गीता प्रेस, गोरखपुर >> गीता माधुर्य गीता माधुर्यस्वामी रामसुखदास
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श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य मात्र को सही मार्ग दिखाने का सार्वभौम ग्रन्थ है। लोगों में इसका अधिक से अधिक प्रचार हो और लोग इसका पालन करें।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
नम्र निवेदन
श्रीमद्भागवद्गीता मनुष्यमात्र को सही मार्ग दिखाने वाले सार्वभौम
महाग्रन्थ है। लोगों में इसका अधिक-से-अधिक प्रचार हो, इस दृष्टि से परम
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने इस ग्रन्थ को
प्रश्नोत्तर-शैली में बड़े सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें गीता
पढ़ने में सर्वसाधारण लोगों की रुचि पैदा हो जाय और वे इसके अर्थ को सरलता
से समझ सकें। नित्यपाठ करने के लिये भी यह पुस्तक बड़ी उपयोगी है।
पाठकों से मेरा निवेदन कि इस पुस्तक को स्वयं भी पढ़ें और अपने मित्रों, सगे-संबंधियों आदि को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करें।
पाठकों से मेरा निवेदन कि इस पुस्तक को स्वयं भी पढ़ें और अपने मित्रों, सगे-संबंधियों आदि को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करें।
-प्रकाशक
।।श्रीहरि:।।
प्रस्तावना
श्रीमद्धभगवद्गीता भारतीय ज्ञानगरिमा की अभिव्यंजिका अमूल्यनिधि है।
भगवान् कष्ण के मुखारविन्द से नि:सृत यह गीता सारस्वतससारसरोवरसमुद्भूत
सुमधुर सद्भाव है। किं वा अखण्ड ज्ञानपारावारप्रसूता लौकिक प्रभाभासुर
दिव्यालोक है। किं वा भीषण भवाटवी में अन्तहीन यात्रा के पथिक यायावर
प्राणी के लिये यह अनुपम मधुर पाथेय है। ज्ञानभाण्डागार उपनिषदों का यह
सारसर्वस्व है। प्रस्थानत्रयी में प्रतिष्ठापित यह गीता मननपथमानीयमान
होकर भग्नावरणचिद्विशिष्ट वेद्यान्तसम्पर्कशून्य अपूर्व आनन्दोपलब्धि की
साधिका है। यह मानसिक मलापनपुर:सर मनको शिवसंकल्पापादिका है। कर्म, अकर्म,
और विकर्म की व्याख्या करने वाली यह गीता चित्त को आह्लादित करती है।
नैराश्य निहार को दूर कर्मवाद का उपदेश देती है।
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