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तांत्रिक शुद्धि का आधार - तंत्र सूत्र भाग 1

ओशो

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :318
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9057
आईएसबीएन :9788121613729

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तांत्रिक शुद्धि का आधार - तंत्र सूत्र भाग 1 ...

Tantrik Shuddhi Ka Aaddhar - Tantra Sutra Vol.1 - A Hindi Book by Osho

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘तांत्रिक शुद्धि के लिए किसी धार्मिक
अनुष्ठान की ज़रूरत नहीं है, तुम स्वयं
मंदिर हो, तुम ही प्रयोगशाला हो, तुम्हारे
भीतर ही पूरा प्रयोग होनेवाला है।’’

प्रस्तुत पुस्तक विज्ञान भैरव तंत्र में शिव द्वारा पार्वती को आत्म-रूपांतरण के लिए बताई एक सौ बारह विधियों में से पहली चौबीस विधियों पर ओशो द्वारा दिए गए प्रवचनों को समाहित करती है।

इस पुस्तक में उल्लिखित कुछ विधियां :
• दो श्वासों के बीच अंतराल को अनुभव करना
• स्वप्न में सजगता की विधि
• कार्य में व्यस्तता के बीच ध्यान को साधना
• प्रेम ही हो जाने की विधि
• गति के बीच गतिशून्य हो जाने की विधि

भूमिका
तंत्र विज्ञान है

एक प्रश्न अपने साथ एक उत्तर लाता है और साथ ही अनेक प्रश्न भी। संदेह करने वाला मन ही समस्या है।

पार्वती कहती हैं : मेरे प्रश्नों की फिकर न करें। मैंने अनेक प्रश्न पूछ लिए : आपका सत्य रूप क्या है ? समय और स्थान से परे होकर हम उसमें पूरी तरह प्रवेश कैसे करें ? लेकिन मेरे प्रश्नों की फिकर न करें। मेरे संशय निर्मूल करें। ये प्रश्न तो मैं इसलिए पूछती हूं कि वे मेरे मन में उठते हैं। मैं आपको केवल अपना मन दिखाने के लिए ये प्रश्न पूछती हूं। उन पर बहुत ध्यान मत दें। उत्तरों से मेरा काम नहीं चलेगा। मेरी जरूरत तो है कि मेरे संशय निर्मूल हों।

लेकिन संशय निर्मूल कैसे होंगे ? किसी उत्तर से ? क्या कोई उत्तर है जो कि मन के संशय दूर कर दे ? मन ही तो संशय है। जब तक मन ही मिटता है, संशय निर्मूल कैसे होंगे ?

शिव उत्तर देंगे। उनके उत्तर में सिर्फ विधियां हैं-सबसे पुरानी, सबसे प्राचीन विधियां। लेकिन तुम उन्हें अत्याधुनिक भी कह सकते हो, क्योंकि उनमें कुछ भी जोड़ा नहीं जा सकता। वे पूर्ण हैं-एक सौ बारह विधियां। उनमें सभी संभावनाओं का समावेश है; मन को शुद्ध करने के, मन के अतिक्रमण के सभी उपाय उनमें समाए हैं। शिव की एक सौ बारह विधियों में एक और विधि नहीं जोड़ी जा सकती। और यह ग्रंथ, विज्ञान भैरव तंत्र, पांच हजार वर्ष पुराना है। उसमें कुछ भी जोड़ा नहीं जा सकता; कुछ जोड़ने की गुंजाइश ही नहीं है। यह सर्वांगीण है, संपूर्ण है, अंतिम है। यह सब से प्राचीन है और साथ ही सबसे आधुनिक, सबसे नवीन। पुराने पर्वतों की भांति ये तंत्र पुराने हैं, शाश्वत जैसे लगते हैं, और साथ ही सुबह से सूरज के सामने खड़े ओस-कण की भांति ये नए हैं, ये इतने ताजे हैं।

ध्यान की इन एक सौ बारह विधियों से मन के रूपांतरण का पूरा विज्ञान निर्मित हुआ है। एक-एक कर हम उनमें प्रवेश करेंगे। पहले हम उन्हें बुद्धि से समझने की चेष्टा करेंगे। लेकिन बुद्धि को मात्र एक यंत्र की तरह काम में लाओ, मालिक की तरह नहीं। समझने के लिए यंत्र की तरह उसका उपयोग करो, लेकिन उसके जरिए नए व्यवधान मत पैदा करो। जिस समय हम इन विधियों की चर्चा करेंगे, तुम अपने पुराने ज्ञान को, पुरानी जानकारियों को एक किनारे धर देना। उन्हें अलग ही कर देना; वे रास्ते की धूल भर हैं।

इन विधियों का साक्षात्कार निश्चय ही सावचेत मन से करो; लेकिन तर्क को हटा कर करो। इस भ्रम में मत रहो कि विवाद करने वाला मन सावचेत मन है। वह नहीं है। क्योंकि जिस क्षण तुम विवाद में उतरते हो, उसी क्षण सजगता खो देते हो, सावचेत नही रहते हो। तुम तब यहां हो ही नहीं।

ये विधियां किसी धर्म की नहीं हैं। याद रखो, वे ठीक वैसे ही हिन्दू नहीं हैं जैसे सापेक्षवाद का सिद्धांत आइंस्टीन के द्वारा प्रतिपादित होने के कारण यहूदी नहीं हो जाता, रेडियो और टेलीविजन ईसाई नहीं हैं। कोई कहता है कि बिजली ईसाई है, क्योंकि ईसाई मस्तिष्क ने उसका आविष्कार किया था। विज्ञान किसी वर्ण या धर्म का नहीं है। और तंत्र विज्ञान है। इसलिए स्मरण रहे कि तंत्र हिंदू कतई नहीं है। ये विधियां हिंदुओं की ईजाद अवश्य हैं, लेकिन वे स्वयं हिंदू नहीं हैं। इसलिए इन विधियों में किसी धार्मिक अनुष्ठान का उल्लेख नहीं रहेगा। किसी मंदिर की जरूरत नहीं है। तुम स्वयं मंदिर हो। तुम ही प्रयोगशाला हो, तुम्हारे भीतर ही पूरा प्रयोग होने वाला है। और विश्वास की भी जरूरत नहीं है।

- ओशो

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