उपन्यास >> ऐरोस्मिथ ऐरोस्मिथसिक्लेयर लुइस
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ऐरोस्मिथ...
Arrowsmith - A Hindi Book by Sinclair Lewis
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ऐरोस्मिथ ‘ऐरोस्मिथ’ उपन्यास 1925 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास विज्ञान और चिकित्सा की दुनिया पर हावी धनलोलुप व्यवसायियों और नौकरशाहों की जकड़बन्दी में घुटते, जूझते और मुक्ति का मार्ग खोजते एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक और डॉक्टर माखटन ऐरोस्मिथ की कहानी के माध्यम से पूँजीवादी समाज में वैज्ञानिक शोध और विज्ञान के जनहित में इस्तेमाल की सीमाओं-बाधाओं को प्रभावशाली ढंग से उजागर करता है।
जब तक दवाएँ मुनाफे के लिए बनाई-बेची जाएँगी, तब तक न तो बीमारियों के निदान के लिए प्रतिबद्ध ढंग से शोधकार्य हो सकते हैं और न ही डॉक्टर सच्ची मानवतावादी भावना से प्रेरित होकर जनता की सेवा कर सकते हैं। जो वैज्ञानिक या डॉक्टर ऐसा करने की कोशिश करेंगे, वे समाज-बहिष्कृत हो जाएँगे। लुइस ने वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों के नौकरशाह अकादमीशियनों की निरंकुश जनविरोधी और वैज्ञानिक शोध-विरोधी भूमिका को भी प्रभावशाली ढंग से अनावृत्त किया है।
उपन्यास चिकित्सा की दुनिया में सर्वव्याप्त धनलोलुपता और शोध-प्रतिष्ठानों के नौकरशाहों की भूमिका पर प्रश्न उठाते हुए अच्छे-बुरे के द्वन्द्व को सरलीकृत ढंग से प्रस्तुत नहीं करता, बल्कि बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के अमेरिकी समाज को एक ऐसे समाज के मॉडल के रूप में प्रस्तुत करता है जहाँ विज्ञान और मानवतावाद के विकास की सम्भावनाएँ निःशेष हो चुकी हैं। वैज्ञानिक शोध को बाजार की शक्तियों के सर्वग्रासी दबाव से मुक्त करने का जो विकल्प उपन्यास के अन्त में लुइस प्रस्तुत करता है, वह एक यूटोपिया या आदर्शवादी समाधान से अधिक कुछ भी नहीं है। लेकिन यह समाधान उपन्यास का मुख्य पहलू नहीं है।
उपन्यास की मुख्य सफलता इस रूप में सामने आती है कि पूँजीवादी समाज में जनकल्याण और वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते हुए, यह इन पर बाजार की शक्तियों के बाध्यताकारी, सर्वव्यापी दबावों की एक आधिकारिक और प्रभावी आलोचना प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में हम आज के भारत के चिकित्सा जगत और अकादमिक जगत की तस्वीर भी देख सकते हैं, हालाँकि यहाँ की सच्चाई ‘ऐरोस्मिथ’ उपन्यास के यथार्थ की तुलना में शायद कई गुना अधिक भयंकर और विकृत हो।
जब तक दवाएँ मुनाफे के लिए बनाई-बेची जाएँगी, तब तक न तो बीमारियों के निदान के लिए प्रतिबद्ध ढंग से शोधकार्य हो सकते हैं और न ही डॉक्टर सच्ची मानवतावादी भावना से प्रेरित होकर जनता की सेवा कर सकते हैं। जो वैज्ञानिक या डॉक्टर ऐसा करने की कोशिश करेंगे, वे समाज-बहिष्कृत हो जाएँगे। लुइस ने वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों के नौकरशाह अकादमीशियनों की निरंकुश जनविरोधी और वैज्ञानिक शोध-विरोधी भूमिका को भी प्रभावशाली ढंग से अनावृत्त किया है।
उपन्यास चिकित्सा की दुनिया में सर्वव्याप्त धनलोलुपता और शोध-प्रतिष्ठानों के नौकरशाहों की भूमिका पर प्रश्न उठाते हुए अच्छे-बुरे के द्वन्द्व को सरलीकृत ढंग से प्रस्तुत नहीं करता, बल्कि बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के अमेरिकी समाज को एक ऐसे समाज के मॉडल के रूप में प्रस्तुत करता है जहाँ विज्ञान और मानवतावाद के विकास की सम्भावनाएँ निःशेष हो चुकी हैं। वैज्ञानिक शोध को बाजार की शक्तियों के सर्वग्रासी दबाव से मुक्त करने का जो विकल्प उपन्यास के अन्त में लुइस प्रस्तुत करता है, वह एक यूटोपिया या आदर्शवादी समाधान से अधिक कुछ भी नहीं है। लेकिन यह समाधान उपन्यास का मुख्य पहलू नहीं है।
उपन्यास की मुख्य सफलता इस रूप में सामने आती है कि पूँजीवादी समाज में जनकल्याण और वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते हुए, यह इन पर बाजार की शक्तियों के बाध्यताकारी, सर्वव्यापी दबावों की एक आधिकारिक और प्रभावी आलोचना प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में हम आज के भारत के चिकित्सा जगत और अकादमिक जगत की तस्वीर भी देख सकते हैं, हालाँकि यहाँ की सच्चाई ‘ऐरोस्मिथ’ उपन्यास के यथार्थ की तुलना में शायद कई गुना अधिक भयंकर और विकृत हो।
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