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आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य-3

आचार्य बालकृष्ण

प्रकाशक : दिव्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :575
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9096
आईएसबीएन :9788189235444

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आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य-3...

Ayurved Jadi Buti Rahasya-1 - A Hindi Book by Aacharya Balkrishna

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आमुख

यह सर्वविदित है कि भूमण्डल पर अब तक जितनी भी चिकित्सा पद्धतियाँ विकसित हुई हैं, उनमें सबसे प्राचीन पद्धति का आविर्भाव सर्वप्रथम भारत में आयुर्वेद के रूप में हुआ था। यह मुख्यतः वानस्पतिक पौधों पर आधारित चिकित्सा पद्धति है। सम्पूर्ण विश्व में आज विविध चिकित्सा-पद्धतियों का प्रचलन है। चिकित्सा क्षेत्र में अनेक अनुसन्धान हुए हैं तथा चिकित्सा-विज्ञान ने बहुत सी नई उपलब्धियाँ भी प्राप्त की हैं। इन सबके उपरान्त भी आज दुनिया की सबसे बड़ी आबादी पौधों पर आधारित चिकित्सा-पद्धति पर ही निर्भर है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार आज भी लगभग 75-80 प्रतिशत जनसंख्या औषधीय पादपों पर आधारित चिकित्सा-पद्धतियों का आंशिक या पूर्णतया उपयोग कर रही है।

आयुर्वेद हमें उचित आहार-विहार उचित दिनचर्या, ऋतुचर्या, सद्वृत्तानुष्ठान (सदाचार-पालन) तथा ज्ञान, तप व योग में तत्परता द्वारा तन-मन के रोगों से बचाव का मार्ग दिखाता है। कदाचित् रोग होने पर पूर्वोक्त उपायों के साथ ही रोगों की चिकित्सा-विधि भी सिखाता है।

आयुर्वेद की परम्परा के अन्तर्गत भारत में औषधीय पौधों के गुणों का ज्ञान व उनसे सम्बन्धित चिकित्सा की जानकारी वैदिक काल से ही बहुत समृद्ध रही है। ऋग्वेद मुख्य रूप से आयुर्वेद का सबसे प्राचीन उद्गम स्रोत है। इसके अनन्तर अथर्ववेद में वनौषधियों द्वारा की जाने वाली चिकित्सा के विषय में विपुल व रोचक सामग्री मिलती है। वेदों की इसी परम्परा में आयुर्वेद का प्रादुर्भाव हुआ, जो क्रान्तदर्शिनी ऋषि-प्रज्ञा का दिव्य एवं अमृतमय उत्स है। आधि-व्याधि से पीड़ित मानवता का शान्तिप्रद आश्रय है। जन-जन के रोग-शोक को हरने वाला शाश्वत शरण्य है। भारतीय ऋषियों ने मानव मात्र के कल्याण के लिए इसे वैज्ञानिक रूप में प्रतिष्ठित किया है।

भारत में ऋषि-मुनि प्रायः जंगलों में स्थापित आश्रमों व गुरुकुलों में ही निवास करते थे। वहाँ जड़ी-बूटियों का अनुसन्धान व उपयोग निरन्तर करते रहते थे। जन-साधारण का भी इनसे सीधा जुड़ाव था। वन-उपवन की बहुलता वाले इस देश में प्रकृति एवं पेड़-पौधों के प्रति गहन आत्मीयता रही है। इस कारण इनका परिचय व उपयोग वनवासी व ग्रामवासी जनों से लेकर उच्चवर्ग तक प्रचलित था। छोटे-छोटे ग्राम एवं बस्तियों में जड़ी-बूटियों के आधार पर चिकित्सा करने वाले वैद्यों के द्वारा भी इनकी जानकारी एवं उपयोग जन-जन तक प्रसारित हो चुका था। अशोक के शिलालेखों से विदित होता है कि सार्वजनिक स्थानों पर एवं राजमार्गों के साथ चिकित्सोपयोगी जड़ी-बूटियाँ विपुल मात्रा में लगाई जाती थीं, जो जन-जन के लिए चिकित्सा हेतु बहुत ही सहज रूप में सुलभ रहती थीं। इस प्रकार उत्तम परिपाक एवं रस से सम्पन्न वनौषधियों से जनता की चिकित्सा की जाती थी। इनका प्रभाव भी चमत्कारी होता था; क्योंकि ये ताजा एवं रसवीर्य-सम्पन्न होती थीं।

