अतिरिक्त >> हिडिम्बा हिडिम्बानरेन्द्र कोहली
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हिडिम्बा...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
महाभारत काव्य है, इतिहास है और हमारा अध्यात्म भी है। हमारे प्राचीन ग्रन्थ शाश्वत सत्य की चर्चा करते हैं। वे किसी कालखंड के सीमित सत्य में आबद्ध नहीं हैं, जैसा कि कुछ लोग अपने अज्ञान के कारण मान लेते हैं। महाकाल की यात्रा खंडों में विभाजित नहीं है, इसलिए यह सोचना गलत है कि जो घटनाएँ घटित हो चुकीं, उनसे अब हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। मनुष्य की अखंड कालयात्रा को इतिहास खंडों में बाँटे तो बाँटे, साहित्य उन्हें विभाजित नहीं करता, यद्यपि ऊपरी आवरण सदा ही बदलता रहता है। महाभारत की कथा भारतीय चिन्तन और भारतीय संस्कृति की अमूल्य थाती है। यह मनुष्य के उस अनवरत युद्ध की कथा है, जो उसे अपने बाहरी और भीतरी शत्रुओं के साथ निरन्तर करना पड़ता है। वह उस संसार में रहता है, जिसमें चारों ओर लोभ, मोह, सत्ता और स्वार्थ की शक्तियाँ संघर्षरत हैं। मनुष्य को बाहर से अधिक अपने भीतर लड़ना पड़ता है। परायों से अधिक उसे अपनों से लड़ना पड़ता है। और यदि वह अपने धर्म पर टिका रहता है, तो वह सदेह स्वर्ग प्राप्त कर सकता है-इसका आश्वासन महाभारत देता है। लोभ, त्रास और स्वार्थ के विरुद्ध मनुष्य के इस सात्विक युद्ध को महाभारत में अत्यन्त विस्तार से प्रस्तुत किया गया।
महाभारत अनेक आनुषांगिक कथाओं और अनेक चिन्तन ग्रन्थों के मध्य, पाण्डवों की कथा कहने वाला एक महाग्रन्थ है। उन सबके ही माध्यम से उसने अनेक व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना की है। अतः उसमें जीवन का चित्रण विभिन्न स्तरों पर हुआ है। काव्य है, अतः मानव के भावावेगों का चित्रण पूर्णता और पूरी ईमानदारी से हुआ है। उसमें राग-द्वेष है, श्रृंगार है, रतिप्रसंग हैं, वात्सल्य है, द्वेष है, ईर्ष्या है, कामना है, तृष्णा है, क्रोध है, उत्साह है, भय, जुगुप्सा और शोक सब कुछ है। वे सारे भाव आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने सहस्रों वर्ष पूर्व थे। भारतीय मनीषा की मान्यता है कि यह सृष्टि ऋतु के नियम के अधीन चलती है। इसे ईश्वरीय नियम कह सकते हैं। सामान्य भाषा में इसी को प्रकृति का नियम कहा जाता है। हम देख सकते हैं कि न तो कभी प्रकृति के नियम परिवर्तित होते हैं, न मनुष्य का स्वभाव ही बदलता है। संसार का परिदृश्य प्रतिदिन बदलता है; किन्तु मनुष्य के भाव तब भी वे ही थे और आज भी वे ही हैं। अतः काव्य की दृष्टि से महाभारत की कथाएँ आज भी उतनी ही आकर्षक हैं, जितनी अपने काल में रही होंगी।
महाभारत अनेक आनुषांगिक कथाओं और अनेक चिन्तन ग्रन्थों के मध्य, पाण्डवों की कथा कहने वाला एक महाग्रन्थ है। उन सबके ही माध्यम से उसने अनेक व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना की है। अतः उसमें जीवन का चित्रण विभिन्न स्तरों पर हुआ है। काव्य है, अतः मानव के भावावेगों का चित्रण पूर्णता और पूरी ईमानदारी से हुआ है। उसमें राग-द्वेष है, श्रृंगार है, रतिप्रसंग हैं, वात्सल्य है, द्वेष है, ईर्ष्या है, कामना है, तृष्णा है, क्रोध है, उत्साह है, भय, जुगुप्सा और शोक सब कुछ है। वे सारे भाव आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने सहस्रों वर्ष पूर्व थे। भारतीय मनीषा की मान्यता है कि यह सृष्टि ऋतु के नियम के अधीन चलती है। इसे ईश्वरीय नियम कह सकते हैं। सामान्य भाषा में इसी को प्रकृति का नियम कहा जाता है। हम देख सकते हैं कि न तो कभी प्रकृति के नियम परिवर्तित होते हैं, न मनुष्य का स्वभाव ही बदलता है। संसार का परिदृश्य प्रतिदिन बदलता है; किन्तु मनुष्य के भाव तब भी वे ही थे और आज भी वे ही हैं। अतः काव्य की दृष्टि से महाभारत की कथाएँ आज भी उतनी ही आकर्षक हैं, जितनी अपने काल में रही होंगी।
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