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रहस्य-रोमांच >> क्रिस्टल लॉज

क्रिस्टल लॉज

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9309
आईएसबीएन :9789351772705

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

(शनिवार : सात मई)

मुकेश माथुर ने आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के उस ऑफिस में कदम रखा जो अभी चार महीने पहले तक - बुधवार, दो फरवरी तक - उसका भी ऑफिस हुआ करता था। तब कहने को वहाँ उसका दर्जा जूनियर एडवोकेट का था लेकिन फर्म के बिग बीस नकुल बिहारी आनन्द की निगाह में उसकी औकात हरकारे या बड़ी हद ली क्लर्क से बेहतर नहीं थी। इस वजह से उसे फर्म के ऐसे ही काम सौंपे जाते थे जिनमें फुटवर्क ज्यादा होता था, ब्रेनवर्क या होता ही नहीं था, या न होने के बराबर होता था। जनवरी में जब खड़े पैर उसे दिल्ली भेजा गया था तो उसने सपने में नहीं सोचा था कि वहाँ उसे न सिर्फ ट्रायल वर्क करना पड़ना था, बल्कि केस को - जो कि खुद उसके बीस के नौजवान भतीजे निखिल आनन्द के खिलाफ था, मर्डर का था - किसी अंजाम तक पहुँचा कर दिखाना पड़ना था। अपने अनथक परिश्रम से और ईश्वर की कृपा से जिस अंजाम तक वो केस को पहुँचाने में कामयाब हुआ था उसने निखिल आनन्द के अंकल साहबान की बुनियाद हिला दी थी, इस हद तक हिला दी थी कि बड़े आनन्द साहब नकुल बिहारी आनन्द, फर्म में मैनेजिंग पार्टनर को खड़े पैर मुम्बई से दिल्ली पहुँचना पड़ा था।

वजह ?

मुकेश माथुर ने अपने ही क्लायन्ट को - मुलजिम निखिल आनन्द को - कत्ल का अपराधी साबित कर दिखाने का अक्षम्य काम किया था। बात यहीं तक रहती तो उसे आपसी, अन्दरूनी बात मान कर ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाता, पूरी तरह से नजर-अन्दाज कर दिया जाता लेकिन मुकेश माथुर ने ये गुस्ताख हरकत करने का भी हौसला किया कि निखिल आनन्द का अपने अंकल्स के सामने कनफैशन हासिल कर लिया और उसे एक पर्वूनियोजित स्टिंग आपरेशन के जरिये रिकार्ड भी कर लिया। आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स से अपनी अलहदगी के अहम ऐलान के साथ उसने ये ऐलान भी किया था कि जब तक भतीजा अदालत में भी अपना गुनाह कबूल न कर लेता, वो रिकार्डिंग महफूज रहती और निखिल के अदालत में मुकरने की सूरत में अदालत में पेश की जाती।

बुधवार दो फरवरी की आधी रात को भतीजे निखिल आनन्द का अदालत से फांसी या उम्र कैद की सजा पाना उसे महज वक्त की बात जान पड़ता था लेकिन ये मुम्बई और दिल्ली के आनन्द साहबान का ही जहूरा था कि अभी चन्द दिन पहले कोर्ट ने निखिल आनन्द को बरी कर दिया था।

आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स से इस्तीफा देने के बाद उसने किसी और ली फर्म को जायन करने की कोशिश नहीं की थी, दिल्ली में निखिल आनन्द के ट्रायल के दौरान उसे ये नया, हौसला-अफजाह अहसास हुआ था कि वो उतना गावदी नहीं था जितना कि उसका बॉस नकुल बिहारी आनन्द उसे साबित करने की कोशिश करता था, उसके अन्तर से आवाज उठी थी कि इंसान दिलोजान से कोशिश करे तो क्या नहीं बन सकता था ! तब उसने कोई नयी जॉब तलाश करने की जगह अपनी खुद की प्रैक्टिस खड़ी करने का फैसला किया था। नतीजतन अब मैरीन ड्राइव के उस ऑफिस कम्पलैक्स में, जिसके फर्स्ट फ्लोर पर आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का विशाल, भव्य ऑफिस था, उसका खुद का ऑफिस था जिसका नाम मुकेश माथुर एण्ड एसोसियेट्स था।