इस प्रकार प्राचीन काल में आयुर्वेद का विकास करने वाले मनीषी धन्वन्तरि, चरक, सुश्रुत आदि अनेक महापुरुषों के पुण्य प्रयास से जीवन-विज्ञान की यह विधा विश्व की प्रथम सुव्यवस्थित चिकित्सा पद्धति के रूप में शीघ्र ही प्रगति के शिखर पर पहुँच गई थी। उस समय अन्य कोई भी चिकित्सा पद्धति इसकी प्रतिस्पर्धा में नहीं थी। महर्षि सुश्रुत द्वारा प्रतिपादित शल्यचिकित्सा-सिद्धान्तों के आधारभूत उल्लेख वेदों में मिलते हैं; जिनसे ज्ञात होता है कि कृत्रिम अंगप्रतिरोपण भी उस समय प्रचलित था। भारत से यह चिकित्सा पद्धति पश्चिम में यवन देश (यूनान) एवं चीन, तिब्बत, श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार) आदि में अपनाई गई तथा काल एवं परिस्थिति के अनुसार इसमें परिवर्तन परिवर्द्धन हुए और नई चिकित्सा-पद्धतियों का प्रचार-प्रसार हुआ।

भारत में आयुर्वेद-चिकित्सा का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव रहा है कि अनेक प्राचीन-अर्वाचीन चिकित्सा-पद्धतियों के होने के उपरान्त भी यहाँ की अधिकांश जनता का जड़ी-बूटियों पर आश्रित चिकित्सा के प्रति श्रद्धाभाव व दृढ विश्वास आज भी अक्षुण्ण रूप में दिखता है। वंशपरम्परागत जड़ी-बूटी चिकित्सा के अनुभवों का विशाल भण्डार देश के ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में अब भी पाया जाता है, किन्तु इस परम्परागत ज्ञानराशि को सुरक्षित करने के संतोषजनक उपाय अभी तक नहीं हुए हैं।

आज साधारण जनता भी एलोपैथी चिकित्सा से पूरी तरह आश्वस्त नहीं है; क्योंकि इसमें किसी रोग की चिकित्सा के लिए जो दवाइयां ली जाती हैं, उनसे आंशिक लाभ तो होता है, किन्तु किसी अन्य रोग का उदय भी हो जाता है। जड़ी-बूटियों से इस प्रकार के दुष्परिणाम नहीं होते हैं। इसके अतिरिक्त एलोपैथी चिकित्सा में धन का व्यय भी बहुत अधिक होता है, जबकि आयुर्वेद की जड़ी-बूटी चिकित्सा-पद्धति द्वारा बहुत कम व्यय में चिकित्सा हो सकती है। साधारण रोगों जैसे - सर्दी-जुकाम, खांसी, पेट रोग, सिर दर्द, चर्म रोग आदि में आस-पास होने वाले पेड़-पौधों व जड़ी-बूटियों से अति शीघ्र लाभ हो जाता है और खर्च भी कम होता है। इस प्रकार जड़ी-बूटियों की जानकारी का महत्त्व और अधिक हो जाता है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक विविध भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भारत में नाना प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियाँ भरपूर मात्रा में उपलब्ध होती हैं। अतः अपनी पारम्परिक जड़ी-बूटी चिकित्सा से न केवल सरलतया स्वास्थ्य-लाभ होता है, प्रत्युत देश आर्थिक दृष्टि से भी अधिक आत्मनिर्भर व सबल बनता है।

पाश्चात्य प्रभाव, संस्कृत व आयुर्वेद के प्रति उदासीनता से हम अपनी चिर-परिचित व चिर-परीक्षित जड़ी-बूटी चिकित्सा-पद्धति से दूर हटकर अधिकांश रूप में एलोपैथी चिकित्सा पर निर्भर हो गए हैं। आज भारत की इस सहज, सस्ती व जन-कल्याणकारी पद्धति को पुनः जन-जन तक प्रचारित करने की आवश्यकता है, जिससे रोग-शोक का नाश हो सके तथा जन-साधारण सरलता एवं सहजता से स्वास्थ्य-सेवाएं पा सके।

