अतिरिक्त >> हृदय सूत्र - तंत्र सूत्र भाग 5 हृदय सूत्र - तंत्र सूत्र भाग 5ओशो
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हृदय सूत्र तंत्र सूत्र भाग 5...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘जीवन बाहर से एक झंझावात है -
एक अनवरत द्वंद्व, एक उपद्रव, एक संघर्ष,
लेकिन ऐसा केवल सतह पर है, जैसे सागर के
अंदर उन्मत्त और सतत संघर्षरत लहरें होती हैं।’’
एक अनवरत द्वंद्व, एक उपद्रव, एक संघर्ष,
लेकिन ऐसा केवल सतह पर है, जैसे सागर के
अंदर उन्मत्त और सतत संघर्षरत लहरें होती हैं।’’
प्रस्तुत पुस्तक विज्ञान भैरव तंत्र में शिव द्वारा पार्वती को आत्म-रूपांतरण के लिए बताई एक सौ बारह विधियों में से इक्यानवे से एक सौ बारहवीं विधियों पर ओशो द्वारा दिए गए प्रवचनों को समाहित करती है।
इस पुस्तक में उल्लिखित कुछ विधियां :
• स्त्रियों के लिए विशेष ध्यान विधि
• अनंत अंतरिक्ष से एक हो जाने का उपाय
• हृदय में शांति का अनुभव
इस पुस्तक में उल्लिखित कुछ विधियां :
• स्त्रियों के लिए विशेष ध्यान विधि
• अनंत अंतरिक्ष से एक हो जाने का उपाय
• हृदय में शांति का अनुभव
भूमिका
परिधि से केन्द्र की ओर
जीवन बाहर से एक झंझावात है-एक अनवरत द्वंद्व, एक उपद्रव, एक संघर्ष। लेकिन ऐसा केवल सतह पर है। जैसे सागर के ऊपर उन्मत्त और सतत संघर्षरत लहरें होती हैं। लेकिन यही सारा जीवन नहीं है। गहरे में एक केन्द्र भी है-मौन शांत, न कोई द्वंद्व, न कोई संघर्ष। केंद्र में जीवन एक मौन और शांत प्रवाह है, जैसे कोई सरिता बिना संघर्ष, बिना कलह बिना शोरगुल के बस रही हो। उस अंतस केंद्र की ही खोज है। तुम सतह के साथ, बाह्य के साथ तादात्म्य बना सकते हो। फिर संताप और विषाद घिर आते हैं। यही है जो सबके साथ हुआ है; हमने सतह के साथ और उस पर चलने वाले कलह के साथ तादात्म्य बना लिया है।
सतह तो अशांत होगी ही, उसमें कुछ भी गलत नहीं है। और यदि तुम केंद्र में अपनी जड़ें जमा सको तो परिधि की अशांति भी सुंदर हो जाएगी, उसका अपना ही सौंदर्य होगा। यदि तुम भीतर से मौन हो सको तो बाहर की सब ध्वनियां संगीतमय हो जाती हैं। सब कुछ भी गलत नहीं रहता है; बस एक खेल रह जाता है। लेकिन यदि तुम आंतरिक केंद्र को, मौन केंद्र को नहीं जानते, यदि तुम परिधि के साथ ही एकात्म हो तो तुम विक्षिप्त हो जाओगे। और सभी करीब-करीब विक्षिप्त हैं।
सभी धार्मिक विधियां, योग की विधियां, ध्यान, झेन सभी मूलतः तुम्हें पुन: उस केंद्र के संपर्क में ले आने के लिए हैं; ये विधियां भीतर मुड़ने के लिए परिधि को भूल जाने के लिए, कुछ समय के लिए परिधि को छोड़ कर अपने अंतस में इतना गहन विश्राम करने के लिए हैं कि बाह्य बिलकुल मिट जाए और केवल अंतस ही बचे। एक बार तुम जान जाओ कि कैसे पीछे मुड़ना है, कैसे स्वयं में उतरना है, तो कुछ भी कठिन नहीं रह जाता है। फिर सब कुछ एकदम सरल हो जाता है। लेकिन यदि तुम्हें पता न हो, तुम्हें यदि केवल परिधि के साथ मन के तादात्म्य का ही पता हो, तो बहुत कठिन है। स्वयं में विश्राम करना कठिन नहीं है, परिधि से तादात्म्य तोड़ना कठिन है।
मैंने एक सूफी कहानी सुनी है। एक बार एक सूफी फकीर कहीं जा रहा था। अंधेरी रात थी और वह रास्ता भटक गया। इतना अंधेरा था कि उसे रास्ता भी नजर नहीं आता था। अचानक वह एक खाई में गिर गया। वह डरा। अंधेरे में उसे कुछ पता नहीं चल रहा था कि खाई कितनी गहरी है और नीचे क्या है। उसने एक वृक्ष की टहनी पकड़ ली और प्रार्थना करने लगा। रात सर्द थी। वह चिल्ला रहा था, लेकिन कोई सुनने वाला न था, बस उसकी अपनी आवाज गूंज रही थी। और सर्दी इतनी थी कि उसके हाथ जमे जा रहे थे और लग रहा था कि जल्दी ही टहनी उसके हाथ से छूट जाएगी। उसे पकड़े रहना मुश्किल हो रहा था, उसके हाथ इतने जम गए थे कि टहनी से छूटने लगे। मौत बिलकुल करीब थी, किसी भी पल वह गिरकर मर सकता था।
और फिर अंतिम क्षण आ गया। तुम समझ सकते हो कि वह कितना भयभीत रहा हागा। प्रतिपल वह मर रहा था, और फिर अंतिम क्षण आ गया जब उसने अपने हाथों से टहनी छूटते हुए देखा। उसके हाथ इतने जम चुके थे कि लटके रहने का कोई उपाय ही न था, तो वह गिर पड़ा।
