सामाजिक >> दो बहनें फुलवारी और नष्टनीड़ दो बहनें फुलवारी और नष्टनीड़रबीन्द्रनाथ टैगोर
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रायः कहा जाता हैं कि ‘साली आधी घरवाली’ होती है, लेकिन अगर शशांक जैसा कोई उसे ‘पूरी घरवाली’ बनाने पर उतर आए तो साली क्या करे ?
बहन शर्मिला के बीमार पड़ने पर ऊर्मिमाला ने उसकी और परिवार की अच्छी तरह देखभाल करके ‘आधी घरवाली’ की भूमिका तो निभा दी, किंतु जब शशांक ने उसे ‘पूरी घरवाली’ बनाना चाहा तो वह पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने विदेश क्यों चली गई ?
नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास ‘दो बहनें’ की यह कहानी पाठकों के मन में एक अजीब सा कुतूहल जगाए रखती है और यह अहसास कराती है कि खत्म होने के बाद भी इस कहानी का वक्तव्य आज उसी तीव्रता के साथ मौजूद है।
‘दो बहने’ के साथ, इसी मिजाज के, दो लघु उपन्यास ‘फुलवारी’ और ‘नष्टनीड़’ भी संकलित हैं।
बहन शर्मिला के बीमार पड़ने पर ऊर्मिमाला ने उसकी और परिवार की अच्छी तरह देखभाल करके ‘आधी घरवाली’ की भूमिका तो निभा दी, किंतु जब शशांक ने उसे ‘पूरी घरवाली’ बनाना चाहा तो वह पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने विदेश क्यों चली गई ?
नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास ‘दो बहनें’ की यह कहानी पाठकों के मन में एक अजीब सा कुतूहल जगाए रखती है और यह अहसास कराती है कि खत्म होने के बाद भी इस कहानी का वक्तव्य आज उसी तीव्रता के साथ मौजूद है।
‘दो बहने’ के साथ, इसी मिजाज के, दो लघु उपन्यास ‘फुलवारी’ और ‘नष्टनीड़’ भी संकलित हैं।
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