‘आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य’ में हमारे आस-पास पाए जाने वाले पौधों के औषधीय गुणों की जानकारी सरल व सुगम ढंग से प्रस्तुत की गई है। इसमें इनके औषधीय प्रयोग की प्रामाणिक व सरल विधि भी दी गई है। प्रस्तुत पुस्तक में औषधीय पेड़-पौधों के विभिन्न भाषाओं में नाम एवं वानस्पतिक विवरण रंगीन चित्रों के साथ दिए गए हैं। रासायनिक विश्लेषण व आयुर्वेदिक गुणधर्म एवं सरल घरेलू उपयोग भी वर्णित हैं। पुस्तक में प्रयोग-विवरण के साथ यथासम्भव औषधियों की मात्रा का भी निर्देश किया है। जहां औषधि की मात्रा का उल्लेख न हो, वहाँ कृपया चिकित्सक का परामर्श अवश्य लें। कुछ औषधीय पौधों के अनेक भेद पाए जाते हैं, स्पष्ट जानकारी के लिए उनके चित्र भी प्रस्तुत किए गए हैं।

प्रस्तुत रचना में जड़ी-बूटियों का वर्णन करते हुए जहाँ प्राचीन ऋषियों एवं आचार्यों के कथों का आश्रय लिया गया है, वहाँ अर्वाचीन लेखकों का भी भरपूर सहयोग लिया गया है, अतः मैं सभी के प्रति कृतज्ञाता प्रकट करता हूँ। तीन खण्डों में प्रस्तुत किए जा रहे इस नवीन संस्करण की सज्जा में विशिष्ट योगदान के लिए हमारे आयुर्वेद अनुसन्धान व लेखन विभाग में कार्यरत डा. राजेश कुमार मिश्र व अन्य सभी सहयोगियों को मेरी शुभकामनाएं। करोड़ों देशवासियों के सद्भाव व स्नेह के प्रति भी मैं नतमस्तक हूँ, जिनकी आत्मीयता एवं श्रद्धा से प्रेरित व सम्पोषित हुआ यह योग व आयुर्वेद के प्रचार तथा राष्ट्रोत्थान का अभियान उत्तरोत्तर उत्साह से लक्ष्य की ओर अग्रसर है। इस प्रकार सहयोगी जनों के सौहार्दपूर्ण योगदान से उत्तम सज्जा व पठनीय सामग्री के साथ तैयार किया गया यह संस्करण आयुर्वेद एवं योग के प्रति श्रद्धालु जनों की सेवा में अर्पित किया जा रहा है।

अध्यात्म पथ पर बढ़ते हुए जनसेवा के इस निष्काम अनुष्ठान में परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज को ज्येष्ठ भ्राता के रूप में प्राप्त कर मैं अपने को धन्य मानता हूँ। उनके सान्निध्य, स्नेह व आशीर्वाद से अहर्निश योग एवं आयुर्वेद के प्रचार तथा राष्ट्रोत्थान का विराट यज्ञ चल रहा है। इस अभियान के माध्यम से जो शुभ हो पाया है, वह भगवत्कृपा, पूर्वज ऋषिजनों तथा वर्तमान युग में ऋषिप्रज्ञा के प्रतिनिधि योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज के आशीर्वाद व कृपा का ही प्रतिफल है। अतः मैं इनके चरणों में मात्र कृतज्ञता के पुष्प ही अर्पण कर सकता हूँ।’

‘आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य’ पुस्तक के प्रथम प्रकाशन के रूप में सन् 2005 में हमने जो एक छोटा सा प्रयास किया था; उसकी व्यापक स्वीकार्यता से उत्साहित होकर ही इस बार ग्रन्थ को विस्तृत व सुसज्जित रूप देकर तीन खण्डों में प्रकाशित किया है। पूर्वप्रकाशित पुस्तक लाखों की संख्या में प्रसारित हुई थी। आस्था चैनल के माध्यम से भी आयुर्वेदीय जड़ी-बूटी चिकित्सा बहुत लोकप्रिय हुई है। अत एव जनता की माँग को देखते हुए प्रस्तुत संस्करण विस्तृत सामग्री के साथ तीन खण्डों में प्रकाशित किया गया है। इसमें 550 से अधिक औषधीय पेड़-पौधों का विवरण आधुनिक वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदीय दृष्टिकोण से विस्तृत रूप मे प्रस्तुत किया है। साथ में सुगम चिकित्सकीय प्रयोगों का वर्णन करते हुए इसे सर्वांगीण बनाने का प्रयास किया है।

आशा है यह पुस्तक जनसाधारण में आयुर्वेद के प्रति चेतना जागृत कर आरोग्य-लाभ में सहायक होगी। विद्वज्जनों से प्रार्थना है कि पुस्तक में न्यूनता या त्रुटि के दृष्टिगोचर होने पर अवश्य अवगत कराने की कृपा करें, जिससे आगामी संस्करण में परिष्कार किया जा सके।

- आचार्य बालकृष्ण

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