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गीता प्रेस, गोरखपुर >> सूर-राम-चरितावली

सूर-राम-चरितावली

सुदर्शन सिंह

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 927
आईएसबीएन :81-293-0264-0

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प्रस्तुत पुस्तक में सूर ने पूरे ढंग से रामचरित का पदों में वर्णन किया है यह वर्णन कितना भावपूर्ण, मौलिक एवं रसमय है तथा कितनी सुन्दर रचना है। इन पदों में कई स्थानों पर तो अत्यन्त मार्मिक भावों की उद्धभावना है।

Sur Ram Charitavali--A Hindi Book - by Sudarsan Singh - सूर-राम-चरितावली

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नम्र-निवेदन

जो भगवान् के कृपा प्राप्त जन हैं, उनमें न संकीर्णता सम्भव है, न भेददृष्टि। भक्त श्रेष्ठ सूरदासजी के आराध्य यद्यपि नन्दनन्दन श्रीकृष्णचन्द्र ही हैं; किन्तु भगवान् श्रीराम और श्रीकृष्ण में सूरदासजी की अभेद-बुद्धि है। सूरदासजी ने पूरे श्रीमद्भागवत के चरितों का अपने पदों में गान किया है। यह बात ठीक है, परन्तु अत्यन्त संक्षिप्त रूप से। कहीं-कहीं तो पूरे स्कन्ध की बात एक-दो पदों में ही कह दी है। श्रीमद्भागवत के नवम स्कन्ध में श्रीरामचरितमानस केवल दो अध्यायों में है; किन्तु सूरदासजी ने अपने ढंग से पूरे श्रीरामचरित का पदों में वर्णन किया है और उनका यह वर्णन कितना भावपूर्ण, मौलिक एवं रसमय है तथा कितनी सुन्दर रचना है, यह तो आप स्वयं इस पुस्तक को पढ़कर ही अनुभव कर सकेंगे। ‘सूर’ के इन पदों में कई स्थानों पर तो अत्यन्त मार्मिक भावों की उद्भावना है।

सूरदासजी के रामचरित-संबंधी जितने पद उपलब्ध हो चुके हैं, वे सब इस संग्रह में दिये गये हैं। अपनी जान में कोई पद छो़डा नहीं गया है। उपलब्ध सूरसागर की प्रतियों के अतिरिक्त ‘विद्या-मन्दिर’ काँकरोली की श्रीशोभारामजी की हस्तलिखित प्रति से कुछ ऐसे पद मिले हैं जो उपलब्ध छपी प्रतियों में नहीं मिलते। विद्या-मन्दिर में सूरसागर की कई हस्तलिखित प्रतियाँ हैं, उनमें पण्डित शोभारामजी द्वारा लिखी प्रति सबसे प्राचीन है और उसी में सबसे अधिक पद भी हैं। हमारी प्रार्थना पर ‘विद्या-मन्दिर’ के अध्यक्ष जी ने वह प्रति यहाँ भेज दी थी, इसके लिये हम उनके बहुत कृतज्ञ हैं। उस हस्तलिखित प्रति में कुछ पद ऐसे हैं जिनकी पंक्तियाँ पूरी नहीं है। उनमें स्थान-स्थान पर.........ऐसे चिह्न बने हैं।


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