वो ऑफिस खड़ा करना उसकी जिन्दगी का बहुत बड़ा कदम था जिससे कि वो बहुत खुश था। लेकिन उससे भी बड़ी खुशी की बात ये थी कि उसकी पत्नी टीना उर्फ मोहिनी माथुर ने चार दिन पहले एक चाँद से बेटे को जन्म दिया था और उसे पिता कहलाने का फख्र हासिल हुआ था।

वही गुड न्यूज अपने भूतपूर्व बॉस को सुनाने के लिए फूला न समाता, मिठाई के डिब्बे के साथ उस घड़ी वो वहाँ, उनके ऑफिस में पहुँचा हुआ था।

नकुल बिहारी आनन्द की सैक्रेट्री श्यामली ने उसे देखा तो अपनी बेरूखी छुपाने तक की कोशिश न की। वो बड़े साहब की मुंहलगी थी इसलिये लैसर मार्टल्स से ऐसे ही पेश आने का उसका मिजाज और अन्दाज स्थापित था।

‘‘गुड मार्निंग !’’ - मकेश माथुर मुस्कराता हआ बोला - ‘‘बड़े आनन्द साहब हैं ?’’

‘‘हैं।’’ - वो यूं बोली जैसे जवाब दे कर उसपर अहसान कर रही हो।

‘‘मुझे उनसे मिलना है। जरा मेरी भीतर खबर करो।’’

उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव आये।

‘‘फकत चार महीनों में नाम भूल तो नहीं गया होगा ! लेकिन तुम्हारा क्या है, तुम तो कहोगी कि शक्ल भी भूल गयी, इसलिये याद दिलाने की खातिर बोल रहा हूँ। मुकेश। मुकेश माथुर। साहब को बोलो एडवोकेट मुकेश माथुर मिलना चाहता है।’’

उसका हाथ फिर भी फोन की तरफ न बढ़ा।

‘‘स्नैप आउट आफ इट।’’ - मकेश कर्कश स्वर में बोला - ‘‘डू युअर जॉब, और आई विल हैव टू डू इट फार यू।’’

‘‘क-क्या !’’ - वो हड़बड़ाई।

‘‘अब मैं तुम्हारे साहब का मुलाजिम नहीं हूँ, एसोसियेट भी नहीं हूँ, फैलो एडवोकेट हूँ। सो पे सम रिस्पैक्ट टू युअर बॉसिज ईक्वल।’’

‘‘यस।’’

मुकेश ने उसे घूर कर देखा।

‘‘यस, सर !’’

‘‘दैट्स मोर लाइक इट।’’

उसने फोन पर भीतर बजर दिया, एक क्षण माउथपीस मैं मुँह घुसा कर कुछ बोला और फिर रिसीवर वापिस रखती बोली - ‘‘यू मे गो इन।’’

मकेश ने उसे फिर घूरा।

‘‘...सर।’’

उसने सहमति में सिर हिलाया और मिठाई का डिब्बा सम्भाले आगे बढ़ा। उसने बीच का दरवाजा खोल कर नकुल बिहारी आनन्द के विशाल, सुसज्जित ऑफिस में कदम रखा और अपने भतूपर्वू बॉस का सादर अभिवादन किया।

‘‘आओ, भई’’ - नकुल बिहारी आनन्द गम्भीर स्वर में बोले - ‘‘कैसे आये ?’’

‘‘सर’’ - मुकेश अदब से बोला - ‘‘गुड न्यजू थी, आपको देने आया। मेरे घर खुशी हुई, आपके साथ शेयर करने आया।’’

‘‘मतलब ?’’

‘‘आपको खबर करने आया कि आप दादा बन गये हैं।’’

‘‘क्या !’’

मुकेश ने गद्गद् भाव से मिठाई का डिब्बा खोल कर उनके सामने रखा।

‘‘मुँह मीठा कीजिये, सर।’’ - वो बोला।

‘‘तुम्हें मालूम है मेरे को डायबीटीज है।’’

‘‘इसी वास्ते मिठाई खाने को न बोला, सर, मुँह मीठा करने को बोला।’’

‘‘लेकिन बात क्या है ?’’

‘‘सर, बेटा हुआ है।’’

‘‘ओह ! मुबारक।’’

‘‘थैक्यू, सर।’’

‘‘अपनी पत्नी को भी देना।’’

‘‘जरूर। सर, मुंह तो मीठा कीजिये।’’

जहरमार की तरह चिड़िया के चुग्गे जितनी मिठाई उन्होंने अपने मुंह में हस्तांतरित की।

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