गीता प्रेस, गोरखपुर >> प्रेमी भक्त प्रेमी भक्तहनुमानप्रसाद पोद्दार
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इसमें कथाएँ आदर्श प्रेम और आनन्द से भरी है, बंग्ला ग्रंथों के आधार पर ये कथाएँ लिखी गई है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
निवेदन
यह पुस्तक भक्तिचरित माला का आठवाँ पुष्प है। इसमें भी कथाएं आदर्श प्रेम
और आनन्द से भरी हैं। बंग्ला ग्रन्थों के आधार पर ये कथाएँ लिखी गयी हैं।
श्रीहरिदासजी की कथा के संशोधन में श्रीभगवानदास जी हालना ने सहायता की
है, इसके लिये मैं उनका कृतज्ञ हूँ। पाठकगण इन भक्त-चरितों से लाभ
उठावेंगे।
हनुमाप्रसाद पोद्दार
प्रेमी भक्त
भक्त बिल्वमंगल 1
दक्षिण-प्रदेश में कृष्णवीणा नदी के तटपर एक ग्राम में रामदास नाम के
भगवद्भक्त निवास करते थे। उन्हीं के पुत्र का नाम बिल्वमंगल था। पिता ने
यथासाध्य पुत्र को धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी थी। बिल्वमंगल पिता की
शिक्षा तथा उनके भक्तिभाव के प्रभाव से बाल्यकाल में ही अति शान्त, शिष्ट
और श्रद्धावान् हो गया था। परंतु दैवयोग से पिता-माता के देहावसान होने पर
जब से घर की सम्पत्ति पर उसका अधिकार हुआ तभी से उसके कुसंगी मित्र जुटने
लगे। कहा है
यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम्।।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम्।।
(हितोपदेश, प्रस्ताविका 10)
‘जवानी, धन, प्रभुत्व और अविवेक—इनमें से
एक–एक ही से
बड़ा अनर्थ होता है, फिर जहाँ चारों एकत्र हो जायँ वहाँ तो कहना ही क्या
है ?
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