लेकिन जिस क्षण वह गिरा, वह नाचने लगा-वहां कोई खाई थी ही नहीं, वह समतल जमीन पर ही था। और सारी रात उसने कष्ट भोगा...।
यही स्थिति है। तुम सतह से ही चिपके चले जाते हो, इस भय से कि तुमने अगर सतह को छोड़ दिया तो खो जाओगे। असल में, इस तरह से चिपकने के कारण ही तुम खो गए हो। लेकिन भीतर गहरे में अंधकार है, इसलिए तुम आधार को नहीं देख पाते; तुम सतह के अलावा और कुछ भी नहीं देख पाते।
ये सब विधियां तुम्हें साहसी और मजबूत और हिम्मतवर बनाने के लिए हैं, ताकि तुम अपनी पकड़ को छोड़ कर स्वयं के भीतर गिर सको। जो अंधेरी, अंतहीन खाई की तरह दिखाई पड़ती है, वही तुम्हारे प्राणों की धरती है। एक बार तुम बाहर की परिधि को छोड़ दो तो तुम केंद्रित हो जाओगे।
सतह तो अशांत होगी ही, उसमें कुछ भी गलत नहीं है। और यदि तुम केंद्र में अपनी जड़ें जमा सको तो परिधि की अशांति भी सुंदर हो जाएगी, उसका अपना ही सौंदर्य होगा। यदि तुम भीतर से मौन हो सको तो बाहर की सब ध्वनियां संगीतमय हो जाती हैं। सब कुछ भी गलत नहीं रहता है; बस एक खेल रह जाता है। लेकिन यदि तुम आंतरिक केंद्र को, मौन केंद्र को नहीं जानते, यदि तुम परिधि के साथ ही एकात्म हो तो तुम विक्षिप्त हो जाओगे। और सभी करीब-करीब विक्षिप्त हैं।
सभी धार्मिक विधियां, योग की विधियां, ध्यान, झेन सभी मूलतः तुम्हें पुन: उस केंद्र के संपर्क में ले आने के लिए हैं; ये विधियां भीतर मुड़ने के लिए परिधि को भूल जाने के लिए, कुछ समय के लिए परिधि को छोड़ कर अपने अंतस में इतना गहन विश्राम करने के लिए हैं कि बाह्य बिलकुल मिट जाए और केवल अंतस ही बचे। एक बार तुम जान जाओ कि कैसे पीछे मुड़ना है, कैसे स्वयं में उतरना है, तो कुछ भी कठिन नहीं रह जाता है। फिर सब कुछ एकदम सरल हो जाता है। लेकिन यदि तुम्हें पता न हो, तुम्हें यदि केवल परिधि के साथ मन के तादात्म्य का ही पता हो, तो बहुत कठिन है। स्वयं में विश्राम करना कठिन नहीं है, परिधि से तादात्म्य तोड़ना कठिन है।
मैंने एक सूफी कहानी सुनी है। एक बार एक सूफी फकीर कहीं जा रहा था। अंधेरी रात थी और वह रास्ता भटक गया। इतना अंधेरा था कि उसे रास्ता भी नजर नहीं आता था। अचानक वह एक खाई में गिर गया। वह डरा। अंधेरे में उसे कुछ पता नहीं चल रहा था कि खाई कितनी गहरी है और नीचे क्या है। उसने एक वृक्ष की टहनी पकड़ ली और प्रार्थना करने लगा। रात सर्द थी। वह चिल्ला रहा था, लेकिन कोई सुनने वाला न था, बस उसकी अपनी आवाज गूंज रही थी। और सर्दी इतनी थी कि उसके हाथ जमे जा रहे थे और लग रहा था कि जल्दी ही टहनी उसके हाथ से छूट जाएगी। उसे पकड़े रहना मुश्किल हो रहा था, उसके हाथ इतने जम गए थे कि टहनी से छूटने लगे। मौत बिलकुल करीब थी, किसी भी पल वह गिरकर मर सकता था।
और फिर अंतिम क्षण आ गया। तुम समझ सकते हो कि वह कितना भयभीत रहा हागा। प्रतिपल वह मर रहा था, और फिर अंतिम क्षण आ गया जब उसने अपने हाथों से टहनी छूटते हुए देखा। उसके हाथ इतने जम चुके थे कि लटके रहने का कोई उपाय ही न था, तो वह गिर पड़ा।
लेकिन जिस क्षण वह गिरा, वह नाचने लगा-वहां कोई खाई थी ही नहीं, वह समतल जमीन पर ही था। और सारी रात उसने कष्ट भोगा...।
यही स्थिति है। तुम सतह से ही चिपके चले जाते हो, इस भय से कि तुमने अगर सतह को छोड़ दिया तो खो जाओगे। असल में, इस तरह से चिपकने के कारण ही तुम खो गए हो। लेकिन भीतर गहरे में अंधकार है, इसलिए तुम आधार को नहीं देख पाते; तुम सतह के अलावा और कुछ भी नहीं देख पाते।
ये सब विधियां तुम्हें साहसी और मजबूत और हिम्मतवर बनाने के लिए हैं, ताकि तुम अपनी पकड़ को छोड़ कर स्वयं के भीतर गिर सको। जो अंधेरी, अंतहीन खाई की तरह दिखाई पड़ती है, वही तुम्हारे प्राणों की धरती है। एक बार तुम बाहर की परिधि को छोड़ दो तो तुम केंद्रित हो जाओगे।
- ओशो
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