संस्कृति >> तीर्थराज प्रयाग तीर्थराज प्रयागबनवारी लाल कंछल
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तीर्थराज प्रयाग...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
धर्मग्रंथों में प्रयाग को तीर्थों के राजा के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इस संगमस्थली को त्रिवेणी कहते हैं। धर्मग्रंथों में वर्णन है कि जो सित (श्वेत-गंगा) और असित (श्यामा-यमुना) के संगम में स्नान करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार-हजारों राजसूय यज्ञों का फल संगम-स्नान करने से प्राप्त होता है, यह उल्लेख भी पुराणों में है।
प्रयाग को भास्कर क्षेत्र भी कहते हैं। 52 शक्तिपीठों में से एक है यह। यहां सती की पीठ गिरी थी। ब्रह्मा जी ने यहां 100 अश्वमेध यज्ञ किए थे, इसीलिए इसे प्रयाग कहते हैं।
समुद्र-मंथन में निकला अमृत कलश जिन स्थानों पर छलका, वहां महाकुंभ का आयोजन होता है। प्रयाग भी उन स्थानों में से एक है। विस्तृत गंगा-तट होने के कारण प्रयाग का महाकुंभ विश्वप्रसिद्ध है। प्रयाग को ‘अक्षय क्षेत्र’ भी कहा गया है। ब्रह्मा की वेदी और अक्षयवट की प्रधानता होने के कारण भी प्रयाग का महाकुंभ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यदि यह कहा जाए कि देश-विदेश की विभिन्न आस्थाओं, धर्मों और संस्कृतियों की संगमस्थली है प्रयाग, तो अतिशयोक्ति न होगी।
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