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उपन्यास >> रंग राची

रंग राची

सुधाकर अदीब

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :448
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9227
आईएसबीएन :9789352210152

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मीराँ : एक सात्त्विक विद्रोही, अडिग भक्ति और साहस के साथ समाजिक मान्यताओं को चुनौती देती हुई।

Rang Raachi - A Hindi Book by Sudhakar Adeeb

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

रंग राची मीरां अपना एकतारा और खड़ताल हाथों में लेकर बिना किसी भूमिका के गा उठीं- सिसोदिया वंश के राणा यदि मुझसे रूठ गये हैं तो मेरा क्या कर लेंगे ?... मुझे तो गोविन्द का गुण गाना है !... राणा जी रूठकर अपना देश बाख लेंगे ! दूसरे शब्दों में, देश में व्याप्त कुप्रथाओं एवं रूढ़ियों की रक्षा का लेंगे !... किन्तु यदि हरी रूठ जायेंगे तो मैं कुम्हला जाउंगी ! अर्थात मेरी भक्ति व्यर्थ चली जाएगी ! मैं लोक-लज्जा की मर्यादा को नहीं मानती !... मैं निर्भय होकर अपनी समझ का नागदा बजाऊँगी !... श्याम नाम रुपी जहाज चलाऊँगी... इस तरह मैं इस भावसागर को पार कर जाऊँगी !... मीरां अपने सांवले गिरधर जी की शरण में है तथा उनके चरणकमलों से लिपटी हुई है !... इस प्रकार मीरां का यह सात्विक विद्रोह ही तो था ! अपनी मान्यताओं के प्रति उनकी दृढ़ता का प्रतीक !

तत्कालीन जूठी लोक मर्यादाओं की बेड़ियों का नकार जो शताब्दियों से स्त्री के पैरों में स्वार्थी पुरुष ने विभिन्न नियम संहिताए रचकर अपने हितलाभ के लिए पहना राखी थीं ! मीरां चुनौती दे रही थीं उस सामंती युग में स्त्रियों के सम्मुख कड़ी कुप्रथाओं, कुपराम्पराओं को ! वह अपूर्व धैर्य के साथ सामना कर रही थीं लोह कपाटों के पीछे स्त्री को धकेलने और उसे पत्थर की दीवारों की बंदिनी बनाकर रखने, पति के अवसान के बाद जीते जी जलाकर सटी कर देने, न मानने पर स्त्री का मानसिक और दैहिक शोषण करने की पाशविक प्रवृतियों का ! मीरां का सत्याग्रह अपने युग का अनूठा एकाकी आन्दोलन था जिसकी वही अवधारक थीं, वही जनक थीं और वही संचालक ! मीरां ने स्त्रियों के संघर्ष के लिए जो सिद्धांत निर्मित किये उन पर सबसे पहले वे ही चलीं !

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