गीता प्रेस, गोरखपुर >> भागवतरत्न प्रह्लाद भागवतरत्न प्रह्लादद्वारका प्रसाद शर्मा
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भक्त प्रह्लाद के चरित्र का चित्रण...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भागवतरत्न प्रह्लाद
प्रथम अध्याय
आविर्भावका समय
स्वजनवनचनपुष्टयै निर्जराणां सुतुष्टयै
दितितनयविरुष्टयै दाससङ्कष्टमुष्टयै।
झटिति नृहरिवेषं स्तम्भमालम्ब्य भेजे
स भवन्तु जगदीशः श्रीविवासों मुदे नः ।।
दितितनयविरुष्टयै दाससङ्कष्टमुष्टयै।
झटिति नृहरिवेषं स्तम्भमालम्ब्य भेजे
स भवन्तु जगदीशः श्रीविवासों मुदे नः ।।
संसार के, विशेषकर भारतवर्ष के गौरवस्वरूप, धार्मिक जगत् के सबसे बड़े
आदर्श और आस्तिक आकाश के षोडश-कलापूर्ण चन्द्रमा के समान, हमारे
चरित्रनायक भगवतरत्न को कौन नहीं जानता ? जिनके चरित्रों को पढ़कर
सांसारिक बन्धन से मुक्त पाना एक सरल काम प्रतीत होने लगता है, कराल कालकी
महिमा एक तुच्छ-सी वस्तु प्रतीत होने लगती है और दृढ़ता एवं निश्चायत्मिका
बुद्धिका प्रकाश स्पष्ट दिखलायी देने लगता है। आज हमको उन्हीं परमभागवत
दैत्यर्षि प्रह्लाद के आविर्भाव के समय को अन्धकारमय ऐतिहासिक जगत के बीच
से ढ़ूँढ़ निकालना है। जिनकी भगवद्भक्ति की महिमा गाँव-गाँव और घर-घर में
गायी जाती है, जिनकी पथा को आस्तिक और नास्तिक दोनों ही प्रेम से पढ़ते और
उनके पथानुगामी बनने की चेष्ठा करते हैं। जिनके वृत्तान्त
संस्कृति-साहित्य में, विशेषकर पौराणिक साहित्य में विशेषकर पौराणिक
साहित्य की प्रत्येक पुस्तक में अनेक बार आते हैं। उन्हीं परमभागवत
दैत्यर्षि प्रह्लाद के आविर्भाव का समय ऐतिहासिक जगत के अन्धकार में
विलीन-सा हो रह है-यह कैसे आश्चर्य की बात है।
पश्चिमी सभ्यता से प्रभावान्वित युग में, अनुमान के विमान में बैठ दौड़ लगाने वालों के विचारों से और उन विचारों से, जिसके अनुसार इतिहासों और पुराणों की कौन कहे,
पश्चिमी सभ्यता से प्रभावान्वित युग में, अनुमान के विमान में बैठ दौड़ लगाने वालों के विचारों से और उन विचारों से, जिसके अनुसार इतिहासों और पुराणों की कौन कहे,
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