-छात्राओं व शोधार्थियों के लिए ज्ञानवर्द्धन करने में सहायक होगी ऐसा प्रयास किया गया है।

इस पुस्तक की विषय-वस्तु में प्रथम अध्याय के अन्तर्गत् वैकल्पिक चिकित्सा का परिचय, अर्थ और प्रणालियाँ, क्षेत्र, महत्त्व और सिद्धान्त बतलाए गए हैं। द्वितीय अध्याय में चुम्बक चिकित्सा का परिचय, इतिहास, प्रभाव और चुम्बक बनाने की विधि तथा प्रयोग विधि और प्रकार बतलाए गए हैं। तृतीय अध्याय में एक्यूप्रेशर चिकित्सा, का परिचय, अर्थ, प्रणालियाँ, सिद्धान्त, दबाव की विधि, उपकरण एवं सावधानियाँ, चतुर्थ अध्याय में वास्तुशास्त्र और मंत्र साधना का परिचय, अर्थ, महत्त्व, नियम, निवारण के उपाय और मंत्र साधना सिद्धि बतलाई गई है। पंचम अध्याय में स्वरोदय और नाड़ी परीक्षण का परिचय, तत्त्व ज्ञान और स्वर साधना में अभीष्ट सिद्धि, नाड़ी परिक्षण की विधि और नाड़ी के प्रकार और विभिन्न रोगों में नाड़ी की गति बतलाई गई है। षष्ठ अध्याय में प्राणिक हीलिंग चिकित्सा का परिचय, प्राण, चेतना और पंच-कोश, प्रभामंडल और प्राणशक्ति, इतिहास, सिद्धान्त और विधि बतलाई गई है। सप्तम अध्याय में स्वस्थ वृत्त का परिचय, दिनचर्या, रात्रिचर्या और आहार एवं निद्रा बतलाई गई है। अष्टम अध्याय में योग चिकित्सा, का परिचय, अर्थ और परिभाषा, अष्टांगयोग, विभिन्न अंगों पर योगाभ्यास का प्रभाव और स्वामी कुवलयानन्द द्वारा योग आसनों का वैज्ञानिक सर्वेक्षण एवं अनुसंधान कार्य बतलाए गए हैं। नवम् अध्याय में प्राकृतिक चिकित्सा का परिचय और परिभाषा, सिद्धान्त और पंच-महाभूत द्वारा चिकित्सा, मालिश चिकित्सा और आहार चिकित्सा बतलाई गई है। अध्याय दस में विभिन्न रोगों में वैकल्पिक चिकित्सा जैसे रोग-कब्ज, अम्ल, पित्त, दस्त लगना, मधुमेह, बहुमूत्र, मूत्रकृच्छूता, दमा, नजला-जुकाम, नाक की हड्डी (मांस ) बढ़ना, खाँसी, बच्चों की पसली चलना, कटिशूल, गर्दन में दर्द, सायटिका, उच्च रक्तचाप, हृदय में दर्द, मोटापा, गठिया, अजीर्ण, अरुचि, आंतों के कीड़े, पेट में दर्द, पीलिया, विषैले जीवों का काटना आदि का वर्णन विशेष विद्वानों के विचारों एवं सन्दर्भों को लेकर किया गया है। इनके प्रतिपादन में कहीं दुरूहता अथवा अस्पष्टता लक्षित हो तो कृपया क्षमा करना।

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book