लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> अमर शहीद सरदार भगत सिंह

अमर शहीद सरदार भगत सिंह

जितेन्द्रनाथ सान्याल

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :305
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 91
आईएसबीएन :9788123729329

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

44 पाठक हैं

अमर शहीद सरदार भगत सिंह मात्र एक जीवनी परक पुस्तक नहीं, स्वाधीनता संग्राम और मातृभूमि प्रेम का जीवंत आख्यान है।

Amar Shaheed Sardar Bhagat Singh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अमर शहीद सरदार भगत सिंह मात्र एक जीवनी परक पुस्तक नहीं, स्वाधीनता संग्राम और मातृभूमि प्रेम का जीवंत आख्यान है। 23 मार्च 1931 का दिन भारतीय इतिहास में ब्रिटिश राज्य की बर्बरता का ज्वलंत उदाहरण है। इस दिन सरदार भगत सिंह और उनके अन्य दो साथियों सुखदेव और राजगुरू को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। समय बीतने के साथ-साथ आज भी यह मृत्यु अतीत नही हुई है। आज भी यह दिन भारतीयों के लिए शहादत का दिन है। प्रस्तुत पुस्तक को सरदार भगत सिंह की जीवनी न कहकर उनकी संघर्ष कथा कहना ज्यादा बेहतर होगा। सन् 1931 में जब यह पुस्तक पहली बार अंग्रेजी में लिखी गई तो ब्रिटिश सरकार ने इसे जब्त कर लिया। उसी को आधार बनाकर इसे फिर से विस्तारपूर्वक लिखा गया और हिन्दी में पहली बार 1947 में कर्मयोगी प्रेस से इसका प्रकाशन हुआ।

ब्रिटिश सरकार द्वारा पुस्तक जब्त करने की कलुषित मनोवृत्ति के विवरण से लेकर भगत सिंह के जीवन की तमाम महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी गतिविधियों, उनके संघर्षों की दास्तान तथा उनके सहकर्मियों के बलिदानों को जितने तथ्यपूर्ण ढंग से जितेन्द्रनाथ सान्याल ने इस पुस्तक में रखा है, अन्यत्र कहीं मिलना दुर्लभ है। लेखक सरदार भगत सिंह के आत्मीय मित्र थे। अपने देश और देश के इतिहास से भली-भाँति परिचित होने के लिए आम हिन्दी पाठकों के लिए यह एक प्रेरणादायक संग्रहणीय पुस्तक है।

अमर शहीद सरदार भगत सिंह मात्र एक जीवनी परक पुस्तक नहीं, स्वाधीनता संग्राम और मातृभूमि प्रेम का जीवंत आख्यान है। 23 मार्च 1931 का दिन भारतीय इतिहास में ब्रिटिश राज्य की बर्बरता का ज्वलंत उदाहरण है। इस दिन सरदार भगत सिंह और उनके अन्य दो साथियों सुखदेव और राजगुरू को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। समय बीतने के साथ-साथ आज भी यह मृत्यु अतीत नही हुई है। आज भी यह दिन भारतीयों के लिए शहादत का दिन है। प्रस्तुत पुस्तक को सरदार भगत सिंह की जीवनी न कहकर उनकी संघर्ष कथा कहना ज्यादा बेहतर होगा। सन् 1931 में जब यह पुस्तक पहली बार अंग्रेजी में लिखी गई तो ब्रिटिश सरकार ने इसे जब्त कर लिया। उसी को आधार बनाकर इसे फिर से विस्तारपूर्वक लिखा गया और हिन्दी में पहली बार 1947 में कर्मयोगी प्रेस से इसका प्रकाशन हुआ।

ब्रिटिश सरकार द्वारा पुस्तक जब्त करने की कलुषित मनोवृत्ति के विवरण से लेकर भगत सिंह के जीवन की तमाम महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी गतिविधियों, उनके संघर्षों की दास्तान तथा उनके सहकर्मियों के बलिदानों को जितने तथ्यपूर्ण ढंग से जितेन्द्रनाथ सान्याल ने इस पुस्तक में रखा है, अन्यत्र कहीं मिलना दुर्लभ है। लेखक सरदार भगत सिंह के आत्मीय मित्र थे। अपने देश और देश के इतिहास से भली-भाँति परिचित होने के लिए आम हिन्दी पाठकों के लिए यह एक प्रेरणादायक संग्रहणीय पुस्तक है।

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book