सामाजिक >> पहाड़ पहाड़निलय उपाध्याय
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पहाड़...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
निश्छल प्रेम और दुर्निवार जीवन-तृष्णा की अपूर्व गाथा है - ‘पहाड़’। राम ने अपनी प्रिया सीता के लिए समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था-प्रीत कारन सेतु बाँधल सिया उदेस सिरी राम हो। और दशरथ माँझी ने अपनी पत्नी पिंजरी के लिए पहाड़ काटकर रास्ता बनाया। राम देवता थे, जबकि दशरथ मांझी बिहार के गया जिले के एक साधारण गाँव के अति साधारण निवासी; समाज के सर्वाधिक उपेक्षित, वंचित और अभावग्रस्त... समुदाय के एक सदस्य। लेकिन उन्होंने मानवीय प्रेम की ऐसी मिसाल कायम की, जिसके बारे में अब तक सिर्फ पौराणिक कथाओं-किंवदन्तियों में सुना गया था। इस तरह ‘पहाड़’ में साधारण की असाधारणता मूर्त हुई है।
दशरथ माँझी की यह गाथा उनके प्रेम की व्यक्तिगत परिधि तक सीमित नहीं है ! इसमें उनके और उनके जैसे अनेक लोगों का जीवन संघर्ष चित्रित है, जो समाज की सामन्ती शक्तियों के उत्पीड़न का शिकार बनते हैं। लेकिन तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद वे अपनी स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा की आकांक्षा से विमुख नहीं होते, बल्कि बार-बार संघर्ष करते हैं। उपन्यासकार ने काफी बारीकी से सामाजिक-राजनितिक जटिलताओं को प्रस्तुत किया है, जिससे यह कृति और व्यापक हो उठी है।
‘पहाड़’ का एक उल्लेखनीय पक्ष इसमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति प्रस्तुत दृष्टिकोण भी है। यह उपन्यास बतलाता है कि प्रकृति को अपनी लिप्सा-पूर्ति का साधन बनाकर मनुष्य अपने को ही नष्ट कर लेगा, जबकि उसके साहचर्य में उसका अस्तित्व बचा रह सकता है।
दशरथ माँझी की यह गाथा उनके प्रेम की व्यक्तिगत परिधि तक सीमित नहीं है ! इसमें उनके और उनके जैसे अनेक लोगों का जीवन संघर्ष चित्रित है, जो समाज की सामन्ती शक्तियों के उत्पीड़न का शिकार बनते हैं। लेकिन तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद वे अपनी स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा की आकांक्षा से विमुख नहीं होते, बल्कि बार-बार संघर्ष करते हैं। उपन्यासकार ने काफी बारीकी से सामाजिक-राजनितिक जटिलताओं को प्रस्तुत किया है, जिससे यह कृति और व्यापक हो उठी है।
‘पहाड़’ का एक उल्लेखनीय पक्ष इसमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति प्रस्तुत दृष्टिकोण भी है। यह उपन्यास बतलाता है कि प्रकृति को अपनी लिप्सा-पूर्ति का साधन बनाकर मनुष्य अपने को ही नष्ट कर लेगा, जबकि उसके साहचर्य में उसका अस्तित्व बचा रह सकता है।
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